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संस्कृत कक्षा में शीतल चन्द्रप्रकाश

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  • सुभाषित

    विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद

    0 टिप्पणी

    विचित्रे – विचित्र स्वरूप वाले खलु – सचमुच संसारे – दुनिया में न – नहीं अस्ति – है किञ्चित् – कोई भी निरर्थकम् – व्यर्थम्। बेकार अश्वः – घोटकः। वाजी। हयः। चेत् – यदि धावने – दौड़ने में वीरः –…

    07/02/2021
  • सुभाषित

    सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद

    1 टिप्पणी

    क्या आप महान् बनना चाहते हैं? संस्कृत सुभाषितकारों ने महान लोगों का लक्षण इस श्लोक में लिख दिया है। यदि हमने महान लोगों के इस लक्षण को समझ लिया, तो हम भी महान बन सकते हैं। श्लोक सम्पत्तौ च विपत्तौ…

    07/02/2021
  • सुभाषित

    अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद

    0 टिप्पणी

    इस दुनिया में कोई भी अक्षर बेकार नहीं है, किसी भी पेड़ की जड़ ऐसी नहीं है कि जो दवा ना हो, कोई भी पुरुष बेकार नहीं है। वहाँ (सभी चीजों को) जोड़ने वाला दुर्लभ है।

    06/02/2021
  • विशिष्ट

    संस्कृत शिक्षक चाहिए

    0 टिप्पणी

    संस्कृत शिक्षक तथा विद्यालयों की सुविधा के लिए यह पृष्ठ चूँकि कक्षा कौमुदी एक संस्कृत भाषा की सेवा के लिए समर्पित जालपुट (वेबासाईट) है कि हम चाहते हैं कि जिन विद्यालयों में संस्कृत शिक्षक की आवश्यकता है, उन विद्यालयों में…

    04/02/2021
  • विशिष्ट

    एन॰ व्ही॰ चिन्मय विद्यालय, शेगांव

    1 टिप्पणी

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    04/02/2021
  • सुभाषित

    सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः। शब्दार्थ अन्वय श्लोक का हिन्दी अनुवाद

    (भरपूर) फलों और छाव से युक्त बहुत बड़े पेड़ की सेवा करनी चाहिए। अगर नसीब से / काल से फल ना हो, तो उस पेड़ की छाव को कौन हटाता है।

    04/02/2021
  • सुभाषित

    मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति। शब्दार्थ अन्वय श्लोक का हिन्दी अनुवाद

    जैसे हिरणें हिरणों के, और गाएं गौओं के, घोड़े घोड़ों के साथ घूमते हैं। वैसे ही मूर्ख मूर्खों के और बुद्धिमान् बुद्धिमन्तों के साथ घूमते हैं। इसीलिए (हम कह सकते हैं कि) समान शील और व्यसनियों में दोस्ती होती है।

    03/02/2021
  • सुभाषित

    क्रोधो हि शत्रुः प्रथमं नराणाम्। श्लोक का शब्दार्थ अन्वय हिन्दी अनुवाद

    मनुष्यों के शरीर का विनाश करने के लिए पहला दुश्मन तो (खुद के ही) शरीर में रहने वाला गुस्सा ही होता है। जैसे कि लकड़ी में ही रहने वाली आग लकड़ी को ही जलाती है, वैसे ही शरीर में रहने…

    02/02/2021

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