श्लोक

शुचिपर्यावरणम्। श्लोक ३। वायुमण्डलं भृशं दूषितम्। CBSE कक्षा दशमी।

शुचिपर्यावरणम्

श्लोक ३

वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि…॥३॥

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वीडिओ

शब्दार्थ

  • वायुमण्डलम् – वातवरणम्। वातावरण, आबोहवा
  • भृशम् – अधिकम्। प्रभूतम्। बहुत ज़्यादा
  • दूषितम् – खराब
  • न – नहीं
  • हि – बिल्कुल
  • निर्मलम् – स्वच्छम्। साफ
  • जलम् – पानी
  • कुत्सितवस्तुमिश्रितम् – ख़राब चीज़ों की मिलावट वाला
  • भक्ष्यम् – अन्नम्। खाना
  • समलम् – मलिनम्। मलयुक्त
  • धरातलम् – पृथ्वी। धरित्री।
  • करणीयम् – कर्तव्यम्। करना चाहिए
  • बहिः – बाहर
  • अन्तः – अंदर
  • जगति – दुनिया में
  • तु – तो
  • बहु – बहुत ज़्यादा
  • शुद्धीकरणम् – स्वच्छताम्। सफाई

अन्वय

(साम्प्रतं) वायुमण्डलं भृशं दूषितं (जातम्)। निर्मलं जलं न हि (अस्ति)। भक्ष्यं कुत्सितवस्तुमिश्रितं (अस्ति)। धरातलं समलं (जातम्)। (अतः) जगति तु अन्तः बहिः बहुशुद्धीकरणं करणीयम्।

हिन्द्यर्थ

अभी वायुमंडल बहुत ज्यादा खराब हो चुका है। साफ पानी भी नहीं है। खाना भी ख़राब चीज़ों की मिलावट से बनता है। पृथ्वी मैली हो चुकी है। इसीलिए दुनिया में अंदर बाहर से बहुत सफाई करनी ज़रूरी है।

वायुमण्डलम्

वायुप्रदूषणम्
वायुप्रदूषणम्

इस श्लोक से पहले कवि ने कारखानों और सड़क पर चलने वाली गाड़ियों का जिक्र किया है। और यह बात साफ ज़ाहिर है कि कारखानों और गाड़ियों से ज़हरीला धुआँ निकलकर वायुमंडल में मिल जाता है। (हालांकि वायु प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार और भी बहुत सी चीज़ें हैं जिनका ज़िक्र कवि ने यहां नहीं किया है।) इस विषाक्त वायु के चलते हमारा वायुमंडल बहुत खराब हो चुका है।

न हि निर्मलं जलम्

जलप्रदूषणम्

वैसे तो मनुष्य को सूखा और अकाल सदियों से परेशान करते हुए आए हैं। हमने इतिहास में बहुत बार देखा है कि कहीं सूखा पड़ा है, कहीं अकाल है, लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। और ऐसी पानी की कमी आज भी बहुत जगह पर देखने को मिलती है।

लेकिन परेशानी की बात यह है कि जो पानी मिलता है वह भी पीने लायक है या नहीं इस बारे में सोचना पड़ता है। और इसकी वजह इंसान ही है। हम इंसानों ने ही अपने थोड़े से फायदे के लिए नदियों और तालाबों को खराब किया है। जो ज़हरीली वायु हम वातावरण में छोड़ रहे हैं उस वजह से कभी कभी आम्लवर्षा (एसिड रेन) हो जाती है। यानी आसमान से बरसने वाला पानी भी पीने लायक है या नहीं इस बात का भरोसा नहीं किया जा सकता।

कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यम्

शुचिपर्यावरणम्
कृषिक्षेत्रे औषधीनाम् उपयोगः

और रही बात भोजन की, तो आजकल का भोजन भी उतना पौष्टिक नहीं रहा है। प्रदूषण की वजह से प्रकृति के चक्र में उलटफेर हो रहे हैं। और इस वजह से किसानों को खेती करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। और मजबूरन उन्हें अपनी खेती में ज़हरीले खाद और खरपतवार नाशक का प्रयोग करना पड़ता है। और इस जहरीले द्रव्य का अंश अनाज में भी उतरता है। और इसी के चलते हमारा भोजन निकृष्ट होता जा रहा है।

शुचिपर्यावरणम्
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यम्
पहले ज़माने में सब लोग अपने घर का अन्न खाते थे। आजकल तो बाहर का खाना फैशन बन चुका है। और इस बात का बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता है कि बाहर का खाना अच्छा है या नहीं। क्योंकि बाहर का खाना केवल स्वाद को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है ना कि स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर।

समलं धरातलम्

इस प्रकार हवा, पानी और अन्न ये तीनों चीजें प्रदूषित होने की वजह से मनुष्य जीवन संकट में आ चुका है। ऐसा समझ लीजिए कि पूरी पृथ्वी की मैली हो चुकी है।

  • मल – मैला, गंदगी।
  • स+मल – मल के सहित।

और ऐसी दशा में मनुष्य को पूरी दुनिया में अंदर बाहर स्वच्छता करनी बहुत ज़रूरी है।

भावार्थ

साम्प्रतं मनुष्याणां स्वार्थकारणतः सर्वत्र वायुप्रदूषणं जातम्। जलम् अपि अशुद्धम् अभवत्। तथा च मनुष्यस्य भोजनम् अपि अशुद्धवस्तुभिः युक्तं जातम्। अतः अस्यां परिस्थितौ विश्वस्तरे सम्पूर्णस्य पर्यावरणस्य शुद्धता आवश्यकी अस्ति। नो चेत् मनुष्यस्य जीवनं कठिनं भविष्यति।

हिन्द्यर्थ

आजकल मनुष्य के स्वार्थ की वजह से हर जगह पर वायु प्रदूषण होता है। पानी
भी अशुद्ध हो चुका है। और साथ ही साथ मनुष्यों का भोजन भी अशुद्धि से युक्त हो चुका है। अतः ऐसी परिस्थिति में वैश्विक स्तर पर सम्पूर्ण पर्यावरण की शुद्धता करना आवश्यक है। अन्यथा मनुष्य का जीना कठिन होगा।
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व्याकरण

समासः

वायुमण्डलम्

  • वायोः मण्डलम्
    षष्ठी तत्पुरुषः।

निर्मलम्

कुत्सितवस्तुमिश्रितम्

  • कुत्सितं वस्तु – कुत्सितवस्तु
    कर्मधारय।
  • कुत्सितवस्तुभिः मिश्रितम्
    तृतीया तत्पुरुषः।

समलम्

धरातलम्

  • धरायाः तलम्
    षष्ठी तत्पुरुषः।

प्रत्ययः

  • दूषितम् – दूष् + क्त
  • करणीयम् – कृ + अनीयर्

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