संस्कृत कथा

विचित्रः साक्षी

पाठ का पदच्छेद तथा हिन्दी अनुवाद

कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्।

कश्चन निर्धनः जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चित् वित्तम् उपार्जितवान्।

  • किसी गरीब मनुष्य ने बहुत ज्यादा परिश्रम कर के थोड़ा सा पैसा कमाया।

तेन वित्तेन स्वपुत्रम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलो जातः।

  • उस पैसों से अपने पुत्र को एक महाविद्यालय में प्रवेश दिलाने में सफल हो गया।

तत्तनयः तत्रैव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्।

तस्य तनयः तत्र एव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्।

  • उसका पुत्र वही छात्रावास में रहते हुए पढ़ाई में लीन हो गया।

एकदा स पिता तनूजस्य रुग्णतामाकर्ण्य व्याकुलो जातः

एकदा सः पिता तनूजस्य रुग्णताम् आकर्ण्य व्याकुलः जातः

  • एक बार वह पिता पुत्र की बीमारी की हालत को सुनकर चिन्तित हो गया

पुत्रं द्रष्टुं च प्रस्थितः।

  • और पुत्र को देखने के लिए निकल पड़ा।

परमर्थकार्श्येन पीडितः स बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्।

परम् अर्थ-कार्श्येन पीडितः सः बसयानं विहाय पदातिः एव प्राचलत्।

  • लेकिन पैसों के अभाव से पीडित वह बस को छोडकर पैदल ही चलने लगा।

पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत्।

पदातिक्रमेण संचलन् सायं समये अपि, असौ गन्तव्यात् दूरे आसीत्।

  • पैदल चलते हुए शाम के वक्त तक भी वह गन्तव्य से दूर था।

निशान्धकारे प्रसृते विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा’, एवं विचार्य

  • रात के अँधेरे में सुनसान प्रदेश में पैदल चलना ठीक नहीं है। ऐसा सोच कर

स पार्श्वस्थिते ग्रामे रात्रिनिवासं कर्तुं कञ्चिद् गृहस्थमुपागतः।

सः पार्श्वस्थिते ग्रामे रात्रिनिवासं कर्तुं कञ्चित् गृहस्थम् उपागतः।

  • वह पास ही मे गाँव में रात में रहने के लिए किसी एक घरवाले के पास गय।

करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।

  • दयालु घरवाले ने उस को शरण (Shelter) दी।

विचित्रा दैवगतिः।

  • नसीब का चक्कर विचत्र होता है।

तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः।

तस्याम् एव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृह-अभ्यन्तरं प्रविष्टः।

  • उस ही रात में उस घर में कोई चोर घर के अन्दर घुस गया।

तत्र निहिताम् एकां मञ्जूषाम् आदाय पलायितः।

  • वहाँ रखी हुए एक पेटी/बक्से को लेकर भाग गया।

चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धोऽतिथिः चौरशङ्कया तमन्वधावत् अगृह्णाच्च, परं विचित्रमघटत।

चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धः अतिथिः चौरशङ्कया तम् अन्वधावत् अगृह्णात् च, परं विचित्रम् अघटत।

  • चौर के पैरों की आवाज से मेहमान जाग गया, चोर की शंका से उस के पीछे भागा और पकडा, लेकिन विचित्र ही हुआ।

चौरः एव उच्चैः क्रोशितुमारभत “चौरोऽयं चौरोऽयम्” इति।

चौरः एव उच्चैः क्रोशितुम् आरभत “चौरः अयं चौरः अयम्” इति।

  • चोर ही जोर से चिल्लाने लगा – यह चोर है! यह चोर है! ऐसा।

तस्य तारस्वरेण प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः स्वगृहाद् निष्क्रम्य तत्रागच्छन्

  • उसके ऊंची आवाज से जाग गए गाँव में रहने वाले अपने घरों से बाहर निकल कर वहाँ आ गए

