१०.०९ सूक्तयः। ०८. आचारः प्रथमो धर्मः
९. सूक्तयः।
कक्षा दशमी। शेमुषी। CBSE संस्कृतम्।
अष्टमः श्लोकः
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।
तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः॥८॥
शब्दार्थः –
- आचारः – व्यवहारः। बरताव
- प्रथमः – प्रमुखः। पहला, महत्त्वपूर्ण
- धर्मः – कर्तव्यम्।
- इति – ऐसा
- एतत् – यह
- विदुषाम् – विद्वज्जनानाम्। विद्वान् लोगों का
- वचः – वाक्यम्। वचनम्। कथनम्। कहना, बोलना
- तस्मात् – अतः। इसीलिए
- रक्षेत् – रक्षणं करणीयम्। रक्षा करणीया। रक्षण करना चाहिए
- सदाचारम् – अच्छे वर्तन को, अच्छे बरताव को
- प्राणेभ्यः – जान से
- अपि – भी
- विशेषतः – खास तौर पर
अन्वयः –
हिन्द्यर्थः –
(हमारा) आचरण प्रमुख धर्म है ऐसा यह विद्वान लोगों का कहना है। इसीलिए मनुष्य ने प्राणों से भी बढकर सदाचार की रक्षा करनी चाहिए।
एक बार महाभारत में युधिष्ठिर ने कहा था कि धर्म का तत्त्व समझने में बहुत कठिन है। बडे बडे लोग भी इसमें भ्रम का शिकार हो जाते है तो सामान्य लोगों की बात ही क्या?
इसीलिए सामान्य लोगों के लिए युधिष्ठिर कहते हैं कि जिस रास्ते से विद्वान लोग, बडे लोग चलने की सलाह देते हैं वही रास्ता सामान्य मनुष्यों को भी अपनाना चाहिए।
प्रस्तुत श्लोक में कवि विद्वान् लोगों का प्रमुख धर्म के बारे में विद्वानों का क्या कहना है इस बारे में बता रहे हैं। इस श्लोक के माध्यम से कवि कहते हैं कि – विद्वानों के कहने के मुताबिक आपना (अच्छा) बरताव ही सबसे पहला (महत्त्वपूर्ण) धर्म (कर्तव्य) होता है। इसीलिए अपने सदाचार को (अच्छे बरताव को) अपनी जान से भी ज्यादा संभालना चाहिए।
हमारे भारतवर्ष का इतिहास भी ऐसे ही धर्मप्रेमी लोगों की परम्परा से भरा पडा है। जगह जगह पर अपने सदाचार के लिए, अपने कर्तव्य के लिए अपने प्राणों को भी त्याग देने वाले महापुरुष हमें अपने इतिहास में मिल सकते हैं।
और हमें अपने सद्वर्तन के खातिर जान तक गवांने वाले महापुरुषों का आदर्श लेना चाहिए।
भावार्थः –
अस्माकं सद्वर्तनम् एव सर्वेभ्यः धर्मेभ्यः प्रमुखः धर्मः अस्ति इति विद्वज्जनाः वदन्ति। अतः धर्मपरायणेन मनुष्येण अपि स्वस्य सद्वर्तनस्य एव रक्षणं करणीयम्। प्राणेभ्यः अपि विशेषतः मनुष्यः सद्वर्तनस्य रक्षणं कर्तुम् अर्हति।
व्याकरणम् –
- प्रथमो धर्मः – प्रथमः + धर्मः। उत्वं, गुणः च।
- इत्येतत् – इति + एतत्। यण्।
- एतद् विदुषाम् – एतत् + विदुषाम्। जश्त्वम्।
- वचः – वचस् इत्यस्य सकारान्तनपुंसकलिङ्गशब्दस्य प्रथमा एकवचनम्।
- तस्माद्रक्षेत् – तस्मात् + रक्षेत्। जश्त्वम्।
- प्राणेभ्योऽपि – प्राणेभ्यः + अपि। उत्वं, गुणः, पूर्वरुपं च।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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