सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः। शब्दार्थ अन्वय श्लोक का हिन्दी अनुवाद
सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः।
यदि दैवात्फलं नास्ति छाया केन निवार्यते॥
श्लोक का पदच्छेद और शब्दार्थ
- सेवितव्यः – सेवा करनी चाहिए, पालना चाहिए
- महावृक्षः – विशालवृक्षः। बड़ा पेड़
- फलच्छायासमन्वितः – फल और छाया वाला
- यदि – अगर
- दैवात् – नसीब से / समय से
- फलम् – फल
- न – नहीं
- अस्ति – है
- छाया – छाव
- केन – किस के द्वारा
- निवार्यते – हटाई जाती है
श्लोक का अन्वय
फलच्छायासमन्वितः महावृक्षः सेवितव्यः। यदि दैवात् फलं नास्ति, (तर्हि वृक्षस्य) छाया केन निवार्यते।
श्लोक का हिन्दी अनुवाद
(भरपूर) फलों और छाव से युक्त बहुत बड़े पेड़ की सेवा करनी चाहिए। अगर नसीब से / काल से फल ना हो, तो उस पेड़ की छाव को कौन हटाता है।
श्लोक का भावार्थ
इंसान को कोई बड़े पेड़ को लगाना, पोसना, पालना चाहिए। यानी उस पेड़ की सुरक्षा करना, उसको पानी और खाद देना इ॰। ताकि उसके फल भी मिले और धूप में बैठने के लिए छाव भी मिल सके।
लेकिन नसीब से यदि कभीकबार फल ना मिले तो, उसकी छाया तो मिलेंगी ही। उसकी छाया को कौन ले जा रहा है। यानी ऐसे बड़े पेड से फायदा तो होगा ही। यदि फल ना मिले, तो छाया तो जरूर मिलेंगी है।
व्याकरण
सन्धिः
सेवितव्यो महावृक्षः
फलच्छाया
- फल + छाया
- तुगागम सन्धि
नास्ति
- न + अस्ति
- सवर्ण दीर्घ सन्धि
समासः
फलच्छायासमन्वितः
- फलानि च छाया च – फलच्छायाः …. इतरेतर द्वन्द्व
- फलच्छायाभिः समन्वितः – फलच्छायासमन्वितः …. तृतीया तत्पुरुष समास
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