1.2 तत्वमीमांसा का परिचय Introduction to the Metaphysics
इस शब्द संबंधी अर्थ भौतिक विश्व से परे है। इस भौतिक जगत् में हमारा भौतिक संसार से सीधा संबंध है और हम जीवन में इसकी उपस्थिति का अनुभव भी करते हैं। तत्त्वमीमांसा के मुद्दे वास्तविकता के के बौद्धिक विश्लेषण से से संबंधित हैं। वास्तव में देखा जाए तो इस ‘वास्तविकता’ को प्रदर्शित या सिद्ध नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे नकारा भी नहीं जा सकता है। इसलिए हमारे पास वास्तविकता के प्रति सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दृष्टिकोण हैं।
ईश्वर का अस्तित्व
वास्तविकता के विभिन्न तरह के दर्शन ने दार्शनिकों को एक अंतिम वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर किया और इसकी प्रकृति और विशेषताओं को विभिन्न प्रकार से समझने को बाध्य किया। इस प्रकार ईश्वर का विचार अंतिम वास्तविकता के रूप में अधिक महत्व प्राप्त करता है। आस्तिक विचारधारा वाले दार्शनिकों ने ईश्वर के अस्तित्व को तार्किक रूप से सिद्ध करने का प्रयास किया है। उनकी मदद के लिए कुछ धार्मिक ग्रंथों के आधार भी थे। एक ईश्वर में विश्वास को एकेश्वरवाद, दो ईश्वरों की सत्ता को माननेवाले दर्शन को द्वैतवाद और अनेक ईश्वरों की सत्ता को माननेवाले दर्शन को अनेकेश्वरवाद कहा जाता है।
कुछ दार्शनिक ईश्वर की सत्ता का प्रतिवाद करते हैं और आस्तिकों ने दिए हुए ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाणों की अपर्याप्तता या अमान्यता को दर्शाते हैं। कुछ अन्य विचारक नास्तिक तर्कों के साथ ईश्वर के अस्तित्व को भी सीधे तौर पर अस्वीकार भी करते हैं।
आत्मा की सत्ता
तत्त्वमीमांसा में एक अन्य महत्वपूर्ण अवधारणा आत्मा है, जो सभी मानव और अन्य जीवित प्रजातियों में स्थायी शक्ति है, जो चेतना के लिए जिम्मेदार है। ईश्वर की भाँति आत्मा का अस्तित्व भी तर्कों द्वारा स्थापित किया गया है। इस आत्मा की प्राप्ति अथवा इस आत्मा का ज्ञान ही सभी कष्टों से मुक्ति का मार्ग कहलाया गया है। प्राचीन यूनानी दर्शन में बहुत बार ‘खुद को जानो’ इस महावाक्य का उल्लेख मिलता है।
भौतिकवादी दार्शनिक शरीर में स्थायी रूप से रहनेवाले जीवित पदार्थ के अस्तित्व से नहीं मानते हैं। हमेशा की तरह नास्तिक दार्शनिक ईश्वर और आत्मा दोनों के अस्तित्व से इनकार करते हैं। उनके अनुसार मृत्यु ही जीवन का अंत है। कोई भी तथाकथित आत्मा को अपने इन्द्रियों से ‘देख’ या ‘महसूस’ नहीं कर सकता है।
अन्य महत्वपूर्ण तत्त्वमीमांसा के शब्द
और ‘कार्यकारणभाव’, ‘समय’, ‘विशेषताएं’, ‘पदार्थ’, ‘स्थान’, ‘सार्वभौमिकता’, ‘रूप’, ‘मन’, ‘शरीर’, ‘आदर्शवाद’, ‘तर्कवाद’, ‘प्रकृतिवाद’ , ‘एकलवाद’, ‘स्वतंत्र इच्छा’, ‘नियतिवाद’ आदि कुछ तत्त्वमीमांसा की अवधारणाएँ हैं जिन पर बहुत तार्किक चर्चाएँ की गई है और उनके विरोधियों ने तार्किक रूप से खारिज भी कर दिया गया है।
तत्वमीमांसा की अस्वीकृति
कुछ दार्शनिकों ने सत्यापन के सिद्धांत के आधार पर दर्शन से तत्वमीमांसा की अवधारणा को खारिज करने का प्रयास किया है। सभी सत्यापन योग्य कथन इन्द्रियग्राह्य हैं और सत्यापन-अयोग्य कथन इन्द्रिय-अग्राह्य हैं और इसलिए तत्वमीमांसा असंभव है।
तत्वमीमांसा के इस विरोध के बावजूद तत्वमीमांसा का अध्ययन अभी भी अपना महत्व बरकरार रखता है और दर्शनशास्त्र का प्रत्येक विद्यार्थी बड़े चाव से तत्त्वमीमांसा का अध्ययन करता है।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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