यम यमी संवाद सूक्त
यम-यमी संवाद सूक्त ऋग्वेद में (१०-१०) में पाया जाता है। इस सूक्त के ऋषि तथा देवता दोनों भी – यम और यमी ही हैं। तथा इस सूक्त का छंद है – त्रिष्टुप्।
यम और यमी – भाईबहन
यम और यमी विवस्वान् के जुड़वा पुत्र हैं। जिस में यमी यम से सन्तान प्राप्ति की कामना रखती है। परन्तु यम निग्रही हैं और वे यमी का निवारण करते हैं। ऐसी मान्यता ही अधिकतर प्रचलित है। तथापि कुछ विद्वानों के मत से यम और यमी ये भाई-बहन ना हो कर पति-पत्नी हैं।
यम और यमी – पतिपत्नी
दोनों भाई-बहनों में समागम की इच्छा वैदिक संस्कृति के विरुद्ध है। इसीलिए कुछ लोग यम और यमी को पति-पत्नी मानते हैं। वे प्रमाण भी देते हैं –
व्याकरण की दृष्टि से प्रमाण
पुंयोगादाख्यायाम् – ४।१।४८॥ इति अष्टाध्यायी।
इस सूत्र से यमी इस शब्द में ङीष् यह स्त्रीप्रत्यय हुआ है। इससे पत्नीत्व बोधित होता है। जैसे कि आचार्य शब्द के दो स्त्रीलिंग हैं –
- आचार्या (ऐसी स्त्री जो आचार्य हो)
- आचार्यानी (आचार्य की पत्नी)
ठीक ऐसे ही यम का स्त्रीलिंग यदि यमा होता, तो संभवतः इसका मतलब यम की बहन ऐसा हो सकता था। परन्तु यमी इस शब्द से तो यम की पत्नी ऐसा ही बोध होता है।
मन्त्र के अर्थ की दृष्टि से प्रमाण
इस सूक्त के ११ वे मन्त्र में भ्राता (भाई) तथा स्वसा (बहन) ये शब्द उल्लिखित हैं। अतः यम और यमी ये भाई-बहन थे ऐसी मान्यता दृढ होती है। तथापि यदि अर्थ का गहन चिन्तन करें, श्लोक का भाव देखें तो भ्राता और स्वसा इन शब्दों के उल्लेख का अर्थ समजता है।
किं भ्रातासद्यदनाथं भवाति किमु स्वसा यन्निर्ऋतिर्निगच्छात्।
काममूता बह्वे तद्रपामि मे तन्वं सं पिपृग्धि॥
इन मन्त्र में पत्नी भर्त्सना करती हुयी कहती है कि – क्या अब मै तुम्हारी पत्नी न होकर बहन हो गई हूँ? क्या तुम मेरे पति न होकर भाई हो, जो मैं अन्यत्र चली जाऊॅं?
अस्तु। इस विषय में अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग मतमतान्तर हैं।