वराकमतिथिमेव च चौरं मत्वाऽभर्त्सयन्।

वराकम् अतिथिम् एव च चौरं मत्वा अभर्त्सयन्।

  • और बेचारे मेहमान को ही चोर मान कर बोलने लगे।

ग्रामस्य आरक्षी एव चौर आसीत्।

  • गाँव का रखवाला ही चोर था।

तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिं चौरोऽयम् इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत्।

  • उसी समय रखवाला उस मेहमान को ‘यह चोर है’  ऐसा कह कर कारगृह में फैंक दिया।

अग्रिमे दिने स आरक्षी चौर्याभियोगे तं न्यायालयं नीतवान्।

अग्रिमे दिने सः आरक्षी चौर्य-अभियोगे तं न्यायालयं नीतवान्।

  • अगले दिन उस रखवाले ने चोरी के आरोप में उसको न्यायालय में ले गया।

न्यायाधीशो बंकिमचन्द्रः उभाभ्यां पृथक्-पृथक् विवरणं श्रुतवान्।

  • न्यायाधीश बंकिमचन्द्र ने दोनों से अलग-अलग बात सुनी।

सर्वं वृत्तमवगत्य स तं निर्दोषम् अमन्यत आरक्षिणं च दोषभाजनम्।

सर्वं वृत्तम् अवगत्य सः तं निर्दोषम् अमन्यत आरक्षिणं च दोषभाजनम्।

  • सारी बात जानकर उन्होंने उसे निर्दोष माना और रखवाले को दोषी।

किन्तु प्रमाणाभावात् स निर्णेतुं नाशक्नोत्।

किन्तु प्रमाण-अभावात् सः निर्णेतुं न अशक्नोत्।

  • लेकिन सबूत के ना होने से वे निर्णय नहीं कर सके।

ततोऽसौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्।

ततः असौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्।

  • उसके बाद उन्हों ने उन दोनों को अगले दिन उपस्थित रहने के लिए आदेश दिया।

अन्येद्युः तौ न्यायालये स्व-स्व-पक्षं पुनः स्थापितवन्तौ।

अगले दिन उन दोनों ने न्यायालय में अपनी-अपनी बात फिर से बताई।

तदैव कश्चिद् तत्रत्यः कर्मचारी समागत्य न्यवेदयत् यत्

  • उसक बाद कोई वहीं का कर्मचारी आ कर निवेदन करता है कि

इतः क्रोशद्वयान्तराले कश्चिज्जनः केनापि हतः।

इतः क्रोश-द्वय-अन्तराले कश्चित् जनः केन अपि हतः।

  • यहाँ से दो कोस दूर कोई एक मनुष्य किसी के द्वारा मारा गया।

तस्य मृतशरीरं राजमार्गं निकषा वर्तते।

  • उस का मृतशरीर राजमार्ग के समीप है।

आदिश्यतां किं करणीयमिति।

  • आदेश दीजिए क्या करना है?

न्यायाधीशः आरक्षिणम् अभियुक्तं च तं शवं न्यायालये आनेतुम् आदिष्टवान्।

न्यायाधीश ने रखवाले को और मुजरिम को उस शव को न्यायालय में लाने के लिए आदेश दिया।

आदेशं प्राप्य उभौ प्राचलताम्।

  • आदेश पा कर दोनों चल पड़े।

तत्र उपेत्य काष्ठपटले निहितं पटाच्छादितं देहं स्कन्धेन वहन्तौ

  • वहाँ जा कर लकड़ियों में रखे हुए, कपडे से ढके हुए शरीर को कंधे पर ढोते हुए

न्यायाधिकरणं प्रति प्रस्थितौ।

  • न्यायालय की तरफ निकल पड़े।

आरक्षी सुपुष्टदेह आसीत्, अभियुक्तश्च अतीव कृशकायः।

  • रखवाला मजबूत शरीर वाला था, और (बेचारा) मुजरिम लुकडा / कमजोर (था)

