दीपज्योतिः परं ब्रह्म
संस्कृत श्लोक
दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥
रोमन लिप्यन्तरण
dīpajyotiḥ paraṃ brahma dīpajyotirjanārdanaḥ| dīpo haratu me pāpaṃ dīpajyotirnamo’stu te||
श्लोक का शब्दार्थ
- दीपज्योतिः – दीपक का प्रकाश
- परम् – श्रेष्ठ
- ब्रह्म – ब्रह्म
- दीपज्योतिः – दिये का प्रकाश
- जनार्दनः – जनार्दन (भगवान् विष्णु)
- दीपः – दिया
- हरतु – हरण करें, दूर करें
- मे – मम। मेरा
- पापम् – पाप
- दीपज्योतिः – दिये की ज्योत
- नमः – नमस्कार
- अस्तु – है
- ते – तुम्हे
श्लोक का अन्वय
दीपज्योतिः परं ब्रह्म (अस्ति)। दीपज्योतिः जनार्दनः (अस्ति)। दीपः मे पापं हरतु। (हे) दीपज्योतिः! ते नमः अस्तु।
श्लोक का हिन्दी अनुवाद
दिये की ज्योत ही परं ब्रह्म है। दीपक ही जनार्दन (भगवान् विष्णुस्वरूप) है। दीपक मेरा पाप हरण करे। हे दीपज्योति! तुम्हे नमस्कार है।
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