आरण्यक साहित्य
आरण्यक ग्रन्थों का स्थान ब्राह्मण ग्रन्थों के बाद आता है। और आरण्यक ग्रन्थों के बाद उपनिषदों का स्थान है। आरण्यक ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थ तथा उपनिषदों के बीच की कड़ी है।
आरण्यक शब्द की व्युत्पत्ति।
अरण्य से वुञ् प्रत्यय हो कर आरण्यक यह शब्द सिद्ध होता है। अरण्य यानी वन और आरण्यक का अर्थ होता है – अरण्य से संबंधित।
सायणाचार्य कहते हैं –
अरण्ये एव पाठ्यत्वाद् आरण्यकम् इतीर्यते।
इन ग्रन्थों का अभ्यास तथा पठन-पाठन अरण्य (वन) में ही किए जाने की वजह से इन ग्रन्थों को आरण्यक ग्रन्थ गया है।
आरण्यक ग्रन्थों का प्रतिपाद्य विषय
ब्राह्मणों में यज्ञ की कर्मकाण्ड के अनुरूप व्याख्या है तथा आरण्यकों में उस यज्ञों को आध्यात्मिक दृष्टि से देखा गया है।
उपलब्ध आरण्यक ग्रन्थ
वस्तुतः प्राचीन काल में बहुत सारे आरण्यक ग्रन्थ उपलब्ध थे। परन्तु आज कुछ ही गिने चुने आरण्यक उपलब्ध हैं।
ऋग्वेद से संबंधित आरण्यक ग्रन्थ
- ऐतरेय आरण्यक
- शांखायन आरण्यक
यजुर्वेद से संबंधित आरण्यक ग्रन्थ
- बृहदारण्यक
- तैत्तिरीय आरण्यक
- मैत्रायणी आरण्यक
सामवेद से संबंधित आरण्यक ग्रन्थ
- तवल्कार आरण्यक
- छान्दोग्य आरण्यक
अथर्वेद से संबंधित आरण्यक ग्रन्थ
- अथर्ववेद से संबंधित आरण्यक अनुपलब्ध हैं।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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