१०.०३ व्यायामः सर्वदा पथ्यः। ०३. व्यायाम से सहिष्णुता (सहनशीलता) और आरोग्य की प्राप्ति।
पाठ ३. व्यायामः सर्वदा पथ्यः।
कक्षा दशमी। शेमुषी।
तृतीयः श्लोकः
श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते॥३॥
शब्दार्थ –
- श्रम – परिश्रम, मेहनत
- क्लम – थकान
- पिपासा – तृष्णा, प्यास
- उष्ण – गर्मी
- शीत – ठंड
- आदीनाम् – इन सभी की
- सहिष्णुता – सहनशक्ति, सहने की क्षमता
- आरोग्यम् – नीरोगता, हेल्थ
- च – और
- अपि – भी
- परमम् – उत्तम, श्रेष्ठ
- व्यायामात् – व्यायाम से
- उपजायते – उत्पन्न होते हैं
अन्वय –
व्यायामात् श्रम-क्लम-पिपासा-उष्ण-शीत-आदीनां सहिष्णुता अपि च परमं आरोग्यम् उपजायते।
व्यायाम से परिश्रम, थकान, प्यास, गर्मी, ठंडक आदि को सहन करने की क्षमता और भी उत्तम आरोग्य उत्पन्न होता है।
इस श्लोक में दो बातों का जिक्र किया गया है। एक है सहिष्णुता और दूसरी बात है आरोग्य।
सहिष्णुता यानी सहनशीलता। हमरे जीवन में थकान, प्यास, ठंडी, गर्मी जैसी अनेको विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं। उनको सहने की शक्ति हमें व्यायाम से मिलती है।
और दूसरी बात है आरोग्य। यह शब्द बना अरोग इस शब्द से। अरोग यानी रोग ना होना। और आरोग्य यानी रोग ना होनी की स्थिति। यानी व्यायाम करने से हम कुछ ऐसी परिस्थिति में आ जाते हैं कि हमें रोग होते ही नहीं। अब इसके लिए समानार्थी शब्द है नीरोगता। इस नीरोगता शब्द के बारे में हमेशा ध्यान रहे कि नी का इकार हमेशा दीर्घ ही रहे। इसे निरोगता ऐसे नहीं लिखते। क्यों की यहाँ विसर्ग सन्धि है। निः+रोग – नीरोग। और नीरोग शब्द से तल् प्रत्यय से नीरोगता यह शब्द सिद्ध हुआ है।
भावार्थ –
यः मनुष्यः प्रतिदिनं व्यायामं करोति सः परिश्रमः, श्रान्तिः, तृष्णा, उष्णता, शीतलता च इत्यादीनां सहनं कर्तुं शक्नोति। तथैव व्यायामी मनुष्यः उत्तमम् आरोग्यम् अपि प्राप्नोति।
भावार्थस्य हिन्द्यर्थः –
जो मनुष्य हररोज व्यायाम करता है वह मेहनत, थकान, प्यास, गर्मी और ठंडी इत्यादि का सहन कर सकता है। और व्यायम करने वाला मनुष्य अच्छा आरोग्य भी पाता है।
व्याकरणम् –
- श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनाम्
- श्रमः च क्लमः च पिपासा च उष्णं च शीतं च – श्रमक्लमपिपासोष्णशीतानि। इति इतरेतरद्वन्द्वः।
- श्रमक्लमपिपासोष्णशीतानि आदीनि येषां ते – श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादयः। इति बहुव्रीहिः समासः।
- श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादयः। तेषां श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनाम्। इति षष्ठी विभक्तिः।
- पिपासोष्ण – पिपासा + उष्ण। इति गुणसन्धिः।
- शीतादीनाम् – शीत + आदीनाम् । इति दीर्घसन्धिः।
- सहिष्णुता – सहिष्णु + तल्। इति प्रत्ययः।
- चापि – च + अपि। इति दीर्घसन्धिः।
- व्यायामादुपजायते – व्यायामात् + उपजायते। इत जश्त्वसन्धिः। कचटतप – गजडदब।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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