१०.०९ सूक्तयः। ०४. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन्
९. सूक्तयः।
कक्षा दशमी। शेमुषी
चतुर्थः श्लोकः
विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते॥४॥
शब्दार्थः –
- विद्वांसः – विद्यावन्तः। ज्ञानवन्तः। विद्वान लोग
- एव – ही
- लोके – संसारे। विश्वे। दुनिया में
- अस्मिन् – एतस्मिन्। इस
- चक्षुष्मन्तः – नेत्रधारिणः। नेत्रवन्तः। जिनकी आखें हैं वे, आँखो वाले
- प्रकीर्तिताः – प्रसिद्धाः। यहां संदर्भ के अनुसार – कहलाए हैं, माने गए हैं
- अन्येषाम् – इतरजनानाम्। इतरेषाम्। बाकी लोगों के
- वदने – मुखे। चेहरे पर
- ये – जो
- तु – अव्ययपदम्।
- ते – वे
- चक्षुर्नामनी – नाम की ही आँखें। (यह शब्द नपुंसकलिंग द्विवचन का है)
- मते – माने गए हैं
अन्वयः –
अस्मिन् लोके विद्वांसः एव चक्षुष्मन्तः (सन्ति इति) प्रकीर्तिताः। अन्येषां वदने ये (नेत्रे स्तः) ते तु चक्षुर्नामनी मते (स्तः)।
हिन्द्यर्थः –
इस दुनिया में विद्वान लोग ही (सच्ची) आँखो वाले हैं ऐसा माना गया है। बाकियों के चेहरे पर जो आँखे हैं वे तो नाम की ही आँखें मानी गई हैं।
आँखों का काम होता है देखना। आँखे हमें रास्ता दिखाती हैं। और यही काम ज्ञान भी करता है। ज्ञानी मनुष्य अपने भविष्य का रास्ता देख सकता है। आगे भविष्य में हमें क्या करना है और क्या नहीं इस बात का निर्णय ज्ञान के भरोसे ही लिया जा सकता है। जिसके पास ज्ञान रूपी आँखे नहीं है वह अपने जीवन में गलत निर्णय भी ले सकता है। और ऐसे गलत निर्णयों की वजह से उसे बहुत सारी तकलीफें भी झेलनी पडती है।
इसीलिए हमारे कवि कहते हैं – विद्वांसः एव चक्षुष्मन्तः यानी विद्वान् लोग ही असली आँखों वाले होते हैं। क्योंकि विद्वान् लोगी ही आगे की देख सकते हैं। जिनके पास केवल शारीरिक आँखे हैं वे केवल आने जाने का भौतिक रास्ता देख सकते हैं। परन्तु ऐसे लोग (जिनके पास केवल शारीरिक आँँखे हैं लेकिन ज्ञान की आँखें नहीं हैं वे) जीवन में बार बार ठोकरे खाते हैं। इसीलिए ऐसी आँखों के कवि चक्षुर्नामनी यानी केवल नाम की आँखे कहते हैं।
भावार्थः –
अस्मिन् संसारे ये जनाः ज्ञानवन्तः सन्ति ते एव वास्तविकरूपेण नेत्रवन्तः सन्ति। यतः ज्ञानम् एव जीवनमार्गं दर्शयितुं शक्नोति। येषांं समीपं केवलं शारीरिके नेत्रे स्तः, तेषां नेत्रे तु केवलं नाम्ना नेत्रे स्तः। यतः एतादृशाः अज्ञानिनः जनाः जीवने बहूनि कष्टानि अनुभवन्ति।
व्याकरणम् –
- विद्वांसः – विद्वस् इति सकारान्तः पुँल्लिङ्गशब्दः। बहुवचनम्।
- विद्वांस एव – विद्वांसः + एव। विसर्गलोपः।
- लोकेऽस्मिन् – लोके + अस्मिन्। पूर्वरूपम्।
- चक्षुष्मन्तः
- चक्षुष् + मतुप् (प्रत्ययः)।
- चक्षुष्मत् – पुँ॰ प्रथमा बहुवचनम्।
- प्रकीर्तिताः – प्र (उपसर्गः) + कीर्त् (धातुः) + क्तः (प्रत्ययः)
- चक्षुर्नामनी
- चक्षुः + नामनी। रुत्वम्।
- नामनी – नाम, नामनी, नामानि। इति द्विवचनम्।
- मते
- मन्(धातुः) + क्तः(प्रत्ययः)
- मत + नपुंंसकलिङ्गम्, द्विवचनम्
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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