काकः कृष्णः पिकः कृष्णः
संस्कृत श्लोक
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः।
वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः॥
श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण
Roman transcription of the Shloka
kākaḥ kṛṣṇaḥ pikaḥ kṛṣṇaḥ ko bhedaḥ pikakākayoḥ।
vasantasamaye prāpte kākaḥ kākaḥ pikaḥ pikaḥ॥
श्लोक का वीडिओ
श्लोक का शब्दार्थ
- काकः – कौआ
- कृष्णः – काला
- पिकः – नर कोयल
- कृष्णः – काला
- कः – कौन (सा)
- भेदः – अन्तर, फर्क
- पिककाकयोः – कोयल और कौवे में
- वन्तसमये प्राप्ते – वसन्त ऋतु का समय आने पर
- काकः काकः – कौआ कौआ (होता है)
- पिकः पिकः – कोयल कोयल (होता है)
श्लोक का अन्वय
काकः कृष्णः (भवति) पिकः (अपि) कृष्णः (भवति)। (तर्हि) पिककाकयोः कः भेदः (अस्ति)?
वसन्तसमये प्राप्ते (सति) काकः काकः (भवति), पिकः (च) पिकः (भवति)।
हिन्दी अनुवाद
कौआ काला होता है, कोयल भी काला होता है। तो फिर कोयल और कौए में क्या अन्तर है?
वसन्त ऋतु के समय में कौआ कौआ होता है और कोयल कोयल होता है।
श्लोक का स्पष्टीकरण
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः इस श्लोक के तात्पर्य को हम इस प्रकार समझ सकते हैं।
कौआ भी काला होता है और कोयल भी काला ही होता है। हम केवल एक नजर से इन दोनों को पहचान नहीं सकते। तो इनकी पहचान क्या है?
इन दोनों में अंतर है इनकी ध्वनि। कौए की ध्वनि कर्कश होती है। कौए की आवज सुनना कोई भी पसंद नहीं करता। कौआ जब कांव कांव की कर्कश ध्वनि में चिल्लाता है, तब समझ जाता है कि यह कौआ है।
लेकिन कोयल की आवाज मधुर होती है। जब कोयल अपनी मधुर आवाज में अपने गीत सुनाता है, तो समझ जाता है कि यह कौआ नहीं कोयल है।
लेकिन कोयल गाता कब है? – वसन्त ऋतु में।
जब वसन्त ऋतु आता है, तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है, कौए का कौआ और कोयल का कोयल हो जाता है। यानी उन की आवाज से हम पहचान जाते हैं कि यह कौआ है और यह कोयल है।
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः इस श्लोक की ख़ासीयत
इस श्लोक की खासीयत यह है कि इस श्लोक में उपध्मानीय और जिह्वामूलीय वर्ण का उदाहरण मिलता है।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
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