श्लोक

१०.०३ व्यायामः सर्वदा पथ्यः। १०. हमारी आधी शक्ति समाप्त हो चुकी है यह कैसे पता करें?

३. व्यायामः सर्वदा पथ्यः।

कक्षा दशमी। शेमुषी।

दशमः श्लोकः

हृदिस्थानस्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते।
व्यायामं कुर्वतो जन्तोस्तद्बलार्धस्य लक्षणम्॥१०॥

शब्दार्थ

  • हृदिस्थानस्थितः – छाती में स्थित (रहनेवाला)
  • वायुः – हवा
  • यदा – जब
  • वक्त्रम् – मुखम्। 
  • प्रपद्यते – प्राप्नोति। पहुंचता है
  • व्यायामम् – व्यायाम
  • कुर्वतः – करनेवाले
  • जन्तोः – जीवस्य। प्राणिनः। (मनुष्यस्य)। 
  • तत् – वह
  • बलार्धस्य – आधी शक्ति का
  • लक्षणम् – निशान

अन्वय

यदा व्यायामं कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थानस्थितः वायुः वक्त्रं प्रपद्यते, तत् बलार्धस्य लक्षणम् (भवति)

जब व्यायाम करने वाले मनुष्य के फेफडों में रहने वाला वायु (सांस) मुंह तक पहुंच जाता है, (तो) वह आधे बल का निशान होता है।

हमने पिछले श्लोक में पढा है कि व्यायाम कब तक किया जाना चाहिए। हमारा पूर्वोक्त श्लोक कहता है कि  मनुष्य ने अपनी आधी शक्ति खत्म होने तक ही हररोज व्यायाम करना चाहिए। अन्यथा हमारी हानि हो सकती है। परन्तु व्यायाम करते समय हम कैसे समझ सकते हैं कि हमारी आधी शक्ति समाप्त हो चुकी है?
इसका उत्तर यह श्लोक देता है। यह श्लोक कहता है कि हृदिस्थान में स्थित वायु यानी हमारे फेफडों में जो हवा होती है वह जब मुंह में आने लगती है, यानी सांस फूलने लगती है, तो हम समझ जाना चाहिए कि अब हमारी आधी शक्ति समाप्त हो चुकी है। अब हमें अपना व्यायाम रोक देना चाहिए।

भावार्थः
मनुष्यः पूर्णशक्त्या व्यायामं न कुर्यात्। केवलं अर्धबलेन एव व्यायामः करणीयः। परन्तु अर्धबलम् अवशिष्टम् इति कथं ज्ञायेत? तद् अनेन श्लोकेन ज्ञायते। व्यायामं कुर्वतः जनस्य हृदये स्थितः वायुः यदि मुखे आगच्छति तर्हि तत् अर्धबलस्य लक्षणं मन्यते।

भावार्थस्य हिन्द्यर्थः
मनुष्य को पूरी शक्ति से व्यायाम नहीं करना चाहिेए। केवल आधे बल से ही व्यायाम करना चाहिए। लेकिन – आधा बल बच गया है – ऐसा कैसे समझेगा? वह इस श्लोक से समझता है। व्यायाम करने वाले मनुष्य के हृदय में मौजूद साँस अगर मुंह में आने लगती है (यानी साँस फूलने लगती है) तो वह आधे बल का लक्षण माना जाता है।

परीक्षा की दृष्टि से अभ्यास के लिए इस कड़ी (लिंक) पर जाएं –

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSd_4APJxQltsuGN3k-9dgq0V_WXJsR_Ky_BkPwtr1wEOMVsRA/viewform?usp=sf_link 

व्याकरण

  • हृदिस्थानस्थितः
    • हृदि स्थानम् – हृदिस्थानम्। इति सप्तमीतत्पुरुषः।
    • हृदिस्थाने स्थितः – हृदिस्थानस्थितः। इति सप्तमीतत्पुरुषः।
  •  हृदिस्थानस्थितो वायुः – हृदिस्थानस्थितः + वायुः। इति उत्वसन्धिः।
  • वायुर्यदा – वायुः + यदा। इति रुत्वसन्धिः।
  • कुर्वतो जन्तोः – कुर्वतः + जन्तोः। इति उत्वम्।
  • कुर्वतः – कृ + शतृप्रत्ययः। षष्ठी विभक्तिः।
  • जन्तोस्तत् – जन्तोः + तत्। इति सत्वसन्धिः। विसर्गस्य स्।
  • बलार्धस्य – 
    • बल + अर्धस्य। इति सवर्णदीर्घसन्धिः।
    • बलस्य अर्धस्य। इत षष्ठीतत्पुरुषः समासः।

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