सुभाषित

पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः। हिन्दी अनुवाद। शब्दार्थ। भावार्थ। अन्वय॥

नदियों का पानी दूसरों के लिए होता है, वृक्षों के फल भी दूसरों के लिए ही होते हैं। इसी तरह से खेती में फसल बादलों (बादलों से बरसे पानी) के वजह से होती है। लेकिन बादल खुद फसल नहीं खाते।

इस का अर्थ क्या है?

अर्थ यही हुआ की इस दुनियां में जो भी तत्त्व हैं, वे सब दूसरों की मदद के लिए हैं।

केवल मनुष्य ही भोगी है।

मनुष्य ही सब का फायदा उठाता है। लेकिन मनुष्यों में भी कुछ परोपकारी लोग होते हैं। उनका जिक्र इस श्लोक में किया गया है।

पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभूतयः॥

– इति सुभाषितरत्नभाण्डागारम्।

श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण

Roman transliteration of the Shloka

pibanti nadyaḥ svayameva nāmbhaḥ
svayaṃ na khādanti phalāni vṛkṣāḥ।
nādanti sasyaṃ khalu vārivāhāḥ
paropakārāya satāṃ vibhūtayaḥ॥

श्लोक का वीडिओ

पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः

श्लोक का पदच्छेद

पिबन्ति नद्यः स्वयम् एव न अम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
न अदन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
पर-उपकाराय सतां विभूतयः॥

श्लोक का शब्दार्थ

  • पिबन्ति – पीती हैं
  • नद्यः – नदियाँ
  • स्वयमेव – स्वयम् एव – खुद ही
  • न – नहीं
  • अम्भः – पानी
  • स्वयम् – खुद
  • न – नहीं
  • खादन्ति – खाते हैं
  • फलानि – फल
  • वृक्षाः – पेड़
  • न – नहीं
  • अदन्ति – खादन्ति। खाते हैं
  • सस्यम् – फसल
  • खलु – Indeed
  • वारिवाहाः –  नभः। घनः। बादल
  • परोपकाराय – दूसरों की मदद के लिए
  • सताम् – सज्जनों की 
  • विभूतयः – सम्पत्तियाँ

श्लोक का अन्वय

(यथा) नद्यः  अम्भः स्वयं न पिबन्ति। वृक्षाः फलानि स्वयं न खादन्ति वारिवाहाः खलु सस्यं न अदन्ति (तथैव) सतां विभूतयः परोपकाराय (भवन्ति)॥

श्लोक का हिन्दी अनुवाद

जैसे नदियां पानी खुद नहीं पीती है। पेड़ फल खुद नहीं खाते हैं। बादल भी फसल नहीं खाते हैं। उसी प्रकार सज्जनों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है।

श्लोकस्य भावार्थः

अस्मिन् संसारे सज्जनाः स्वसम्पत्तेः उपयोगं परोपकाराय एव कुर्वन्ति। यथा नदीनां जलं नद्यः स्वयं न पिबन्ति। वृक्षाः अन्येभ्यः फलानि यच्छन्ति परन्तु स्वस्य फलानि स्वयं न खादन्ति। कृषिक्षेत्रेषु मेघाः वर्षन्ते। तेन एव सस्यं भवति। परन्तु मेघाः कदापि सस्यं न खादन्ति। तथैव सज्जनाः अपि व्यवहरन्ति।

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