अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः
संस्कृत श्लोक
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥
रोमन लिप्यन्तरण
abhivādanaśīlasya nityaṃ vṛddhopasevinaḥ|
catvāri tasya vardhante āyurvidyā yaśo balam||
श्लोक का वीडिओ
इस वीडिओ में इस श्लोक के बारे में समझाया है। यदि आप विस्तार से श्लोक के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को पढ़ते रहिए।
श्लोक का पदविभाग
अभिवादन-शीलस्य नित्यं वृद्ध-उपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुः विद्या यशः बलम्॥
श्लोक का शब्दार्थ
- अभिवादन-शीलस्य – जिस का स्वभाव ही प्रणाम करना होता है उस के, जो नम्र होता है उस के, …of the one whose nature is to be humble
- नित्यम् वृद्ध-उपसेविनः – जो हमेशा वृद्धों की सेवा करता है उस के, …of the one who always serves the elderly
- चत्वारि – चार, four (things)
- तस्य – उसके, his
- वर्धन्ते – बढ़ते हैं, increase
- आयुः – उम्र, age, life
- विद्या – ज्ञान, knowledge
- यशः – कामयाबी, success
- बलम् – ताकत, शक्ति, power, strength
अन्वय
तस्य अभिवादनशीलस्य, नित्यं वृद्धोपसेविनः (मनुष्यस्य) आयुः विद्या यशः बलं (च इति) चत्वारि वर्धन्ते।
श्लोक का हिन्दी अर्थ
उस नम्र स्वभाववाले, हमेशा बुजुर्गों की सेवा करने वाले मनुष्य के उम्र, विद्या, कामयाबी और बल ये चारों बढ़ते हैं।
English translation of the shloka
The age, knowledge, success and strength of that humble person, who always serves the elderly, increases all these four.
श्लोक का स्पष्टीकरण
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः यह श्लोक मनुस्मृति से प्राप्त होता है।
इस श्लोक के माध्यम से मनु हमें यह बताना चाहते हैं कि हमेंशा हमारा व्यवरहार नम्रतायुक्त होना चाहिए और हमेंसा बडे-बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए।
यदि हम हमेशा झुकते हैं, नम्र होते हैं तो सब लोग हमारे मित्र होते हैं। सब हमारी मदद करते हैं। और यदि हम बड़े-बुजुर्गों की सेवा करते हैं तो वे हमें आशीर्वाद देते हैं, उनका अनुभव हमारे साथ साझा करते हैं।
इस प्रकार सब का सहयोग, मदद और बड़ों के अनुभव से हमें हर तरफ कामयाबी मिलने लगती है। हमारा ज्ञान बढ़ता है। हमारा जीवन खुश होता है और हमारी उम्र भी बढ़ती है।
Abhivadan shilasya nityam vruddhopasevinah