श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्
बहुत सारे लोग धर्म के पीछे पड़े रहते हैं। धर्म किसे कहते हैं? धर्म किसे कहते हैं? परन्तु ज्यादातर लोगों के लिए धर्म के तत्त्व को समझना बहुत कठिन हो जाता है, अथवा उनको धर्म समझता ही।
परन्तु विदुरनीति में धर्म को केवल एक ही पंक्ति में समझाया गया है। जिस धर्म का सार है। बस इस एक बात को समझ लीजिए, इतना ही काफी है।
विदुरनीति में महात्मा विदुर जी कहते हैं –
संस्कृत श्लोक
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्॥
श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण
śrūyatāṃ dharmasarvasvaṃ śrutvā caivāvadhāryatām।
ātmanaḥ pratikūlāni pareṣāṃ na samācaret॥
श्लोक का शब्दार्थ
- श्रूयताम् – सुनिए
- धर्मसर्वस्व – धर्म के बारे में सब कुछ
- श्रुत्वा – सुन कर
- च – और
- एव – ही
- अवधार्यताम् – समझ लीजिए
- आत्मनः – खुद के लिए
- प्रतिकूलानि – विपरीत, जो अनुकूल नहीं है
- परेषाम् – दूसरों के लिए
- न – नहीं
- समाचरेत् – आचरण करना चाहिए
श्लोक का अन्वय
धर्मसर्वस्वं श्रूयतां, श्रुत्वा च एव अवधार्यताम्। (यानि) आत्मनः प्रतिकूलानि (तानि) परेषां न समाचरेत्॥
श्लोक का हिन्दी अनुवाद
धर्म का सार सुनिए, और सुन कर ही समझ लीजिए। जो कुछ खुद के लिए विपरीत है, वैसा दूसरों के लिए आचरण नहीं करना चाहिए।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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