छ॰ शिवाजी महाराज राजमुद्रा का अर्थ। हिन्दी में। Shivaji Maharaj Rajmudra Meaning in Hindi
English Translation is available
अनेको वर्षों बाद बनी संस्कृत में छ॰ शिवाजी महाराज की राजमुद्रा
भारत में यवनी आक्रमण के बाद जो राजमुद्राएं बनी, वे अधिकतर अरबी, फारसी या उर्दू भाषाओं में बनी थी। लेकिन जब बीच में छ॰ शिवाजी महाराज ने हिन्दवी साम्राज्य का डंका पीटा तो अनेको वर्षों के बाद पहली बार एक राजमुद्रा बनी, जो संस्कृत में थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज की राजमुद्रा और राजमुद्रा पर अंकित संस्कृत श्लोक तथा उस श्लोक का हिन्दी, मराठी अथवा अंग्रेजी भाषा में अर्थ हर जगह पर आसानी से मिल सकता है। और वे अर्थ ज़्यादा तर सही है भी। परन्तु उन में से ज्यादा तर अर्थ अतिशयोक्त हैं तथा उन अर्थों को पढ कर हमें मूल श्लोक के बारे में कुछ भी नहीं समझता।
यहां हम प्रयास कर रहे हैं कि छ॰ शिवाजी महाराज की राजमुद्रा का शब्दशः अर्थ पता चले। हम सर्वप्रथम राजमुद्रा को देखते हैं –
यहां हम प्रयास कर रहे हैं कि छ॰ शिवाजी महाराज की राजमुद्रा का शब्दशः अर्थ पता चले। हम सर्वप्रथम राजमुद्रा को देखते हैं –
छत्रपति शिवाजी की राजमुद्रा पर अंकित संस्कृत श्लोक –
प्रतिपच्चन्द्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्ववन्दिता।
शाहसूनोः शिवस्यैषा मुद्रा भद्राय राजते॥
पदच्छेद –
प्रतिपद्-चन्द्र-लेखा इव वर्धिष्णुः विश्ववन्दिता।
शाहसूनोः शिवस्य एषा मुद्रा भद्राय राजते॥
शब्दार्थ –
अब हम एक एक शब्द का अर्थ देखेंगे –
- प्रतिपद्-चन्द्र-लेखा – प्रतिपदा तिथि पर दिखने वाली चन्द्र लेखा
- इव – के जैसे
- वर्धिष्णुः – बढ़ने वाली
- विश्ववन्दिता – सम्पूर्ण विश्व के द्वारा वन्दित
- शाहसूनोः – शाह के पुत्र की (यहां शाह यह शब्द छ॰ शिवाजी के पिता शहाजी महाराज के लिए है।)
- शिवस्य – शिव की (शिव – छ॰ शिवाजी महाराज)
- एषा – यह
- मुद्रा – राजमुद्रा
- भद्राय – कल्याण के लिए (भद्र – कल्याण। भद्राय – कल्याण के लिए। भद्र के अन्य भी अर्थ होते हैं – शुभ, मंगल, शुभंकर, अच्छा)
- राजते – विराजमान है।
सरलार्थ –
१. प्रतिपच्चन्द्रलेखा इव वर्धिष्णुः
२. विश्ववन्दिता
दुनिया के द्वारा वन्दित। (यानी पूरी दुनिया ने जिसका वन्दन किया है।)
३. शाहसूनोः शिवस्य
शहाजी के पुत्र शिवाजी की
४. एषा मुद्रा भद्राय राजते।
यह मुद्रा कल्याण के लिए है। (अर्थात लोगों के कल्याण के लिए है।)
हिन्द्यर्थ –
प्रतिपदा की चन्द्रलेखा के समान बढने वाली, विश्व के द्वार वन्दित, शाहजी के पुत्र शिवाजी की यह मुद्रा (लोगों के) कल्याण के लिए विराजमान है।
राजमुद्रा से मिलने वाले संकेत
छ॰ शिवाजी महाराज संस्कृतप्रेमी थे
इस तरह से हम देखा की छ॰ शिवाजी महाराज की राजमुद्रा का क्या अर्थ होता है। यह राजमुद्रा बहुत कुछ बताती है। एक बात तो यह है कि राजमुद्रा संस्कृत भाषा में है। यानी छ॰ शिवाजी महाराज एक संस्कृतप्रेमी थे यह बात सिद्ध होती है। (हालांकि कई अन्य प्रमाण भी है जिससे छ॰ शिवाजी महाराज का संस्कृतप्रेम दिखाई देता है।)
छ॰ शिवाजी का पिता के प्रति सम्मान
राजमुद्रा में महाराज ने केवल शिवस्य ऐसा खुद का उल्लेख नहीं किया है। बल्की अपने नाम से पहले पिता के नाम का उल्लेख किया है – शाहसूनोः शिवस्य इति। अर्थात् शहाजी के पुत्र शिवाजी। महाराज को अपने पिता का प्यार ज्यादा नहीं मिल पाया। तथापि अपने पिता के प्रति प्रेम, आदर और श्रद्धा इस राजमुद्रा में झलकती है।
शायद यह उनकी माँ (माता जिजाबाई) की शिक्षा का परिणाम है। माताजी उन्हे रामायण, महाभारत की कथाएं सुनाया करती थी। (काश आजकल की भी माताएं ऐसे ही बालकों को संस्कृत करें तो घर घर में शिवाजी जन्म लेगे।)
लोककल्याणकारी राज्य
राजमुद्रा में अन्तिम पङ्क्ति है – मुद्रा भद्राय राजते। यानी यह राजमुद्रा लोककल्याण के लिए है। यह बहुत क्रान्तिकारी विचा है। क्योंकि वह ऐसा दौर था जब अलद अलग जगहों के सुलतान प्रजा पर ज़ुल्म करते थे। और कोई राजा का राज्य प्रजा के कल्याण के लिए होना चाहिए ऐसी कल्पना कोई नहीं करता था।
इस प्रकार से हमने छ॰ शिवाजी महाराज की राजमुद्रा का अपनी (मन्द) बुद्धि से आकलन करने का प्रयत्न किया। आप से निवेदन है कि छ॰ शिवाजी महाराज की राजमुद्रा के अर्थ को हर एक राष्ट्रवादी तक पहुँचाए तथा राजमुद्रा के बारे में आप के विचार भी हमसे साझा कीजिए। इति लेखनसीमा।
धन्यवाद।
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