कार्यमद्यतनीयं यत्
संत कबीर जी ने हिन्दी भाषा में एक दोहा लिखा है –
कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
– संत कबीर दास
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥
यह दोहा बहुत प्रसिद्ध है। इस ही दोहे का जो भाव है, उस भाव को एक संस्कृत सुभाषितकार ने भी अपने सुभाषित श्लोक में व्यक्त किया है। सर्वप्रथम हम इस श्लोक को पढ़ते हैं –
श्लोक
कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।
विपरीता गतिर्यस्य स कष्टं लभते धृवम्॥
श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण
kāryamadyatanīyaṁ yat tadadyaiva vidhīyatām
viparītā gatiryasya sa kaṣṭaṁ labhate dhṛvam
श्लोक का शब्दार्थ
अब हम इस श्लोक के प्रत्येक पद का हिन्दी अर्थ देखते हैं –
- कार्यम् – काम
- अद्यतनीयम् – आज का
- यत् – जो
- तत् – वह
- अद्य – आज
- एव – ही
- विधीयताम् – किया जाए
- विपरीता – उलटी
- गतिः – गति। काम करने की पद्धति
- यस्य – जिसकी (है)
- सः – वह
- कष्टम् – तकलीफ
- लभते – पाता है
- धृवम् – निश्चय ही। पक्का।
श्लोक का अन्वय
अन्वय किसे कहते हैं?
अन्वय का अर्थ होता है कि संस्कृत श्लोक में मौजूद शब्द अपनी भाषा के अनुरूप पुनः योग्य क्रम से लिखना। जिससे की हमें श्लोक का अर्थ समझने में आसानी हो।
प्रस्तुत श्लोक का अन्वय
यत् कार्यम् अद्यतनीयम् (अस्ति) तत् अद्य एव विधीयताम्। यस्य गतिः विपरीता (अस्ति) सः (मनुष्यः) धृवं कष्टं लभते।
श्लोक का हिन्दी अर्थ
जो कार्य आज का है, वह आज ही किया जाना चाहिए। जिसकी गति उलटी होती है, वह मनुष्य निश्चय ही तकलीफ पाता है।
व्याकरण
सन्धि
- तदद्यैव – तत् + अद्य + एव। (जश्त्व, वृद्धि)
- गतिर्यस्य – गतिः + यस्य। (रुत्व)
- स कष्टम् – सः + कष्टम्। (विसर्गलोप)