ब्राह्मण साहित्य
ब्राह्मणं वेदसंघाते वेदभागे नपुंसकम्।
पूजा पाठ करने वाली व्यक्ति को यदि ब्राह्मण कहा जाए, तो वह शब्द पुँल्लिंग होता है – ब्राह्मणः। परन्तु यदि ग्रन्थ इस अर्थ में ब्राह्मण शब्द का प्रयोग किया जाए, तो वह नपुंसक होता है – ब्राह्मणम्। यह शब्द ब्रह्म शब्द से अण् प्रत्यय हो कर बना हुआ है।
ब्रह्मणः मन्त्रराशेः यज्ञक्रियावस्तुतत्त्वादिनिरूपकं प्रवचनं ब्राह्मणम्।
अर्थात् ब्रह्म की मन्त्रराशि के यज्ञक्रियावस्तु तत्त्व आदि के निरूपण करने वाले प्रवचन को ब्राह्मण कहते हैं।
ब्रह्म से सम्बन्धित होने के कारण इन को ब्राह्मण ग्रन्थ कहते हैं। भट्टभास्करजी ने कहा है –
ब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्त्रमन्त्राणां व्याख्यानग्रन्थः।
– इति भट्टभास्कर, तैतिरीय संहिता भाष्य – १।५।१॥
वाचस्पतिमिश्र कहते हैं –
नैरुक्त्यं यस्य मन्त्रस्य विनियोगः प्रयोजनम्।
प्रतिष्ठानं विधिश्चैव ब्राह्मणं तदिहोच्यते॥
ब्राह्मण साहित्य की श्रुतिरूपता
बहुतेरे विद्वान् मन्त्रों के साथ साथ ब्राह्मण साहित्य को भी वेद (श्रुति) मानते हैं। जैसे कि आचार्य आपसम्ब कहते हैं –
मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्।
– इति यज्ञपरिभाषा
और श्री॰ शंकराचार्य भी ताड्य ब्राह्मण को – तण्डिनां श्रुतिः। कहकर ब्राह्मण ग्रन्थों को श्रुतिरूप में स्वीकार करते हैं। इस के बावजूद भी जो विद्वान् ब्राह्मणों को श्रुति के रूप में स्वीकार नहीं करते, वे भी इन को वेद-व्याख्यान रूप तो मानते ही हैं।
ब्राह्मण साहित्य का प्रतिपाद्य विषय
ब्राह्मण गन्थ प्रायः गद्य स्वरूप हैं। इनका मुख्य विषय यज्ञ का सर्वांगपूर्ण निरूपण है। इस में कर्म का विधान, समय, विधि, साधन तथा अधिकारी की जानकारी ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलती है। निम्न श्लोक में ब्राह्मण साहित्य की विधियाँ ज्ञात होती हैं –
हेतुर्निर्वचनं निन्दा प्रशंसा संशयो विधि:।
परक्रिया पुराकल्पो व्यवधारणकल्पना॥
उपमानं दशैवैते विधयो ब्राह्मणस्य तु।
एतद्वै सर्ववेदेषु नियतं विधिलक्षणम्॥
उपर्युक्त श्लोक में दस विधियाँ बताई हैं –
- हेतु
- निर्वचन
- निन्दा
- प्रशंसा
- संशय
- विधि
- परक्रिया
- पुराकल्प
- व्यवधारणा
- उपमान
ब्राह्मण ग्रन्थों की विशेषताएँ
ब्राह्मण ग्रन्थों को पढ़ कर हम उनकी निम्न विशेषताएं बता सकते हैं।
ब्राह्मण साहित्य में नैतिकता
ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वत्र मनुष्य को सत्यभाषण करने का आदेश दिया है। उस समय सत्य को सबसे अधिय महत्त्व दिया जाता था। तथा असत्य महापाप माना जाता था।
ब्राह्मण साहित्य में उल्लिखित धर्म
ऋग्वैदिक काल और ब्राह्मण काल की तुलना करें, तो किञ्चित् अन्तर दिखता है। ब्राह्मणों में यज्ञों को विशेष महत्त्व दिया गया। जो देवता वेदों में उच्च कोटि के माने गए थे उनको गौण स्वरूप मिल गया तथा जो गौण थे उनको ब्राह्मण ग्रन्थों में श्रेष्ठता प्रदान की गई।
अनेक शब्दों की व्युत्पत्ति का प्राप्त होना
भाषाविज्ञान और व्याकरण शास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अनेक शब्दों की व्युत्पत्तियाँ ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलती हैं।
स्वर्ग एवं नरक से संबंधित व्याख्यान
ब्राह्मणों में मृत्यु के बाद दो मार्ग बताए हैं – पितृयान और देवयान। मृत्युलोक में यज्ञ कर के स्वर्गप्राप्ति करने पर बल दिया गया है।
ब्राह्मण साहित्य में स्त्रियों की स्थिति
स्त्री को मनुष्य की अर्धांगिनी बता कर कहा गया है कि पत्नी के बिना पुरुष यज्ञ का अधिकारी नहीं है। स्त्रियों को श्री और समृद्धि को समान बताया गया। उनको घर की लक्षी भी बताया गया। तथापि चरित्रहीन तथा कुटिल स्त्रियों की निन्दा भी की गई है।
ब्राह्मण साहित्य में दार्शनिक तत्त्वज्ञान
ऋग्वेद तथा उपनिषदों के बीच का सेतु ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। अनेकों भारतीय दर्शनों के उद्गम के प्रेरणास्रोत ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। जैमिनीय ब्राह्मण में बताया गया है कि –
सूर्य, चन्द्रमा, द्यौ, अन्तरिक्ष और पृथ्वी का आकार गोल है।
साथ में ही
पृथ्वी को अग्निगर्भा (जिसके अंदर मध्य में अग्नि है) बताया गया है।
प्रत्येक वेद से सम्बन्धित ब्राह्मण ग्रन्थ
हमारे पास चार वेद हैं। और उन से सम्बन्धित ब्राह्मण ग्रन्थ निम्न प्रकार हैं –
१. ऋग्वेद से संबंधित ब्राह्मण
- १.१. ऐतरेय ब्राह्मण
- १.२. शांखायन अथवा कौषीतकी ब्राह्मण
२. यजुर्वेद से संबंधित ब्राह्मण
- २.१. शतपथ ब्राह्मण – शतपथ ब्राह्मण शुक्लयजुर्वेद से संबंधित है।
- २.२. तैत्तिरीय ब्राह्मण – यह ब्राह्मण ग्रन्थ कृष्णयजुर्वेद से संबंधित है।
३. सामवेद से संबंधित ब्राह्मण ग्रन्थ
सामवेद से संबंधित ९ ब्राह्मण ग्रन्थ प्राप्त हैं –
- ३.१. पञ्चविंश ब्राह्मण
- ३.२. षड्विंश ब्राह्मण
- ३.३. छान्दोग्य ब्राह्मण
- ३.४. सामविधान ब्राह्मण
- ३.५. आर्षेय ब्राह्मण
- ३.६. देवताध्याय ब्राह्मण
- ३.७. संहितोपनिषद् ब्राह्मण
- ३.८. वंश ब्राह्मण
- ३.९. जैमिनीय ब्राह्मण
४. अथर्ववेद से संबंधित ब्राह्मण ग्रन्थ
- ४.१. गोपथ ब्राह्मण
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