सुभाषित

आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण। हिन्दी अनुवाद। शब्दार्थ। अन्वय

सज्जन और दुर्जनों की मित्रता में क्या अन्तर इस श्लोक में माध्यम से नीतिशतककार हमें बताते हैं। यदि अच्छे मित्र चाहिए, तो इस श्लोक को जरूर पढ़े।

श्लोक

आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥

– नीतिशतकम्

रोमन लिप्यन्तरण

ārambhagurvī kṣayiṇī krameṇa
laghvī purā vṛddhimatī ca paścāt|
dinasya pūrvārddhaparārddhabhinnā
chāyeva maitrī khalasajjanānām||

– nītiśatakam

श्लोक का पदच्छेद

आरम्भ-गुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्ध-परार्द्ध-भिन्ना
छाया इव मैत्री खल-सज्जनानाम्

वीडिओ

इस वीडिओ के द्वारा आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण इस श्लोक को समझाया है।

शब्दार्थ

  • आरम्भ-गुर्वी – आरम्भे गुर्वी। शुरुआत में बड़ी।आरम्भशूर
  • क्षयिणी – क्षय होने वाली, कम होने वाली
  • क्रमेण – क्रम से, बाद में थोडी थोडी
  • लघ्वी – लघुस्वरूपा। छोटी
  • पुरा – पहले
  • वृद्धिमती – बढ़ने वाली
  • च – और
  • पश्चात् – बाद में
  • दिनस्य – दिन के
  • पूर्वार्द्ध-परार्द्ध-भिन्ना – पहले और दूसरे हिस्से में अलग अलग
  • छाया – छाव
  • इव – … के जैसी
  • मैत्री – मित्रता।
  • खल-सज्जनानाम् – दुर्जन और सज्जनों की

अन्वय

(खलस्य मैत्री) आरम्भ-गुर्वी क्रमेण च क्षयिणी (भवति।) (सज्जनस्य मैत्री)पुरा लघ्वी पश्चात् च वृद्धिमती (भवति।) (एवं) दिनस्य पूर्वार्द्ध-परार्द्ध-भिन्ना छाया इव खल-सज्जनानाम् मैत्री (भवति)।

आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण का हिन्दी अनुवाद

दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी और क्रमशः कम होने वाली होती है। सज्जन की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग अलग दिखने वाली छाया के जैसी दुर्जन और सज्जनों की मित्रता होती है।

आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण

श्लोक का संस्कृत भावार्थ

यथा दिनरस्य पूर्वार्द्धे तथा परार्द्धे छाया भिन्ना दृष्यते तादृशी एव दुर्जनसज्जनयोः मित्रता अस्ति। दुर्जनस्य मित्रता दिनस्य पूर्वार्द्धच्छाया इव अस्ति या च आरम्भे गुर्वी दृश्यते परन्तु उत्तरोत्तरं तस्याः क्षयः भवति। परं सज्जनस्य मित्रता तथा नास्ति। सज्जनस्य मित्रता दिनस्य परार्द्धच्छाया इव वर्तते या आरम्भे तु लघुस्वरूपा दृश्यते परन्तु उत्तरोत्तरं वर्धमाना भवति।

समझने वाली बात

गुर्वी – लघ्वी

गुर्वी और लघ्वी ये दोनों शब्द एक दूसरे के विरुद्धार्थी शब्द हैं। गुर्वी इस शब्द का अर्थ बड़ी ऐसा होता है तथा लघ्वी इस शब्द का अर्थ छोटी ऐसा होता है।

वस्तुतः अगर देखा जाए तो इन दोनों शब्दों के मूल में गुरु और लघु यह दोनों शब्द हैं।

संस्कृत भाषा में विशेषण और विशेष्य एक ही लिंग वचन और विभक्ति में होते हैं। इसीलिए जब हमें गुरु और लघु इन दोनों शब्दों का प्रयोग स्त्रीलिंग में करना होता है तो। ङीप् प्रत्यय लगाकर स्त्रीलिंग इस प्रकार बनाया जाता है –

गुरु का स्त्रीलिंग –

  • गुरु + ङीप् … अनुबन्धलोप
  • गुरु + ई … यण् सन्धि
  • गुर्वी

लघु का स्त्रीलिंग

  • लघु + ङीप् … अनुबन्धलोप
  • लघु + ई … यण् सन्धि
  • लघ्वी
पुँल्लिंगस्त्रीलिंग
संस्कृतगुरुःलघुः
हिन्दी अर्थबड़ाछोटा
संस्कृतगुर्वीलघ्वी
हिन्दी अर्थबड़ीछो़टी
गुर्वी – लघ्वी इन शब्दों का अर्थ

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