श्लोक

गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः

गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः ।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः,
करी च सिंहस्य बलं न मूषकः ॥

वीडिओ से श्लोक को समझिए –

अन्वय 

गुणी गुणं वेत्ति, निर्गुणः (गुणं) न वेत्ति। बली बलं वेत्ति निर्बलः (बल) न वेत्ति। पिकः वसन्तस्य गुणं (वेत्ति), वायसः न (वेत्ति)। करी च सिंहस्य बलं (वेत्ति), मूषकः न (वेत्ति)॥

शब्दार्थ 

  • गुणी – गुणवान्।
  • गुणम्गुण को
  • वेत्ति –जानाति। जानता है
  • न – नहीं
  • वेत्ति – जानाति। जानता है
  • निर्गुणः – गुणहीनः। जिसके पास कोई गुण नहीं ऐसा मनुष्य
  • बली – बलवान्। शक्तिशाली। शक्तिमान्। ताकतवर
  • बलम् – ताकत / शक्ति / बल को
  • वेत्ति – जानाति। जानता है
  • न – नहीं 
  • वेत्ति – जानाति। जानता है
  • निर्बलः – बलहीनः। कमजोर इन्सान
  • पिकः – कोकिलः। कोयल
  • वसन्तस्य – वसन्त ऋतु के
  • गुणम् – गुण को
  • न – नहीं
  • वायसः – काकः। कौआ
  • करी – गजः। हस्ती। हाथी
  • च – और 
  • सिंहस्य – सिंह की
  • बलम् – ताकत / शक्ति को
  • न – नहीं
  • मूषकः – चूहा

हिन्द्यर्थ (हिन्दी अनुवाद)

गुणवान् (मनुष्य ही) गुण को जानता है, निर्गुण (मनुष्य) गुण नहीं जानता।

(कोई) बलवान् (मनुष्य ही) बल को समझता है, कमजोर बल को नहीं समझ सकता।

(जैसे) कोयल वसन्त ऋतु के गुण को जानता है, (लेकिन) कौआ नहीं।

और हाथी सिंह की ताकत समझ सकता है, (कोई) चूहा नहीं।

इस श्लोक में चार वाक्य हैं। चारों को क्रमशः समझने का प्रयत्न करते हैं।

१. गुणी और निर्गुण

गायन एक अच्छा गुण है। हम में से ज्यादा तर लोगों को अलग अलग गाने सुनना पसन्द भी होता है।  परन्तु गायन की खूबियों को कोई एक अच्छा सा गायका ही समछ सकता है।

जरा इस उदाहरण को देखिए –

आप सभी ने कभी ना कभी शास्त्रीय संगीत के बारे में तो सुना ही होगा। जब कोई शास्त्रीय गायक – आआआआआआ ऊऊऊऊऊऊऊ हिआआआ ऐसा कर के बडी बडी लंबी लंबी ताने लेना शुरू करता है तो सुनने वालों को देखने का बहुत मज़ा आता है। सुनने वाले श्रोताओं में जो गुणी होते हैं, गायन कला के रहस्यों को जानते हैं वे तो भावविभोर हो जाते हैं, मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।

परन्तु जो लोग केवल पहली बार ही – चलो, देखते हैं कि गायन क्या चीज होती हैं। ऐसा सोच कर आते हैं, उन लोगों की हालत बहुत ख़राब हो जाती है। अब गायन सुनने आएं हैं इसका मतलब है कि कोई अच्छे गीत सुनने को मिलेंगे। पहले तो लगभग एक घंटे तक बड़ा ख्याल चलता है। जिसमें गायक केवल सुर लगाने का काम करता है। लंबे लंबे आलाप लेता है। जरा सोचिए जो लोग मधुर गीत सुनने की अपेक्षा से आए हैं वे केवल एक घंटे तक केवल आऽऽऽऽऽऽऽ ईऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ ऐसे आलाप सुनती बैठे तो उनका क्या हाल होता होगा। लगभग नींद सी लगती है। कुछ देर बाद गायक का गला गर्म होने लगता है। गायक जोश में आकर – आआआआआआआ, ऊऊऊऊऊऊऊ ऐसी ताने लेना शुरू करता है। तब तो उनका दिमाग फटने लगता है। 

मुझे ऐसे लोगों को देखकर बहुत मज़ा आता है। नींद से लुढकने लगते हैं। और तभी गायक बिजली जैसी एक तान लेता है और ये भी अचानक डर के मारे बेहाल हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए –

