१०.०३ व्यायामः सर्वदा पथ्यः। ११. इन छः बातों के देख कर व्यायाम करना चाहिए।
०३. व्यायामः सर्वदा पथ्यः।
कक्षा दशमी। शेमुषी।
एकादशः श्लोकः
वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च।
समीक्ष्य कुर्याद् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात्॥११॥
शब्दार्थ
- वयोबलशरीराणि – उम्र, ताकत और शरीर
- देशकालाशनानि – इलाका, समय और भोजन
- च – और
- समीक्ष्य – देखकर
- कुर्यात् – करना चाहिए
- व्यायामम् – व्यायाम
- अन्यथा – नहीं तो
- रोगम् – बीमारी
- आप्नुयात् – प्राप्त करें
अन्वय
(मनुष्यः) वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च समीक्ष्य (एव) व्यायामं कुर्यात्। अन्यथा (सः) रोगम् आप्नुयात्।
मनुष्य ने (अपनी) उम्र, ताकत, शरीर, (जहां रह रहा हैं वह) इलाका, समय (ऋतु वगैरह) और भोजन (इन सभी चीजों को) देख कर ही व्यायाम करना चाहिए। नहीं तो वह रोग को प्राप्त करेगा।
यह प्रस्तुत पाठ का अन्तिम श्लोक है। इस श्लोक में कहा गया है कि हमें व्यायाम तो करना ही चाहिए लेकिन कुछ चीजों का ध्यान रखकर। और वे चीजें हैं – वयः (उम्र), बलम् (ताकत), शरीरम्, देशः (इलाका), कालः (समय/ऋतु) और अशनम् (भोजन)।
वयः
उम्र के हिसाब से हमें अलग अलग व्यायाम पद्धति चुननी चाहिए। छोटे बच्चें और वयोवृद्ध लोगों को ज्यादा मुश्किल और भारी भरकम व्यायाम नहीं करने चाहिए। और युवकों को भी अपनी मर्यादा में रहकर ही व्यायाम करना चाहिए।
बलम्
अपने शरीर में जितनी शक्ति है उसके अनुसार ही व्यायाम करना चाहिए। अगर दो मित्रों ने व्यायाम करना आरम्भ किया और उसमें से एक को यदि पता चले की मेरा मित्र (दूसरा) ज्यादा व्यायाम करता है। तो हो सकता है कि पहला ईर्ष्या से उसके जितना ही व्यायाम करने की चेष्टा करेगा। परन्तु ध्यान रहे कि हर कोई काम करता है तो अपनी क्षमता के अनुरूप काम करता है। हमने पिछले दो श्लोक यानी श्लोक क्र॰ ९ और श्लोक क्र॰ १० में देखा है कि हमे व्यायाम कितना और कितनी देर तक करना चाहिए। उसके अनुसार ही सभी को व्यायाम करना चाहिए। और हमारे मित्र को या अन्य किसी को देखर उसके जितना व्यायाम तो कभी भी नहीं करना चाहिए।
शरीरम्
प्रत्येक व्याक्ति का शरीर अद्वितीय (Unique) होता है। प्रत्येक व्यक्ति की जीवनशैली भिन्न होती है। कुछ लोग दिन में ज्यादातर समय बैठे रहते हैं और कुछ लोगों का काम ही दिन भर घूमने का होता है। तो इस स्थिति में यह बात स्पष्ट है कि दोनों को भी अलग अलग प्रकार के व्यायाम की आवश्यकता होगी।
आजकल मैं ने ज्यादातर विद्यालयों में पढने वाले छात्रों का निरीक्षण करके यह पाया की छात्र अधिकांश समय तक अपनी गर्दन नीचे झुकाकर रहते हैं।
पढते समय गर्दन नीचे।
लिखते समय गर्दन नीचे।
मोबाईल इत्यादि पर गर्दन नीचे।
कक्षा में शिक्षक डांटे तो गर्दन नीचे।
अब ऐसी परिस्थिति में छात्रों को सोचना चाहिए की हम दिन भर में ऊपर कितनी बार देखते हैं? अगर नहीं तो उन्हे ऐसे व्यायाम भी अपने जीवनकाल में शामिल करने चाहिए जिनमें ऊपर देखने का काम पडे।
पढते समय गर्दन नीचे।
लिखते समय गर्दन नीचे।
मोबाईल इत्यादि पर गर्दन नीचे।
कक्षा में शिक्षक डांटे तो गर्दन नीचे।
