गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
संस्कृत श्लोक
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥
श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण
guṇā guṇajñeṣu guṇā bhavanti, te nirguṇaṃ prāpya bhavanti doṣāḥ। susvādutoyāḥ prabhavanti nadyaḥ, samudramāsādya bhavantyapeyāḥ॥
जैसे कि हम देख सकते हैं कि इस श्लोक में दो पंक्तियां हैं। अतः हम इन दोनों का पंक्तियों का स्वतन्त्र रूप से अभ्यास कर रहे हैं।
श्लोक का पहली पंक्ति –
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
अब हम इस पंक्ति के प्रत्येक शब्द का अर्थ समझने का प्रयत्न करते हैं।
शब्दार्थ
- गुणाः – अच्छे गुण
- गुणज्ञेषु – गुणी लोगों में
- गुणाः – अच्छे गुण
- भवन्ति – होते हैं।
- ते – वे
- निर्गुणम् – जिसके पास गुण नहीं हैं ऐसी व्यक्ति
- प्राप्य – पहुँच कर
- भवन्ति – होते हैं।
- दोषाः – दोष, ख़राबी
अब हमने प्रत्येक शब्द का अर्थ जान लिया है। अब इसका हिन्दी भाषा में सरल अर्थ प्राप्त करने के लिए हम इन संस्कृत पंक्ति को हिन्दी भाषा के हिसाब से सही क्रम में पुनः लिखेगे। ऐसा हिन्दी के अनुसार संस्कृत को पुनः क्रम से लिखने की क्रिया को अन्वय कहते हैं। तो अब हम इस पंक्ति का अन्वय करेगे।
अन्वय
गुणाः गुणज्ञेषु (एव) गुणाः भवन्ति। ते निर्गुणं (व्यक्तिं प्रति) प्राप्य दोषाः भवन्ति।
हिन्दी अनुवाद
गुण गुणी लोगों में ही गुण होते हैं / कहलाते हैं। वे निर्गुण व्यक्ति के पास पहुँच कर दोष हो जाते हैं।
स्पष्टीकरण
अब हम इस पंक्ति समझने का प्रयत्न करते हैं।
देखिए अब मान लीजिए की कोई बहुत अच्छा अंग्रेजी बोलने वाली व्यक्ति है। विलायत से जिसने अंग्रेजी सीखी है। और वह व्यक्ति अब पुनः हिन्दुस्तान लौट आई है। अब यहाँ आने के बाद वह सबसे पहले अपने बचपन के विद्यालय में गया। उस विद्यालय को देख कर उसे अपने बचपन के दिन याद आएं। वहाँ वह अपने सारे पुराने शिक्षकों से मिला। अपने शिक्षकों से वह विदेश में सीखी हुई फर्राटेदार अंग्रेजी में बातें करने लगा – हॅल्लव सर्। हाऊ आर यू? आय ऐम व्व्हैरी व्व्हैरी हॅप्प्प्पी टू मीट यू अग्ग्गैन। और उसके शिक्षक भी उस की भाषा से प्रभावित हो कर उसे प्रोत्साहन देने लगे। उसकी तारीफ करने लगे।
अब वही व्यक्ति वापस जाने लगती है। और जाते जाते वहाँ के चपरासी भैया को भी देख लेता है। जब बचपन में था तो यह चपरासी काले बालों वाला था। अब सारे सफेद हो चुके थे। इस ने उसे पहले पहचाना ही नहीं। लेकिन जब पहचाना तब अचानक से अंग्रेजी में बोल पड़ा – हॅल्लव् भैईयाँ। हाऊ आर यू? यू आर फुल्ल्ली चेंज्ड्।
चपरासी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उस बेचारे चपरासी के कानों पर अपनी हिन्दुस्तानी लोगों की अंग्रेजी सुन सुन के थोडी थोडी पता थी। विद्यालय के शिक्षक और छात्र जिस अंग्रेजी में बोलते थे उसे थोडा थोडा समझता था। उसे ये विलायती अंग्रेजी बिल्कुल भी पल्ले नहीं पड़ी। उसने चौंक कर कहा – ऐ कोई मिल गया के जादू। ये कौन सी भाषा बोल रहा है तू। जीभ टेढी कर के क्यों बोलता है बे?
