संस्कृत काव्यशास्त्र
काव्य शास्त्र में हम संस्कृत साहित्य से संबंधित कार्य का अभ्यास करेंगे।
काव्य की परिभाषा
वैसे सामान्य व्यवहार में देखा जाए,काव्य का अर्थ बहुत सारे लोग केवल कविता इतना ही लेते हैं। परंतु शास्त्र के अनुसार ऐसा नहीं है।
यूं तो संस्कृत भाषा में अनेकों विद्वानों ने काव्य की व्याख्या अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार की है। वह एक गंभीर विषय है। हम छात्रों को बस इतना ध्यान में रखना चाहिए कि, काव्य का अर्थ केवल कविता इतना नहीं होता है। जो कविता है वह तो काव्य है ही, परंतु जो कविता नहीं है वह कथा, नाटक आदि सब काव्य ही है। जिसे हम कविता कहते हैं उसे शास्त्र में पद्य कहा जाता है। बाकी बचा गद्य कहलाता है।
काव्य के तीन भेद
संस्कृत विद्वानों ने काव्य के तीन भेद किए हैं।
- उत्तम काव्य।
जिस काव्य में वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ अधिक उत्कृष्ट होता है उसे उत्तम काव्य कहते हैं।
- मध्यम काव्य।
मध्यम काव्य में वाच्यार्थ के समान ही व्यंग्यार्थ गौण किन्तु उत्कृष्ट अथवा निकृष्ट होता है।
- अधम काव्य।
अधम काव्य मे किसी भी प्रकार का व्यंग्यार्थ नहीं होता है। किन्तु अलंकारों की ज्यादती होती है।
संस्कृत काव्य में सम्प्रदाय
संस्कृत काव्यशास्त्र में प्रचलित सम्प्रदाय और संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य का नाम यहाँ पर हम दे रहे हैं।
- रस सम्प्रदाय – भरतमुनि
- अलंकार संप्रदाय – भामह
- रीति सम्प्रदाय – वामन
- ध्वनि सम्प्रदाय – आनन्दवर्धन
- वक्रोक्ति सम्प्रदाय – कुन्तक
- औचित्य सम्प्रदाय – क्षेमेन्द्र
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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