वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। हिन्दी अर्थ। संस्कृत श्लोक
इस प्रसिद्ध श्लोक के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण को वन्दन किया जाता है।
संस्कृत श्लोक
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण
vasudevasutaṃ devaṃ kaṃsacāṇūramardanam।
devakīparamānandaṃ kṛṣṇaṃ vande jagadgurum॥
शब्दार्थ
शब्दशः हिन्दी में अनुवाद
- वसुदेवसुतम् – वसुदेवस्य पुत्रम्। वसुदेव के पुत्र को
- देवम् – देव को। जो दिव्य गुणों से युक्त होता है उसे देव कहते हैं।
- कंसचाणूरमर्दनम् – कंसचाणूरयोः हन्तारम्। कंस और चाणूर को मारनेवाले को
- देवकीपरमानन्दम् – देवकी के परम आनन्द को
- कृष्णम् – कृष्णको
- वन्दे – नमामि। मैं वन्दन करता हूँ
- जगद्गुरुम् – विश्वस्य गुरुम्। जगत् के गुरु को
अन्वय
श्लोक को हिन्दी में समझने के लिए शब्दों का सही क्रम
(अहं) वसुदेवसुतं कंसचाणूरमर्दनं देवकीपरमानन्दं जगद्गुरुं देवं कृष्णं वन्दे।
हिन्दी अर्थ
अन्वय के अनुसार श्लोक का हिन्दी में अनुवाद
मैं वसुदेव के पुत्र, कंस और चाणूर (जैसे राक्षसों को) मारने वाले, देवकी के परम आनन्द, पूरे विश्व के गुरु भगवान् कृष्ण को वन्दन करता हूँ।

इस श्लोक में समझने योग्य कुछ महत्त्वपूर्ण बातें
वसुदेव vs वासुदेव
बहुत से लोग वसुदेव और वासुदेव इन दोनों शब्दों में गल्लत करते हैं। इन दोनों के अंग्रेजी हिज्जे भी एक जैसे ही है –
Vasudev – वसुदेव / वासुदेव
परन्तु इन दोनों के अर्थ में अन्तर है। वसुदेव भगवान् कृष्ण के पिता हैं। और वासुदेव का अर्थ है वसुदेव के पुत्र।
उदाहरण
दशरथ – पिता। दाशरथ – दशरथ के पुत्र। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न
कंसचाणूरमर्दनम्
हम में से अधिकतर लोग कंस को तो जानते हैं। लेकिन चाणूर को अधिकांश लोग नहीं जानते हैं। कंस का एक मल्ल (पहलवान) था। जिसे कृष्ण ने कुश्ती में मार डाला था। और बाद में कृष्ण ने कंस को भी इसी तरह मारा था। इसीलिए भगवान् कृष्ण को कंसचाणूरमर्दनः कहते हैं। कंसचाणूरमर्दनः यानी कंस और चाणूर को मारने वाला। लेकिन श्लोक में कंसचाणूरमर्दनम् ऐसा लिखा है। इन दोनों के अर्थ को समझने का प्रयत्न कीजिए –
- कंसचाणूरमर्दनः – कंस और चाणूर को मारनेवाला
- कंसचाणूरमर्दनम् – कंस और चाणूर को मारनेवाले को
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्
श्लोक में भगवान् कृष्ण को जगद्गुरु कहा गया है। भगवान् कृष्ण ने अर्जुन के निमित्त से पूरे विश्व को जो भगवद्गीता के रूप में ज्ञान दिया है। इसी वजह से भगवान् कृष्ण जगद्गुरु कहलाते हैं।
तथा कृष्ण को जगद्गुरु एक और भी कारण से कहा जा सकता है। हमारी भारतीय संस्कृति में रामायण और महाभारत ये दो इतिहासग्रन्थ बहुप्रसिदध हैं। रामायण में भगवान् राम ने पूरी दुनिया को अपने वर्तन से दिखा दिया कि दुनिया कैसी होनी चाहिए। परन्तु महाभारत में भगवान् कृष्ण ने पूरी दुनिया को सिखाया की दुनिया वास्तव में कैसी है। और इस कपटी दुनिया से किस तरह से निपटना चाहिए। रामायण में रावण ने शौर्य से युद्ध किया था। और भगवान् राम ने भी रणांगण में ही अपने बल से रावण को जीता। परन्तु भगवान् कृष्ण ने सिखाया की यदि शत्रु कपटी हो, तो केवल रणांगण में शूरता दिखाने से काम नहीं चलता। राजनीति भी ज़रूरी होती है। वैसे देखा जाए तो सेना और बाहुबली योद्धाओं की संख्या से कौरवसेना बलवती थी। तथापि भगवान् कृष्ण ने पूरी दुनिया को सिखाया की राजनीति से कैसे कपटी शत्रु को हराया जा सकता है।
श्लोक को इस तरह से समझ सकते हैं –
इस श्लोक में क्रियापद क्या है?
