।। अथ मङ्गलम् ।।
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
महायोगपीठे तटे भीमरथ्याः वरं पुण्डरीकाय दातुं मुनीन्द्रैः।
समागत्य तीष्ठन्तमानन्दकन्दं परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम्।।
नमामि शारदां देवीं वीणापुस्तकधारिणीं।
विद्यारम्भं करिष्यामि प्रसन्नास्तु च सा सदा।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगरवे नमः।।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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