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संस्कृत कक्षा में शीतल चन्द्रप्रकाश
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- स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध् वंसनंमधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। ने 1 दस्तावेज़ अटैच किया मधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। (madhukar.atole.sns) ने निम्न दस्तावेज़ अनुलग्न किया है: स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं शौचस्यायतनं मलापहरणं संवर्धनं तेजसः। रूपद्योतकरं रिपुप्रमथनं कामाग्निसंदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दशैते गुणाः।। चाणक्यराजनीति वैद्यकीय सुभाषित साहित्य। 8.12 पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसाद-जननं दुःस्वप्न-विध्वंसनं शौचस्य आयतनं मल-अपहरणं संवर्धनं तेजसः। रूप-द्योतकरं रिपु-प्रमथनं काम-अग्नि-संदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दश एते गुणाः।। अन्वय स्नानं नाम मनःप्रसादजननं, दुःस्वप्नविध्वंसनं, शौचस्य आयतनं, मलापहरणं, तेजसः संवर्धनं, रूपद्योतकरं, रिपुप्रमथनं, कामाग्निसंदीपनं, नारीणां च मनोहरं, श्रमहरं (च भवति)। एते दश गुणाः स्नाने (भवन्ति)। व्याकरण मनःप्रसादजननम् मनसः प्रसादः – मनःप्रसादः। षष्ठी तत्पुरुष समास। मनःप्रसादस्य जननम्। षष्ठी तत्पुरुष। दुःस्वप्नविध्वंसनम् दुःस्वप्नस्य विध्वंसनम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। मलापहरणम् मलस्य अपहरणम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। 2 स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं Google LLC, 1600 Amphitheatre Parkway, Mountain View, CA 94043, USA आपको यह ईमेल इसलिए मिला है, क्योंकि madhukar.atole.sns ने Google Docs से आपके साथ दस्तावेज़ शेयर किया है. स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं शौचस्यायतनं मलापहरणं संवर्धनं तेजसः। रूपद्योतकरं रिपुप्रमथनं कामाग्निसंदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दशैते गुणाः।। चाणक्यराजनीति वैद्यकीय सुभाषित साहित्य। 8.12 पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसाद-जननं दुःस्वप्न-विध्वंसनं शौचस्य आयतनं मल-अपहरणं संवर्धनं तेजसः। रूप-द्योतकरं रिपु-प्रमथनं काम-अग्नि-संदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दश एते गुणाः।। अन्वय स्नानं नाम मनःप्रसादजननं, दुःस्वप्नविध्वंसनं, शौचस्य आयतनं, मलापहरणं, तेजसः संवर्धनं, रूपद्योतकरं, रिपुप्रमथनं, कामाग्निसंदीपनं, नारीणां च मनोहरं, श्रमहरं (च भवति)। एते दश गुणाः स्नाने (भवन्ति)। व्याकरण मनःप्रसादजननम् मनसः प्रसादः – मनःप्रसादः। षष्ठी तत्पुरुष समास। मनःप्रसादस्य जननम्। षष्ठी तत्पुरुष। दुःस्वप्नविध्वंसनम् दुःस्वप्नस्य विध्वंसनम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। मलापहरणम् मलस्य अपहरणम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। 2
- स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध् वंसनंमधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। ने 1 दस्तावेज़ अटैच किया मधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। (madhukar.atole.sns) ने निम्न दस्तावेज़ अनुलग्न किया है: स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं Google LLC, 1600 Amphitheatre Parkway, Mountain View, CA 94043, USA आपको यह ईमेल इसलिए मिला है, क्योंकि madhukar.atole.sns ने Google Docs से आपके साथ दस्तावेज़ शेयर किया है.
- नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्।पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥ श्लोक का पदच्छेद नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोमि अहम्।पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥ श्लोक का शब्दार्थ श्लोक का अन्वय अहं (वरदराजः) सरस्वतीं देवीं नत्वा शुद्धां गुण्यां लघुसिद्धान्तकौमुदीं पाणिनीयप्रवेशाय करोमि। श्लोक का हिन्दी अनुवाद मैं (वरदराज) सरस्वती देवी को नमन करके शुद्ध और बहुगुणवती लघुसिद्धांतकौमुदी को पाणिनीय (व्याकरण) में प्रवेश के लिए बना रहा हूँ। English Translation of the Shloka I (Varadrāja) having bowed to Goddess Saraswati compose the errorless and virtuous LaghuSiddhantKaumudi to enter the Pāninian Grammar. श्लोकाचे मराठी भाषांतर मी (वरदराज) सरस्वती देवीला नमस्कार करून शुद्ध व बहुगुणवती अशी लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीय व्याकरणामध्ये प्रवेशासाठी बनवत आहे. श्लोकस्य संस्कृतेन भावार्थ अहं (वरदराजः) सरस्वतीं देवीं नमनं कृत्वा शुद्धां दोषरहितां गुण्यां बहुगुणवतीं लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीये व्याकरणे प्रवेशार्थं लिखामि।
- नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् – श्लोक का हिन्दी English अनुवादयह श्लोक महाभारत, श्रीमद्भागवत् महापुराण और वायुपुराण के आरंभ में पढ़ा गया है। इस लेख में हम इस श्लोक के अर्थ हिन्दी तथा English भाषा में पढ़ेगे। साथ ही साथ श्लोक का पदविभाग और अन्वयार्थ भी पढ़ेगे। श्लोक नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। English transliteration of श्लोक nārāyaṇaṃ namaskṛtya naraṃ caiva narottamam।devīṃ sarasvatīṃ vyāsaṃ tato jayamudīrayet।। श्लोक का पदविभाग और शब्दार्थ श्लोक का अन्वय नारायणं, नरोत्तमं नरम् (अर्जुनं) देवीं सरस्वतीं, व्यासं चैव नमस्कृत्य ततः जयम् उदीरयेत्। श्लोक का हिन्दी अनुवाद नारायण (श्रीहरि विष्णु) को, सभी मनुष्यों में उत्तम मनुष्य अर्जुन को, देवी सरस्वती को और व्यास जी को नमस्कार करने के बाद जय (नामक ग्रन्थ यानी महाभारत का) पाठ करना चाहिए। English translation of the श्लोक One should recite Jay (which is known as the Mahabharata) only after saluting Narayan (Shri Hari Vishnu), Arjuna who is the best man of all human beings, Goddess Saraswati and the sage Vyas.
- यत्र देशेऽथवा स्थाने – श्लोक का अर्थपुरुष को किस स्थान अथवा गांव में (यत्र देशेऽथवा स्थाने) रहना नहीं चाहिए इस बात को इस श्लोक में बताया गया है। साथ ही ऐसे निषिद्ध स्थान पर रहनेवाले को पुरुषाधम (पुरुषों में अधम, नीच) कहा गया है।