साहित्य

संस्कृत महाकाव्य

महाकाव्य के लक्षण

दण्डी के अनुसार महाकाव्य के लक्षण –

  • महाकाव्य में सर्ग होने चाहिए।
  • आरम्भ में आशीर्वाद, वंदना अथवा किसी वस्तु का वर्णन होना चाहिए।
  • महाकाव्य का फल धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चारों की प्राप्ति में निहित होना चाहिए।
  • महाकाव्य का नायक चतुर और उदात्त होना चाहिए।
  • महाकाव्य में नगर, समुद्र आदि प्रकृतिक तथा विवाह, कुमारजन्म, मन्त्रणा इत्यादि के साथ नायका अभ्युदय होना चाहिए।
  • महाकाव्य में रस और भावों का निरंतर संचरण हो।
  • महाकाव्य में मुख-प्रतिमुख आदि सन्धियों का समावेश होना चाहिए।

महाकाव्य की उत्पत्ति

भारतीय प्राचीन परंपरा में काव्यपुरुष की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी गई है।

महाकाव्य का विकास

संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि जी को आदिकवि तथा उनके रामायण को आदिकाव्य कहा जाता है। इसी तरह से संस्कृत महाकाव्यों में महाभारत का भी बहुत बड़ा महत्त्व है। इन दोनों ग्रन्थों को देखकर बाद में बहुतेरे कवियों ने प्रेरणा ले कर अपनी अपनी रचनाएं की।

संस्कृत महाकाव्य के प्रमुख रचनाकार

अश्वघोष

अश्वघोष एक बौद्ध कवि थे। जिनकी प्रमुख रचनाएं हैं – बुद्धचरित, शारिपुत्र प्रकरण, वज्रसूची, महायान श्रद्धोत्पाद, सूत्रालंकार, कल्पना मंडितिका

कालिदास

कालिदास की जीवनी के बारे में कोई भी ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है। केवल अनुमान ही कर सकते हैं। तथापि कालिदास संस्कृत के सर्वश्रेष्ठ कवि कहलाते हैं। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं –

  • महाकाव्य (२)
    • कुमारसंभव
    • रघुवंश
  • खंडकाव्य (२)
    • ऋतुसंहार
    • मेघदूत
  • रूपक (३)
    • विक्रमोर्वशीय
    • अभिज्ञानशाकुन्तल
    • मालविकाग्निमित्र

भारवि

कवि भारवी का एकमात्र ग्रन्थ उपलब्ध है – किरातार्जुनीय

माघ

इनका भी एक ही ग्रन्थ उपलब्ध है – शिशुपालवध

श्रीहर्ष

इनके ग्रन्थ – नैषधीयचरित, स्थैर्यविचारणप्रकरण, खण्डनखण्डखाद्य, अर्णववर्णन, शिवशक्तिसिद्धि, विजयप्रशस्ति, गोडोर्वीशकुलप्रशस्ति, छिन्दप्रशस्ति, नवसाहसांकचरितचम्पू

बिल्हण

इनका एकमात्र ग्रन्थ – विक्रमांकदेवचरित

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