• श्लोक

    भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्

    कोई बालक अपनी उम्र की वजह से बड़े गुणी लोगों के लिए भी लाड़-प्यार के योग्य होता है। जैसे चन्द्रमा भी भगवान् शंकर के मस्तक पर केतकी के फूल के समान अपने बालस्वभाव की वजह से प्राप्त होता है।

  • श्लोक

    सूक्तिमौक्तिकम्। कक्षा ९ CBSE संस्कृतम्। शेमुषी

    CBSE के शेमुषी इस संस्कृत पाठ्यपुस्तक में सूक्तिमौक्तिकम् यह पाठ सम्मिलित है। सूक्तिमौक्तिकम् का अर्थ सर्वप्रथम हम इस पाठ के शीर्षक का अर्थ समझते हैं। यह तीन पदों से बना हुआ है। – सु + उक्ति + मौक्तिकम् सु यानी…

  • श्लोक

    यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु

    श्लोक यत्रापि कुत्रापि गता भवेयुर्- हंसा महीमण्डलमण्डनाय। हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैः सह विप्रयोगः॥ - भामिनीविलास रोमन लिप्यन्तरण yatrāpi kutrāpi gatā bhaveyur-haṃsā mahīmaṇḍalamaṇḍanāya।hānistu teṣāṃ hi sarovarāṇāṃyeṣāṃ marālaiḥ saha viprayogaḥ॥ पदविभाग और शब्दार्थ यत्र – जहाँ अपि – भी कुत्र…

  • श्लोक

    गुणेष्वेव हि कर्तव्यः

    संस्कृत श्लोक गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः॥ श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण guṇeṣveva hi kartavyaḥ prayatnaḥ puruṣaiḥ sadā। guṇayukto daridro'pi neśvarairaguṇaiḥ samaḥ॥ श्लोक का शब्दार्थ गुणेषु – गुणों में एव – ही हि – ही कर्तव्यः –…

  • विशिष्ट

    पाश्चात्य काव्यशास्त्र

    पाश्चात्य काव्यशास्त्र का विकास पहली बार यूनान (ग्रीस) में हुआ। पहले यूनानी महाकवि होमर थे, जिन्होने दो महाकाव्य लिखे हैं – 1. इलियड, 2. ओडिसी। होमर के बाद हॅसियड की भी रचनाएँ यूनान में प्राप्त होती हैं। थॅगोनी इस सुप्रसिद्ध…

  • साहित्य

    संस्कृत काव्यशास्त्र

    काव्य शास्त्र में हम संस्कृत साहित्य से संबंधित कार्य का अभ्यास करेंगे।  काव्य की परिभाषा वैसे सामान्य व्यवहार में देखा जाए,काव्य का अर्थ बहुत सारे लोग केवल कविता इतना ही लेते हैं। परंतु शास्त्र के अनुसार ऐसा नहीं है। यूं…

  • श्लोक

    श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्

    बहुत सारे लोग धर्म के पीछे पड़े रहते हैं। धर्म किसे कहते हैं? धर्म किसे कहते हैं? परन्तु ज्यादातर लोगों के लिए धर्म के तत्त्व को समझना बहुत कठिन हो जाता है, अथवा उनको धर्म समझता ही। परन्तु विदुरनीति में…

  • साहित्य

    संस्कृत नाटक

    नाकक की उत्पत्ति के विभिन्न मत ऋग्वेद के संवाद सूक्तों में नाटक के तत्त्व मिलते हैं। रामायण में भी नाटक के अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं। जैसे कि – नाराजके जनपदे प्रहृष्टनटनर्तका:। उत्सवाश्च समाजाश्च वर्धन्ते राष्ट्रवर्धना:॥ १५॥– इति अयोध्या॰ वाल्मीकि॰…

  • साहित्य

    संस्कृत महाकाव्य

    महाकाव्य के लक्षण दण्डी के अनुसार महाकाव्य के लक्षण – महाकाव्य में सर्ग होने चाहिए। आरम्भ में आशीर्वाद, वंदना अथवा किसी वस्तु का वर्णन होना चाहिए। महाकाव्य का फल धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चारों की प्राप्ति में निहित…