१०.०३ व्यायामः सर्वदा पथ्यः। ०७. व्यायाम करने वाला कुछ भी हजम कर लेता है।
३. व्यायामः सर्वदा पथ्यः।
कक्षा दशमी। शेमुषी।
सप्तमः श्लोकः
व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते॥७॥
शब्दार्थ –
- व्यायामम् – कसरत
- कुर्वतः – करने वाले का
- नित्यम् – सदा। सदैव। हमेशा
- विरुद्धम् – विपरीतम्। उलटा
- अपि – भी
- भोजनम् – खाना
- विदग्धम् – पक्वम्। पका हुया
- अविदग्धम् – अपक्वम्। जो पका हुआ नहीं है
- वा – अथवा। या
- निर्दोषम् – बिना किसी परेशानी/गडबडी के,
- परिपच्यते – हजम हो जाता है
अन्वय –
नित्यं व्यायामं कुर्वतः विरुद्धम् अपि भोजनम् , विदग्धम् अविदग्धं वा, निर्दोषं परिपच्यते।
हमेशा व्यायाम करनेवाले का विरुद्ध भी भोजन, पका हो या ना हो, बिना किसी गडबडी के पच जाता है।
इस श्लोक में विरुद्ध भोजन यह एक बात कही है। यहाँ विरुद्ध का अर्थ है ऋतु या काल के विरुद्ध। यदि व्यायाम करने वाला ऋतु या समय के हिसाब उलटा भी अगर कुछ खा ले, वह कच्चा हो या पका हुआ, उसकी अन्नपचन की शक्ति इतनी मजबूत रहती है कि वह खाया हुआ सबकुछ पच जाता है।
जैसे कि हम जानते हैं – गर्मी के समय में हमें ठंडी चीजें खानी चाहिए। जैसे कि शीतपेय, पानीदार फल। और गर्मी के मौसम में यदि हम उष्णता से भरपूर चीजें खा लेते हैं, तो परेशानी होती है। परन्तु व्यायाम करने वाला गर्मी में भी उष्ण चीजे खा सकता है और सर्दी में भी ठंडी चीजे खा सकता है।
भावार्थ –
ये जनाः नित्यं व्यायामं कुर्वन्ति ते यदि ऋतु-कालादिभिः विरुद्धम् अपि भोजनं कुर्वन्ति, तर्हि अपि तत् अन्नं पच्यते। तेषां भोजनं यदि पक्वम् वा अपक्वम् वा अपि भवेत्, तत् भोजनम् अपि पच्यते। अतः सर्वैः व्यायामः करणीयः।
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व्याकरण –
- कुर्वतः
- कृ + शतृ – कुर्वत्। इति शतृप्रत्ययः। करोति – करता है। कुर्वत् – करने वाला।
- कुर्वत् + अः – कुर्वतः। इति षष्ठीविभक्तिः। करने वाले का।
- अविदग्धम् – न विदग्धम्। इति नञ् – तत्पुरुषः।
- निर्दोषम् – दोषस्य / दोषाणाम् अभावः। इति अव्ययीभावसमासः।
- पच्यते – पच् + कर्मवाच्य।
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