अब ऐसी परिस्थिति में छात्रों को सोचना चाहिए की हम दिन भर में ऊपर कितनी बार देखते हैं? अगर नहीं तो उन्हे ऐसे व्यायाम भी अपने जीवनकाल में शामिल करने चाहिए जिनमें ऊपर देखने का काम पडे।
देशः
हम जहाँ रहते हैं उस प्रदेश में जिस किस्म का अनाज और फल उगते हैं वे हमारे लिए श्रेष्ठ होते हैं। परन्तु यदि हम किसी कारणवश अपना प्रदेश छोड कर अन्य जगह जाएं तो वहां का अन्न संभवतः हमें हजम ना हो। जैसे कि उत्तर भारत में गेहूं ज्यादातर खाया जाता है तो इसके विपरीत दक्षिण भारत में चावल। इस परिस्थिति में हमे खुद का सन्तुलन बनाए रखना जरूरी होता है। अपचन होने की स्थिति में अपने व्यायाम पर भी इस का परिणाम जरूर होगा।
साथ ही साथ प्रदेश बदलने से मौसम में भी बदलाव देखने को मिलता है। उत्तर भारत किंचित शीतल है तो दक्षिण भारत में उष्णता ज्यादा है। और हम इस बात का अनुभव कर सकते हैं कि शीतलता के समय हम अधिक व्यायाम करन में आनन्त मिलता है। परन्तु उतना ही व्यायाम उष्णता के समय करना मुष्किल हो जाता है। इसीलिए प्रस्तुत श्लोक कहता है कि देश को भी देख कर व्यायाम करना चाहिए।
कालः
यहाँ पर काल से मतलब है काल के अनुसार वातावरण में होने वाले बदलाव। यानी ऋतुएं। अलग अलग ऋतुकालों में बदलते वातावरण का परिणाम शरीर पर होते रहता है। और हमें व्यायाम में उसके अनुरूप बदलाव करने पडते हैं।
अशनम्
अशन इस शब्द का अर्थ होता है भोजन। यानी हम क्या खाते हैं? कितना खाते हैं? इस चीज को देखकर हमें व्यायाम करना चाहिए। अब यह तो जाहिर सी बात है कि यदि हम ज्यादा खाना खाते हैं, भारी भरकम खाना खाते हैं तो हमे व्यायाम भी ज्यादा ही करना पडेंगा।
और अगर हम इन बातों को देख कर व्यायाम नहीं करेंगे, तो हमें बीमारियों का शिकार बनना पडेंगा।
भावार्थः
व्यायामस्य महत्त्वं सर्वे जानन्ति। तथापि व्यायामे सावधानता भवेत्। मनुष्यः यदि व्यायामं कर्तुम् इच्छति तर्हि सः व्यायामः वयः बलं शरीरं देशं कालम् अन्नं च दृष्ट्वा यथायोग्यरीत्या करणीयः। तदनुरूपं व्यायामं यदि मनुष्यः न करोति तर्हि रोगाः भवितुं शक्नुवन्ति।
भावार्थस्य हिन्द्यर्थः
व्यायाम का महत्त्व सब जानते हैं। तथापि व्यायाम में सावधानता होनी चाहिए। मनुष्य यदि व्यायाम करना चाहता है तो वह व्यायाम उम्र, ताकत, शरीर, जगह, समस तथा खाए जाने वाले अनाज को देखकर सही तरीके से किया जाना चाहिए। इन के अनुरूप व्यायाम यदि मनुष्य नहीं करता है तो रोग हो सकते हैं।
परीक्षा की दृष्टि से अभ्यास के लिए प्रश्न –
व्याकरण
- वयोबलशरीराणि
- वयः + बल। इति उत्वसन्धिः।
- वयः च बलं च शरीरं च – वयोबलशरीराणि। इति इतरेतर – द्वन्द्व – समासः।
- देशकालाशनानि
- काल + अशनानि। इति सवर्णदीर्घसन्धिः।
- देशः च कालः च अशनं च – देशकालाशनानि। इत इतरेतर – द्वन्द्व – समासः।
- समीक्ष्य – सम् + ईक्ष् + ल्यप्। उपसर्गः + धातुः + प्रत्ययः।
- कुर्याद् व्यायामम् – कुर्यात् + व्यायामम्। इति जश्त्वसन्धिः। कचटतप – गजडदब।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
Related
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
वक्रतुण्ड महाकाय संस्कृत श्लोक हिन्दी अर्थ।
26/06/2020
संस्कृत में समय लेखन How to write time in Sanskrit
21/01/2020