सुभाषित

निमित्तम् उद्दिष्य हि यः प्रकुप्यति – संस्कृत सुभाषित श्लोक – अनुवाद अन्वय पदच्छेद

संस्कृत सुभाषित श्लोक

निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति,
ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति ।
अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै,
कथं जनस्तं परितोषयिष्यति ॥

श्लोक को वीडिओ से समझें

शब्दार्थ

  • निमित्तम् – कारणम्। 
  • उद्दिष्य – दृष्ट्वा देखकर, मानकर
  • हि – अव्ययपदम्
  • यः – जो
  • प्रकुप्यति – क्रुद्ध्यति। क्रोधं करोति। कुप्यति। कोपं करोति। ग़ुस्सा करता है
  • ध्रुवम् – निश्चितम्। निश्चयेन। पक्का
  • सः – वह
  • तस्य – उसके (उस गुस्से के कारण के)
  • अपगमे – दूर जाने पर, खत्म होनेपर
  • प्रसीदति – प्रसन्नः भवति। खुश होता है
  • अकारणद्वेष्टि – बिना किसी कारण के द्वेष करने वाला
  • मनः – मन
  • तु – अव्ययपदम्
  • यस्य – जिसका
  • वै – अव्ययपदम्
  • कथम् – केन प्रकारेण। कैसे
  • जनः – मनुष्यः। मानवः। कोई इन्सान
  • तम् – उसे
  • परितोषयिष्यति – सन्तुष्टं करिष्यति। खुश करेगा

अन्वय

यः (जनः) निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति, सः तस्य (निमित्तस्य) अपगमे ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषि (भवति), तं जनः कथं परितोषयिष्यति।

हिन्द्यर्थ

जो मनुष्य (कोई) कारण देखकर (ही) ग़ुस्सा करता है, वह (मनुष्य) उस कारण के दूर होने पर निश्चित ही प्रसन्न होता है। (परन्तु) जिसका मन बेवजह द्वेष करने वाला होता है, उसे (कोई भी) मनुष्य कैसे खुश कर सकता है।

मथितार्थ

कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कभी भी बिना वजह के किसी पर भी बात बात पर गुस्सा करते हैं, बात बात पर बेमतलब के झगडते हैं। ऐसे लोगों को अगर कोई मनुष्य प्रसन्न करना चाहे तो कैसे करें?
क्योंकि (समझदार) लोग किसी खास वजह से ही गुस्सा करते हैं। और जब जिस बात से गुस्सा आया था वह बात अगर दूर हो गई या सुधारी गई तो वे फिर से खुश हो जाते हैं। जैसे कि किसी छात्र ने यदि अपना गृहकार्य ना किया हो तो शिक्षक का गुस्सा होना सही है। और यदि छात्र दूसरे दिन वह बाकी गृहकार्य पूरा करता है तो शिक्षक उस से पुनः प्रसन्न हो जाते हैं।

लेकिन कुछ लोगों के डांटने के लिए, चिल्लाने के लिए किसी वजह के जरूरत नहीं होती है, उनका मन ही ऐसे अकारण गुस्सा करने वाला बन जाता है, ऐसे लोगों को हम कैसे खुश कर सकते हैं?

संस्कृत भावार्थ

यः मनुष्यः कारणं दृष्ट्वा एव क्रोधं करोति, सः मनुष्यः तत् कारणं समाप्तं भवति चेत् प्रसन्नः भवति। परन्तु यः कारणं विना अपि क्रोधं करोति, यस्य जनस्य मनः एव अकारणं कोपं करोति, तं जनं प्रसन्नं कर्तुं न शक्यते।

निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति

व्याकरण

  • उद्दिश्य – उद् + दिश् + ल्यप्।
  • तस्यापगमे – तस्य अपगमे। दीर्घसन्धिः।
  • अकारणद्वेषि – अकारणद्वेष + इन्।
    • अत्र इन् प्रत्ययः अस्ति। प्रायशः इन्प्रत्ययान्तशब्दाः योगी, गुणी, धनी एतादृशाः दृश्यन्ते। परन्तु अत्र द्वेषि इति मनः इत्यस्य नपुंसकलिङ्गशब्दस्य विशेषणम् अस्ति। अतः द्वेषी इति न भूत्वा द्वेषि इति अभवत्।
    • अकारणम् – न कारणम्। नञ् तत्पुरुषः।
  • मनस्तु – मनः + तु। विसर्गसन्धौ सत्वम्।
  • जनस्तम् – जनः + तम्। विसर्गसन्धौ सत्वम्।

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