वन्दे। यह क्रियापद में वन्द् यह धातु है। और उत्तम पुरुष एकवनच है। यानी इसके अन्दर अहम् यह कर्ता छुपा हुआ है। इसीलिए वन्दे का अर्थ होता है – अहं वन्दे। यानी – मैं वन्दन करता हूँ।
मैं किसे वन्दन करता हूँ?
इस प्रश्न का उत्तर बाकी बचा सम्पूर्ण श्लोक है। जैसे की –
- अहं वसुदेवसुतं वन्दे।
- मैं वसुदेव के पुत्र को वन्दन करता हूँ।
- अहं देवं वन्दे।
- मैं देव को वन्दन करता हूँ।
- अहं कंसचाणूरमर्दनं वन्दे।
- मैं कंस और चाणूर को मारनेवाले को वन्दन करता हूँ।
- अहं देवकीपरमानन्दं वन्दे।
- मैं देवकी को परम आनन्द देने वाले को वन्दन करता हूँ।
- अहं कृष्णं वन्दे।
- मैं भगवान् कृष्ण को वन्दन करता हूँ।
- अहं जगद्गुरुं वन्दे।
- मैं विश्व के गुरु को वन्दन करता हूँ।
इन सभी का कुल मिला कर कुछ ऐसा अर्थ होता है –
मैं वसुदेव के पुत्र, कंस और चाणूर (जैसे राक्षसों को) मारने वाले, देवकी के परम आनन्द, पूरे विश्व के गुरु भगवान् कृष्ण को वन्दन करता हूँ।
श्लोक का संस्कृत में भावार्थ
अनेन श्लोकेन भगवतः वन्दनं क्रियते। कृष्णः वसुदेवस्य पुत्रः अस्ति। कृष्ण तस्य मातुः देवक्याः परमानन्दस्य विषयः अस्ति। कृष्णेन कंसचाणूरादीनां राक्षसानां वधं कृत्वा भक्तरक्षणं कृतम्। अर्जुनस्य निमित्तेन भगवद्गीतां पाठयन् विश्वगुरुः कृष्णः सर्वेषां वन्दनीयः अस्ति। अतः भगवतः कृष्णस्य वन्दनं क्रियते।
व्याकरण
सन्धि
परमानन्द
- परम + आनन्द
- दीर्घसन्धि
जगद्गुरुम्
- जगत् + गुरुम्
- जश्त्व। वर्गीय पंचम वर्ण का तृतीय वर्ण में परिवर्तन
समास
वसुदेवसुतम्
- वसुदेवस्य सुतः – वसुदेवसुतः। तं वसुदेवसुतम्।
- षष्ठीतत्पुरुष
कंसचाणूरमर्दनम्
- कंसः च चाणूरः च कंसचाणूरौ।
- समाहारद्वन्द्व
- कंसचाणूरयोः मर्दनः – कंसचाणूरमर्दनः। तं कंसचाणूरमर्दनम्।
- षष्ठीतत्पुरुष
देवकीपरमानन्दम्
- परमः च सः आनन्दः परमानन्दः।
- विशेषणविशेष्य
- देवक्याः परमानन्दः – देवकीपरमानन्दः। तं देवकीपरमानन्दम्।
- षष्ठीतत्पुरुष
जगद्गुरुम्
- जगतः गुरुः – जगद्गुरुः। तं जगद्गुरुम्।
- षष्ठीतत्पुरुष
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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3 टिप्पणियाँ
पिंगबैक:
राजपाल रावल
मैं आपसे तुरन्त मिलना चाहता हूँ। भगवान् कृष्णके संदेश को आगे बढ़ाना है। कृपया सम्पर्क करें। 9991824899
मधुकर
श्रीकृष्णाय नमः