Philosophy,  दर्शन

1.1 दर्शनशास्त्र का परिचय Introduction to Philosophy

दर्शनशास्त्र के परिचय का वीडिओ

दर्शनशास्त्र और विवेक Philosohy and wisdom

दर्शनशास्त्र विवेक के प्रति आकर्षण विकसित करता है जो ज्ञान से भिन्न है। ज्ञान इंद्रियों और मन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है जबकि विवेक आत्मा प्राप्त किया जाता है। ज्ञान दोषार्ह, सशर्त, सीमित और परिवर्तनशील है जबकि विवेक अचूक, बिनशर्त, असीमित और अपरिवर्तनीय है। यद्यपि दर्शन प्रारंभ में ज्ञान से शुरू होता है, परंतु इसकी परिणति विवेक पर होती है। केवल विवेकी व्यक्तियों को ही वास्तविक अर्थों में ‘बुद्धिमान व्यक्ति’ या ‘दार्शनिक’ कहा जाता है। इन दोनों अभ्यासों का मूल तत्व ‘सोच’ है। एक सामान्य मनुष्य लापरवाही से सोचता है, लेकिन एक दार्शनिक विशेष रूप से मानव जीवन में उत्पन्न होने वाले सुख-दुखों के विषय में ईमानदारी, गंभीरता और व्यवस्थित रूप से सोचता है। इस प्रक्रिया में कोई दार्शनिक किसी निश्चित व्याख्या, मान्यता या सिद्धांत को स्वीकार करने में झिझकता है; बल्कि एक दार्शनिक प्रचलित धारणाओं, तरीकों, साथ ही उन मानदंडों की समर्पित लगातार और व्यवस्थित जांच-पड़ताल तथा समीक्षा में लगा रहता है।

जीवन के प्रति जिज्ञासा Curiosity about the life

यह सर्वविदित तथ्य है कि जीवन रहस्यों से भरा है, जिसमें बहुत सारे सुख-दुख हैं। जीवन को आम तौर पर पालने से कब्र तक अस्तित्व की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। एक बच्चा पैदा होता है, बड़ा होता है, शादी करता है, संतान पैदा करता है और मर जाता है। परन्तु एक संशय इस जीवन में यह बना हुआ रहता है कि मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? जन्म से पहले आत्मा शरीर में कैसे प्रवेश करती है? हम क्यों पैदा हुए हैं? हमें क्यों जीना चाहिए? जीवन में इतनी बाधाएँ क्यों हैं? हम दुखों पर कैसे विजय पा सकते हैं? भौतिक जीवन का महत्व क्या है? क्या आध्यात्मिक जीवन भौतिक जीवन से श्रेष्ठ है? स्थायित्व और परिवर्तन क्या हैं? वे क्यों उत्पन्न होते हैं? एक और अनेक की समस्या क्या है? संसार की रचना कैसे हुई? वह कौन है जिसने हमे बनाया? वह कौन है चीज़ है जिससे इसे बनाया गया है? क्या ब्रह्माण्ड सदैव अस्तित्व में रहेगा? क्या ईश्वर नाम की कोई महाशक्ति है? ईश्वर का आत्मा और जगत् से क्या सम्बन्ध है? आत्मा एक है या अनेक? दिखावा और हकीकत क्या है?

दार्शनिक तथ्य Philosophical facts

दर्शनशास्त्र इन विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के संभावित उत्तरों को काल्पनिक तर्क के माध्यम से समझाने का प्रयास करता है। चूँकि प्रत्येक दार्शनिक अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार अपना उत्तर विकसित करता है, इसलिए दार्शनिक तथ्यों को भिन्न-भिन्न प्रकार से विकसित किया गया है। एक विचारक दूसरे का खंडन करता है और अपने दृष्टिकोण के साथ आगे आता है जिसे बाद में आनेवाले दार्शनिकों द्वारा खंडित किया जाता है। यह दृष्टिकोण दार्शनिक की ऐतिहासिक स्थिति पर आधारित है। रूपक रूप से कहें तो, एक दार्शनिक साँस छोड़ने से बहुत पहले साँस लेता है, अर्थात, वह उस वातावरण का अध्ययन करता है जिसमें वह रहता है, अपने पूर्ववर्तियों द्वारा व्यक्त की गई दार्शनिक दुविधाओं, अपने समय के दौरान उपलब्ध धर्मग्रंथों या साहित्य का अध्ययन करता है, और संवाद, चर्चा, तर्क आदि विकसित करता है, ताकि वह अपने दार्शनिक सिद्धांतों का प्रदर्शन करने से पहले अपनी बुद्धि को तेज कर सके। विरोधी दृष्टिकोण का खंडन करने की विधि और स्वयं के दृष्टिकोण की प्रस्तुति से दर्शन के ज्ञान में वृद्धि, संवर्धन भी होता है। ज्ञान के नए द्वार खुलते हैं जिससे अज्ञानता दूर होती है। प्राच्य और पश्चिमी दोनों के लगभग सभी दार्शनिकों ने सर्वसम्मति से घोषणा की है कि अज्ञान ही दुख का कारण बनता है और सभी बीमारियों का इलाज ज्ञान प्राप्त करना है।

दार्शनिक ज्ञान कई तरीकों से प्रकट होता है – मुख्यतः सैद्धांतिक और व्यावहारिक। पहला व्याख्यात्मक है जबकि दूसरा सिद्धांत और व्यवहार दोनों का संयोजन है। तर्कसंगत चर्चाएँ मुख्यतः चार दृष्टिकोणों से उत्पन्न होती हैं; आध्यात्मिक, ज्ञानमीमांसीय, नैतिक और धार्मिक।

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