१०.०९ सूक्तयः। ०५. यत् प्रोक्तं येन केनापि
९. सूक्तयः।
कक्षा दशमी। शेमुषी।
पञ्चमः श्लोकः
यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः॥५॥
शब्दार्थः –
- यत् – जो भी
- प्रोक्तम् – कथितम्। कहा गया है
- येन – जिस
- केन – किसी ने
- अपि – भी
- तस्य – उस का
- तत्त्वार्थनिर्णयः – वास्तविकः अर्थः। सही मतलब
- कर्तुम् – करना
- शक्यः – मुमकिन
- भवेत् – हो सकता है
- येन – जिस से
- सः – असौ। वह
- विवेकः – विवेक (सही गलत समझने का ज्ञान)
- इति – ऐसा
- ईरितः – कथितः। कहा गया है।
अन्वयः –
येन केन अपि (मानवेन) यत् (किमपि) प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः येन कर्तुं शक्यः, सः विवेकः इति ईरितः (अस्ति)।
हिन्द्यर्थः –
जिस किसी भी मनुष्य ने जो कुछ भी कहा है, उसका सही मतलब जिस से समझना मुमकिन होता है, उसे ‘विवेक’ ऐसा कहा गया है।
हम व्यवहार में देखते हैं कि हमरे साथ बहुत सारे लोग बाते करते हैं। परन्तु बहुत बार हमें कुछ ऐसे भी लोग मिल जाते हैं जो बोलते हैं कुछ और उनके कहने का मतलब होता है कुछ और। ऐसे चक्कर में हम फस जाते हैं और हमारा नुकसान हो जाता है।
इसीलिए हमें हमेशा चौकन्ना रहना चाहिए कि सामने वाला हमारे साथ जो भी बात कर रहा है उसके पीछे का मतलब क्या है? इसके बारे में हमें हमेशा सोचना चाहिए। क्या उसके मन में कोई स्वार्थ तो नहीं? हम से मिलने वाली हर व्यक्ति हम से प्यार भरी बाते ही करती हैं। परन्तु उसके मन में छुपा हुआ स्वार्थ हमें अपनी बुद्धि से पहचानना चाहिए। और उसी बुद्धि को विवेक कहते हैं।
जैसे कि दो भाई बहुत बडे प्रेम से रहते हैं। लेकिन समाज में कुछ लोगों के उनका प्रेम और प्रगति देखी नहीं जाती। तो वे उन दोनों में से बडे भाई को बताते हैं कि तुम्हे दौलत का ज्यादा हिस्सा मिलना चाहिए क्योंकि तुम बडे हो। तुम ने ही बडे होने के नाते काम कर के घर को संभालने में पिता को मदद की है। और छोटे को कहते हैं कि तुम्हे दौलत का ज्यादा हिस्सा मिलना चाहिए क्योंकि तुम छोटे हो। बडे भैया तो किसी तरह अपना गुजारा कर लेंगे। लेकिन तुम्हारा क्या होगा?
जब लोग ऐसी बातें करते हैं तो उन दोनों भाईयों को अपने विवेकबुद्धि से इन बातों का असली मतलब (तत्त्वार्थनिर्णय) समझना चाहिए। अगर उन्हों ने विवेक से काम नहीं लिया। तो आपस में झगडने से उन दोनों का ही नुकसान होगा।
भावार्थः –
विवेकः इत्यस्य शब्दस्य अर्थः अस्मिन् श्लोके कथितः अस्ति। अस्माभिः सह अनेके जनाः भिन्नभिन्नप्रकारेण भाषणं कुर्वन्ति। तेषां कथनस्य विश्लेषणं येन कर्तुं शक्यते सः विवेकः इति नाम्ना ज्ञायते।
व्याकरणम् –
- प्रोक्तम् – प्र + उक्तम्। गुणः।
- केनापि – केन + अपि। दीर्घः।
- तत्त्वार्थनिर्णयः – तत्त्वार्थस्य निर्णयः। षष्ठी तत्पुरुषः।
- कर्तुम् – कृ + तुमुन्।
- शक्यो भवेद्येन – शक्यः + भवेत् + येन। उत्वं, जश्त्वं च।
- स विवेकः – सः + विवेकः। विसर्गलोपः।
- विवेक इति – विवेकः + इति। विसर्गलोकः।
- इतीरितः – इति + ईरितः। दीर्घः।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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