ये ताने आपको जरूर सुननी चाहिए। यहाँ क्लिक करें। 

अगर आसान शब्दों में कहा जाए, तो जो लोग गायन कला के रहस्यों को जानते हैं वे तान सुनकर मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं, बहुत आनन्दित हो जाते हैं। परन्तु जो नहीं जानते, वे लोग कहते हैं की ये गायक महोदय ऐसे क्यों चिल्ला रहे हैं जैसे बिजली का झटका लगा हो। परन्तु अगर विचार किया जाए, तो पण्डितजी को भारत का सर्वोच्च पुरस्कार – भारतरत्न क्या ऐसेही मिला क्या? नहीं। जरूर उनके गायन में कोई महान बात होगी। इसीलिए तो उन्हे वह पुरस्कार दिया गया है। परन्तु हम उस बात को समझ नहीं सकते हैं। क्योंकि हम निर्गुण हैं। और उस गुण को समझने के लिए हमारा भी गुणी होना जरूरी है।

२. बलवान् और निर्बल

और कोई बलवान् ही दूसरे बलवान् के महत्त्व को समझ सकता है। निर्बल व्यक्ति तो सोच भी नहीं सकती की एक अच्छा सा बलवान् क्या क्या कर सकता है।

मैंने बहुत बार देखा है कि कुछ कुछ कराटे खेलने वाले लोग, या कुछ मेहनती लोग दिखने में बहुत दुबले पतले दिखते हैं। और उन्हे देख कर ऐसे लगता है ये तो बिल्कुल ही शक्तिहीन हैं। परन्तु वे लोग बहुत चपल और फूर्तीले होते हैं। और हम (जो कभी भी व्यायाम नहीं करते) कभी भी उनकी शक्ति का अन्दाजा नहीं लगा सकते।

३. कोयल और कौआ

वसन्त ऋतु में हर तरफ खुशीयों भरा वातावरण होता है। नई हरियाली हर तरफ होती है। परन्तु वसन्त के इस महत्त्व को कौन समझ सकता है – कोयल। इतने अच्छे माहौल में वह तो कोयल ही होता है जो अपनी कूक से वातावरण को संगीतमय कर देता है। परन्तु कौआ इस मे शामिल नहीं हो सकता है। क्योंकि कौआ वसन्त की सुन्दरता को समझ ही नहीं सकता।

४. हाथी और चूहा

हाथी बलवान् होता है। और चूह तो बिल्कुल भी नहीं। और अगर किसी ने जाकर चूहे से पूछ लिया कि – भई चूहे, क्या आप बता सकते हैं कि एक शेर की ताकत क्या होती है? तो जवाब में चूहा (अगर किसी शेर से मुलाकात हो कर बच निकलने में सफल रहा हो तो) बस इतना कह सकता है कि – शेर तो बहुत ज्यादा ताकतवर होता है। बस इससे ज्यादा कुछ नहीं। 

परन्तु अगर हाथी से पूछा जाए तो हाथी अच्छे से बता सकता है कि एक शेर अच्छे से शेर की शक्ति का वर्णन कर लेगा।

इस श्लोक का हिन्दी अनुवाद कर के एक बहुत बढ़िया धृपद बनाया गया है। जिसे पं॰ उदय भवाळकर जी ने बहुत अच्छे से गाया है – जाने गुणी गुण को निरगुण का जाने। (राग भिन्न षड्ज)

हम चाहते हैं कि आप इसे जरूर सुने –

जाने गुणी गुण को – पं॰ उदय भवाळकर

इस श्लोक में दो बातों पर जिक्र किया गया है।

१. गुण

२. बल

पंक्ति क्र॰ १ और ३ गुण के बारे में बात करती हैं। और पंक्ति क्र॰ २ और ४ बल के बारे में बात करती हैं।

व्याकरण

  • गुणी – गुण + इन्। इति प्रकृतिप्रत्ययौ।
  • वेत्ति – विद् + लट्। 
    • विद् – वेद् + ति = वेत् + ति = वेत्ति। जानता है।
    • हमने देखा है कि लिख् + ति = लिखति। ऐसा रूप बनता है। लेख्ति ऐसा रूप नहीं बनता है। इसका कारण यहां दे रहे हैं।
    • दरअसल यहाँ भी वेद् + अ + ति। ऐसा अ धातु और ति के बीच में आया था परन्तु अदिप्रभृतिभ्यः शपः इस सूत्र से अ लुप्त हो गया है। नहीं तो वेदति ऐसा रूप देखने को मिल सकता था।
    • यहां विद् धातु है। और इसे पुगन्तलघूपधस्य च इस सूत्र से गुण होकर वेद् यह रूप बनता है। 
  • बली – बल + इन्। इति प्रत्ययः।
  • करी – कर + इन्। इति प्रत्ययः।
    • कर अर्थात् हाथी की सूंड। (अपने हाथ को भी कर कहते हैं। जो कि सूंड जैसा लटकता रहता है और जो हमारे अनेको काम करता है।)

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