भारवतः शवस्य स्कन्धेन वहनं तत्कृते दुष्करम् आसीत्।

  • भारी शव को कन्धे पर ढोना उस के लिए कठिन था।

स भारवेदनया क्रन्दति स्म।

  • वह भार की पीडा से रो रहा था।

तस्य क्रन्दनं निशम्य मुदित आरक्षी तमुवाच

तस्य क्रन्दनं निशम्य मुदितः आरक्षी तम् उवाच

  • उसका रोना सुनकर, खुश होकर रखवाला उसे कहता है

निशम्य = श्रुत्वा

रे दुष्ट! तस्मिन् दिने त्वया अहं चोरितायाः मञ्जूषायाः ग्रहणाद् वारितः।

  • अरे दुष्ट! उस दिन तूने मुझे चुराई हुई पेटी को लेने से रोका।

इदानीं निजकृत्यस्य फलं भुक्ष्व।

  • अब अपने किए का फल भुगतो।

अस्मिन् चौर्य-अभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे”

  • इस चोरी के आरोप में तुम्हे तीन साल की जेल मिलेगी।

इति प्रोच्य उच्चैः अहसत्।

  • ऐसा बोलकर जोर से हँसा।

यथाकथञ्चिद् उभौ शवम् आनीय एकस्मिन् चत्वरे स्थापितवन्तौ।

  • जैसे-तैसे दोनों ने शव को लाकर एक चबूतरे पर रख दिया।

न्यायाधीशेन पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ।

न्यायाधीशेन पुनः तौ घटनायाः विषये वक्तुम् आदिष्टौ।

  • न्यायाधीश ने फिर से उन दोनों को घटना के बारे में बोलने के लिए कहा।

आरक्षिणि निजपक्षं प्रस्तुतवति आश्चर्यम् अघटत्

  • रखवाले के अपनी बात प्रस्तुत करने पर आश्चर्य हुआ

स शवः प्रावारकमपसार्य न्यायाधीशमभिवाद्य निवेदितवान् –

सः शवः प्रावारकम् अपसार्य न्यायाधीशम् अभिवाद्य निवेदितवान्-

  • उस शव ने कपड़े को हटाकर न्यायाधीश को वन्दन कर के बताया –

मान्यवर! एतेन आरक्षिणा अध्वनि यत् उक्तं तद् वर्णयामि

  • मान्यवर! इस रखवाले ने रास्ते में जो कहा वह बताता हूँ।

‘त्वयाऽहं चोरितायाः मञ्जूषायाः ग्रहणाद् वारितः, अतः निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे’ इति।

न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डमादिश्य तं जनं ससम्मानं मुक्तवान्।

न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डम् आदिश्य तं जनं ससम्मानं मुक्तवान्।

  • न्यायाधीश ने रखवाले को कारावास की सजा सुनाकर उस मनुष्य को सम्मान के साथ मुक्त किया।

अतएवोच्यते –

अतः एव उच्यते –

  • इसलिए ही कहा जाता है –

श्लोक

दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः। नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव प्रकुर्वते॥

श्लोक का शब्दार्थ

  • दुष्कराणि – कठिन
  • अपि – भी
  • कर्माणि – काम
  • मतिवैभवशालिनः – दिमाग की दौलत वाले (होशियार लोग)
  • नीति – चाल
  • युक्ति – चालाकी, Idea
  • समालम्ब्य – इस्तेमाल कर के
  • लीलया – आसानी से
  • एव – ही
  • प्रकुर्वते – करते हैं।

श्लोक का अन्वय

मतिवैभवशालिनः दुष्कराणि अपि कर्माणि नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलया एव प्रकुर्वते।

श्लोक का हिन्दी अनुवाद

होशियार लोग कठिन भी काम चाल और चालाकी का प्रयोग कर के आसानी से ही कर लेते हैं।

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