गुणेष्वेव हि कर्तव्यः
संस्कृत श्लोक
गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः॥
श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण
guṇeṣveva hi kartavyaḥ prayatnaḥ puruṣaiḥ sadā। guṇayukto daridro'pi neśvarairaguṇaiḥ samaḥ॥
श्लोक का शब्दार्थ
- गुणेषु – गुणों में
- एव – ही
- हि – ही
- कर्तव्यः – करना चाहिए
- प्रयत्नः – प्रयास, कौशिश
- सदा – सर्वदा। हमेशा
- गुणयुक्तः – गुणवान्। गुणों से युक्त
- दरिद्रः – निर्धनः। गरीब
- अपि – अपि
- न – नहीं
- ईश्वरैः – देव, श्रीमन्त, अमीर, भगवान्
- अगुणैः – गुणहीन, जिन के पास कोई गुण नहीं है
- समः – समान
श्लोक का अन्वय
पुरुषैः सदा गुणेषु एव हि प्रयत्नः कर्तव्यः। (यतः) गुणयुक्तः द्ररिद्रः अपि अगुणैः ईश्वरैः समः न (भवति)।
हिन्दी अनुवाद
पुरुषों ने हमेशा गुणों के लिए ही प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि गुणवान् गरीब भी गुणहीन भगवानों/श्रीमन्तो के समान नहीं होता है।
श्लोक का विश्लेषण
प्रायः मनुष्य पैसों के पीछे दौड़ता रहता है। किन्तु कवि कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा गुण पाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। क्योंकि गुण जिसके पास है वह गरीब मनुष्य तो भगवानों/श्रीमन्तों के समान नहीं होता। अर्थात् गुणी गरीब मनुष्य का स्तर निर्गुण ईश्वरों से भी ऊंचा होता है।
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