श्लोक

शुचिपर्यावरणम् । श्लोक ४। कक्षा दशमी – शेमुषी । CBSE संस्कृतम्

कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहु दूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम्॥
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचिपर्यावरणम् …॥४॥

वीडिओ

शब्दार्थ

  • कञ्चित् – थोडे से
  • कालम् – समय के लिए
  • नय – लेकर जाओ
  • माम् – मुझे
  • अस्मात् – इस
  • नगरात् – नगर से
  • बहुदूरम् – बहुत दूर
  • प्रपश्यामि – देखता हूँ (यहाँ देखना चाहता हूँ)
  • ग्रामान्ते – गांव के अन्त पर (यानी गांव से बाहर)
  • निर्झरनदीपयःपूरम् – झरने, नदियाँ और पानी का सैलाब / तालाब
  • एकान्ते – निर्जनस्थाने। जहां कोई नहीं है ऐसी जगह पर
  • कान्तारे – वने। जंगल में
  • क्षणम् – पल भर के लिए
  • अपि – भी
  • मे – मेरा
  • स्यात् – हो जाए
  • सञ्चरणम् – घूमना

अन्वय

कञ्चित् कालं माम् अस्मात् नगरात् बहुदूरं नय। (अहं) ग्रामान्ते निर्झरनदीपयःपूरं प्रपश्यामि। एकान्ते कान्तारे क्षणम् अपि मे सञ्चरणं स्यात्।

हिन्दी में अर्थ

थोडे समय के लिए मुझे इस नगर से बहुत दूर ले जाओ। मैं गांव से बाहर पानी से भरपूर झरने, नदियाँ और पानी का सैलाब देखना चाहता हूँ। किसी एकान्त वन में थोडी देर मेरा घूमना ही हो जाए।

भावार्थ

पिछले तीन श्लोकों में शहरी जीवन की भयानकता का वर्णन करने के बाद अब कवि हमें आशा की एक नई किरण दिखा रहे हैं। इस श्लोक के साथ प्रकृति की सुन्दरता का वर्णन आरंभ होता है।

निर्झरनदीपयःपूरम्

कवि शहरी जीवन छोड़ कर वन जाना चाहते हैं। शहरों से दूर। जहाँ कोई अन्य मनुष्य ना हो। वहाँ कवि झरनों को देखना चाहते हैं। नदियों को देखना चाहते हैं। तालाबों को देखना चाहते हैं। शुचिपर्यावरणम् इस कविता के तीसरे श्लोक में कवि ने बताया ही है कि शहरों में पीनेयोग्य जल नहीं बचा है – न हि निर्मलं जलम् इति। इसीलिए कवि वन जाकर पानी का उमड़ता सैलाब देखना चाहते हैं। वहाँ का स्वच्छ, मधुर और प्रदूषणरहित बानी देखने के लिए मानो हमारे कवि बहुत बेताब है।
शुचिपर्यावरणम् - निर्जनं वनम्
निर्जनं वनम्

एकान्ते कान्तारे

द्वितीय श्लोक में कवि ने नगरों जमने वाली भीड़ के बारे में लिखा है। उस से ज्ञात होता है कि कवि शहरी भीड़ से भी ऊब गए हैं। अतः कवि निर्जन जंगल में घूमना चाहते हैं। इसीलिए कवि कहते है – एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। 

संस्कृत भावार्थ

नगरे प्रदूषणं दृष्ट्वा दुःखितः कविः वदति – कश्चन माम् अस्मात् नगरात् कंञ्चित् कालं दूरं नयतु इति। तत्र ग्रामाद् बहिः सः जलपूरितान् निर्झरान् नदीः जलप्रवाहान् च द्रष्टुम् इच्छति। तथैव च क्षणं यावत् कविः निर्जनवने भ्रमणं कर्तुम् इच्छति।

हिन्दी में अर्थ

नगरों में प्रदूषण देखकर दुखी कवि कहते हैं, “कोई मुझे इस नगर से थोडी देर के लिए दूर लेकर जाए।” वहां गांव से बाहर कवि झरनों, नदियों और जल के प्रवाहों को देखना चाहते हैं। और तनिक निर्जन वन में कवि घूमना चाहते हैं।

व्याकरण

सन्धि

अस्मान्नगराद् बहुदूरम्
ग्रामान्ते
  • ग्राम + अन्ते
  • सवर्णदीर्घः

समास

ग्रामान्ते
  • ग्रामस्य अन्ते
  • षष्ठीतत्पुरुषः।
निर्झरनदीपयःपूरम्

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