प्रस्तुत उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि भलेही विलायती अंग्रेजी सबसे शुद्ध थी परन्तु स्कूल का चपरासी उस मामले में निर्गुण था। अतः वह उसके लिए तो दोष ही था। अर्थात् जो गणी लोग हैं वे लोग ही गुण की क़ीमत कर सकते हैं। निर्गुण लोग अज्ञानी होने से उस गुण को दोष मान लेते हैं।
एक और उदाहरण इस विषय में प्रस्तुत किया जा सकता है। आप सभी ने कभी ना कभी शास्त्रीय संगीत के बारे में तो सुना ही होगा। जब कोई शास्त्रीय गायक – आआआआआआ ऊऊऊऊऊऊऊ हिआआआ ऐसा कर के बडी बडी लंबी लंबी ताने लेना शुरू करता है तो सुनने वालों को देखने का बहुत मज़ा आता है। सुनने वाले श्रोताओं में जो गुणी होते हैं, गायन कला के रहस्यों को जानते हैं वे तो भावविभोर हो जाते हैं, मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।
परन्तु जो लोग केवल पहली बार ही – चलो, देखते हैं कि गायन क्या चीज होती हैं। ऐसा सोच कर आते हैं, उन लोगों की हालत बहुत ख़राब हो जाती है। अब गायन सुनने आएं हैं इसका मतलब है कि कोई अच्छे गीत सुनने को मिलेंगे। पहले तो लगभग एक घंटे तक बड़ा ख्याल चलता है। जिसमें गायक केवल सुर लगाने का काम करता है। लंबे लंबे आलाप लेता है। जरा सोचिए जो लोग मधुर गीत सुनने की अपेक्षा से आए हैं वे केवल एक घंटे तक केवल आऽऽऽऽऽऽऽ ईऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ ऐसे आलाप सुनती बैठे तो उनका क्या हाल होता होगा। लगभग नींद सी लगती है। कुछ देर बाद गायक का गला गर्म होने लगता है। गायक जोश में आकर – आआआआआआआ, ऊऊऊऊऊऊऊ ऐसी ताने लेना शुरू करता है। तब तो उनका दिमाग फटने लगता है।
मुझे ऐसे लोगों को देखकर बहुत मज़ा आता है। नींद से लुढकने लगते हैं। और तभी गायक बिजली जैसी एक तान लेता है और ये भी अचानक डर के मारे बेहाल हो जाते हैं।
जिनको भारतरत्न पुरस्कार मिला ऐसे –
पं॰ भीमसेन जोशी जी की ये ताने आपको जरूर सुनिए। यहाँ क्लिक करें।
अगर आसान शब्दों में कहा जाए, तो जो लोग गायन कला के रहस्यों को जानते हैं वे तान सुनकर मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं, बहुत आनन्दित हो जाते हैं। परन्तु जो नहीं जानते, वे लोग कहते हैं की ये गायक महोदय ऐसे क्यों चिल्ला रहे हैं जैसे बिजली का झटका लगा हो।
अब हम श्लोक का दूसरा हिस्सा पढ़ेगे।
श्लोक की द्वितीय पंक्ति
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।।
शब्दार्थ
- सुस्वादुतोयाः – जिनका पानी स्वादिष्ट हो ऐसी। तोय – पानी।
- प्रभवन्ति – उत्पन्न होती हैं
- नद्यः – नदियाँ
- समुद्रम् – समुद्र को
- आसाद्य – मिलकर, पहुँचकर
- भवन्ति – होती हैं
- अपेयाः – पीने के लिए अयोग्य
अन्वय
(आरम्भे) नद्यः (तु) सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति, (परन्तु) समुद्रम् आसाद्य (ताः नद्यः) अपेयाः भवन्ति।
हिन्दी अनुवाद
शुरू में नदियाँ तो स्वादिष्ट पानी वाली उत्पन्न होती हैं, परन्तु समुद्र को मिलकर वे नदियाँ पीने के लिए अयोग्य हो जाती हैं।
स्पष्टीकरण
श्लोक की प्रथम पंक्ति में विधान है कि – गुणी लोगों में ही गुण गुण कहलाते हैं। निर्गुण के लिए तो वे दोष होते हैं। अब इस विधान की पुष्टि के लिए द्वितीय पंक्ति में कहा गया है की नदियाँ जब वे नदियाँ पीने के लिए अयोग्य होती हैं।
इस बात को समझना बहुत आसान है। नदियाँ जब जमीन से बहती हैं, तो उनका पानी पीनेलायक होता है। जमीन पर सभी लोग पानी के महत्त्व को जानते हैं। उसका सही प्रयोग जानते हैं। अतः उस पानी की कीमत कीई जाती है। परन्तु वही नदी जब समुद्र के पास जाती है, तो नदी का भी पानी खारा बन कर पीने लायक नहीं रहता।
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