कक्षा कौमुदी की कहानी

कक्षा कौमुदी बनी है छात्रों के लिए। कक्षा कौमुदी छात्रों और शिक्षक के बीच का विश्वास, स्नेह का प्रतीक है। इस कहानी में आप जानेंगे की किस तरह छात्रों के विश्वास एव स्नेह की मदद से ही हम ने विद्यालय प्रशासन(जहां हम नौकरी कर रहे थे) के ख़िलाफ जा कर हमने यह सब कुछ आरम्भ किया।

बहुतेरे मित्र हम से पूँछते हैं कि – कक्षा कौमुदी इस नाम का अर्थ क्या है?

चिन्ता ना करें। इस कहानी में आप को कक्षा कौमुदी इस नाम का भी अर्थ पता जल जाएगा।

हमारी समस्याएं

हम एक निजी विद्यालय में संस्कृत-शिक्षक थे। हम प्रतिदिन अपने प्रि छात्रों को संस्कृत पढ़ाते थे। हमारी कक्षा में हमारे सामने अपनी अपनी मेजों पर छात्र बैठते थे। और हमारे पीछे फलक होता था। हम उस फलक पर लिख-लिख कर सिखाते थे। (विशेषतः सन्धि आदि व्याकरणपाठ में तो बहुत अधिक लिखना पड़ता था।) हमारे लिखे वाक्यों से, शब्दों से, आकृतियों से पूरा का पूरा फलक भर जाता था।

और हमारा फलक पर लिखना और विषय समझाना होने के बाद सभी छात्रों को वह फलक पर लिखा हुआ सब कुछ अपनी कापी में लिख कर रखना होता था। हमारा पढ़ाना समाप्त होने के बाद हम बच्चों को लिखने के लिए समय देते थे। और पाँच-छः मिनट कुर्सी पर बैठ कर आराम भी होता था और छात्र शान्ति से लिखते रहते थे। उनका लिखना होने के बाद पुनः नया विषय पढ़ाना शुरू हो जाता था।

कितना आसान और सही दिखता है न?

जी नहीं। चीजें इतनी आसान कभी नहीं होती। जरा बच्चों की दृष्टि से देखिए।बहुतेरे शिक्षाशास्त्री कहते हैं –

बच्चें विद्यालय में पढ़ने के लिए नहीं आते हैं। अपितु वे तो अपने मित्रों से मिलने तथा बाते करने के लिए आते हैं।

– इति शिक्षाशास्त्रिणः।

तो हमारे ही छात्र इस के अपवाद क्यों होते? [हालांकि हमारा सिखाना इतना ज्यादा* उबाऊ नहीं (?) था।]

हमारा फलकलेखन और सिखाना समाप्त होने के बाद जो पाँच-छः मिनट उनको लिखने के लिए मिलते थे, उन मिनटों में कुछ कुछ लोग जल्दी से लिखना ख़त्म कर के अपने आस-पास के बच्चों से बाते करना चाहते थे।

अब इस चक्कर में जल्दी-जल्दी लिखना कोई उनती बुरी बात नहीं थी। लेकिन कुछ कुछ शातिर छात्रों ने एक तरकीब खोज कर निकाली थी। जब हमारा लिखना और पढ़ाने का सिलसिला शुरू होता था, तब हमारे सिखाते वक्त ही कुछ छात्र अपनी कापी में लिखना शुरू करते थे।

समस्या १

परन्तु हम चाहते थे कि पढ़ाते वक्त सभी छात्रों का ध्यान हमारी तरफ रहे। लिखने के चक्कर में विषय को ठीक से समझना नहीं होता था।

समस्या २

कक्षा में पाठ पढ़ाते वक्त हमें समझाने के साथ साथ फलक पर लिखना होता था। इसमें बहुत समय जाता था। और हमारा सिखाना और समझाना होने के बाद छात्रों को पुनः अपनी-अपनी कापी में भी लिखना होता था। इसमें दोगुना समय चला जाता था।

समस्या ३

और साथ ही साथ हमारा हस्ताक्षर तो बहुत ज्यादा ख़राब था। हमारा लिखा लेख तो वे बेचारे छात्र बहुत मुश्किल से पढ़ सकते थे।

समस्याओं का समाधान

गूगल कक्षा (Google classroom)

हमने सोचा कि यदि हमारे छात्रों का वॉटसैप (WhatsApp) गण बनाया जाए। इस गण में

क्रमशः अनुवर्तते ……