श्लोक

१०.०९ सूक्तयः। ०२. अवक्रता यथा चित्ते

९. सूक्तयः

कक्षा दशमी। शेमुषी

द्वितीयः श्लोकः

अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि।
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः॥

शब्दार्थः –

  • अवक्रता – सरलता। सीधापन, टेढा ना होना
  • यथा – यादृशी। जैसे
  • चित्ते – मनसि।  मन में
  • तथा – तादृशी। वैसे
  • वाचि – वाण्याम्। वाणी में, बोलने में
  • भवेत् – हो जाएं
  • यदि – अगर
  • तत् – वह / उसे
  • एव – ही
  • आहुः – कथयन्ति। वदन्ति। कहते हैं
  • महात्मानः – महापुरुषाः। बडे़ लोग, महान लोग
  • समत्वम् – समता। समानता
  • तथ्यतः – वस्तुतः। सच में, Indeed

अन्वयः –

यथा चित्ते तथा वाचि (अपि) यदि अवक्रता भवेत्, (तर्हि) तत् एव तथ्यतः समत्वम् (अस्ति) इति महात्मानः आहुः।

हिन्द्यर्थः –

जैसे मन में वैसे ही बोलने में भी अगर अवक्रता (सीधापन) हो जाए, तो वह ही सच्ची समानता है ऐसा महात्मा लोग कहते हैं।
महापुरुषों ने सच्ची समानता किसे कहा है इस बात को इस श्लोक में बताया गया है। जिस प्रकार से कोई भी मनुष्य अपने मन से यदि निष्पक्ष बुद्धि से सोचता है और उसी प्रकार से अपने बोलने में (और कर्तृत्व में भी) बरताव करें तो वह ही सच्ची समानता है।
हम ने व्यवहार में बहुत बार देखा है कि लोगों के मन में  कुछ और बोलने में और ही कुछ होता है। हमारा मन हमेशा समत्व बुद्धि से ही सोचता है परन्तु जब हम वास्तव में कुछ व्यवहार करते हैं, तो उस वक्त हम अपने मन की सरलता को अनसुना कर देते हैं और अपने फायदे के लिए कुछ दूसरा ही करते हैं। हमारा मन हमेशा हमें सही और गलत बातों के बारे में अपनी राय देता है। और मन  की उस सरलता को ही हमें अपने बरताव में लाना चाहिए।

भावार्थः

महापुरुषाणां दृष्ट्या समत्वं किम्? इति अस्य श्लोकस्य विषयः अस्त। मनुष्यस्य मनसि यथा सरलता भवति तथा एव यदि मनुष्यस्य वाण्यां व्यवहारे च अपि भवेत्, तर्हि तत् समानम् आचरणम् एव समत्वम् अस्ति इति महापुरुषाः वदन्ति।

व्याकरणम् –

  • अवक्रता
    • न वक्रता। नञ् तत्पुरुषः।
    • अवक्र + तल् (प्रत्ययः)
  • भवेत् – भू +  विधिलिङ्।
  • वाचि – वाच् + सप्तमी।
  • भवेद् यदि – भवेत् + यदि। जश्त्वम्।
  • तदेवाहुः – तत् + एव + आहुः। जश्त्वं सवर्णदीर्घः च।
  • समत्वम् – सम + त्व (प्रत्ययः)
  • तथ्यतः – तथ्य + तसिल् (प्रत्ययः)

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