वक्रतुण्ड महाकाय संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ।
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभकार्येषु सर्वदा॥
शब्दार्थ
शब्दशः हिन्दी में अनुवाद
- वक्रतुण्ड – वक्र सूंड है जिसकी
- महाकाय – बहुत बडा शरीर है जिसका
- कोटिसूर्यसमप्रभ – करोड़ो सूर्यों के समान प्रकाशमान
- निर्विघ्नम् – विघ्नरहित
- मे – मेरे
- देव – भगवन्, हे ईश्वर
- सर्वदा – हमेशा

अन्वय
वक्रतुण्ड महाकाय इस श्लोक को हिंदी में समझने के लिए शब्दों का सही क्रम
(हे) वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ देव, मे शुभकार्येषु सर्वदा निर्विघ्नं कुरु।
हिन्दी अर्थ
अन्वय के अनुसार हिंदी भाषा में अनुवाद
हे वक्रतुण्ड, बहुत बडे शरीर वाले, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान देव (गणेश)! मेरे शुभकार्योंको हमेशा विघ्नरहित करो।
कक्षा कौमुदी – वक्रतुण्ड महाकाय
वक्रतुण्ड
भगवान् गणेश को वक्रतुण्ड भी कहा जाता है। वस्तुतः वक्रतुण्ड इस शब्द का अर्थ होता है टेढ़ी सूंड वाला। परन्तु वक्रतुण्ड नाम से भगवान् गणेश ने एक अवतार भी लिया था। यह वक्रतुण्ड अवतार धारण करके गणेशजी ने मत्सरासुर नामक दैत्य को परास्त किया था।
और यह वक्रतुण्ड अवतार गणेश के प्रमुख ८ अवतारों में पहला अवतार था। संभवतः इसीलिए इस श्लोक का आरंभ वक्रतुण्ड इस शब्द से है।
गणेश प्रथमेश हैं। गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होती है। तथा गणेशजी को विघ्नहर्ता कहते हैं। इसीलिए किसी भी शुभकार्य के आरंभ में सभी विघ्नों का नाश करने की प्रार्थना गणेशजी से हम लोग करते हैं।
सर्वप्रथम इस श्लोक में
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ
इन शब्दों से गणेशजी की स्तुति करते हैं। और बाद में –
निर्विघ्नं कुरु मे देव
अर्थात् मेरे सभी शुभ काम निर्विघ्न कीजिए ऐसी प्रार्थना गणेशजी करते हैं।
श्लोक का संस्कृत भावार्थ
मानवाः प्रतिदिनं शुभकार्याणि कुर्वन्ति। तेषु शुभकार्येषु विघ्नानि कार्यनाशं न कुर्युः इति इच्छन् जनः सर्वप्रथमं गणेशस्य प्रार्थनां कुर्यात्। यतः गणेशः विघ्नहर्ता अस्ति। अतः अस्मिन् श्लोके सर्वप्रथमं – वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ इत्यादिभिः शब्दैः गणेशस्य स्तुतिः कृता अस्ति। तदनन्तरं विघ्नविनाशं करोतु इति प्रार्थना कृता अस्ति।
व्याकरण
समास
- वक्रतुण्ड
- वक्रा तुण्डा यस्य सः – वक्रतुण्डः। बहुव्रीहिः। वक्रतुण्ड इति संबोधनरूपम्।
- महाकाय
- महती काया यस्य सः – महाकाय। बहुव्रीहिः। महाकाय इति संबोधनरूपम्।
- कोटिसूर्यसमप्रभः
- कोटिभिः सूर्यैः समाना प्रभा यस्य सः – कोटिसूर्यसमप्रभः। विशेषणविशेष्यः तृतीयातत्पुरुषः, बहुव्रीहिः च। कोटिसूर्यसमप्रभ इति संबोधनरूपम्।
- निर्विघ्नम्
- विघ्नानाम् अभावः। अव्ययीभावः।
- शुभकार्येषु
- शुभानि कार्याणि शुभकार्याणि, तेषु शुभकार्येषु। विशेषणविशेष्यः।
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