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- 1.2 तत्वमीमांसा का परिचय Introduction to the Metaphysicsइस शब्द संबंधी अर्थ भौतिक विश्व से परे है। इस भौतिक जगत् में हमारा भौतिक संसार से सीधा संबंध है और हम जीवन में इसकी उपस्थिति का अनुभव भी करते हैं। तत्त्वमीमांसा के मुद्दे वास्तविकता के के बौद्धिक विश्लेषण से से संबंधित हैं। वास्तव में देखा जाए तो इस ‘वास्तविकता’ को प्रदर्शित या सिद्ध नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे नकारा भी नहीं जा सकता है। इसलिए हमारे पास वास्तविकता के प्रति सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दृष्टिकोण हैं। ईश्वर का अस्तित्व वास्तविकता के विभिन्न तरह के दर्शन ने दार्शनिकों को एक अंतिम वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर किया और इसकी प्रकृति और विशेषताओं को विभिन्न प्रकार से समझने को बाध्य किया। इस प्रकार ईश्वर का विचार अंतिम वास्तविकता के रूप में अधिक महत्व प्राप्त करता है। आस्तिक विचारधारा वाले दार्शनिकों ने ईश्वर के अस्तित्व को तार्किक रूप से सिद्ध करने का प्रयास किया है। उनकी मदद के लिए कुछ धार्मिक ग्रंथों के आधार भी थे। एक ईश्वर में विश्वास को एकेश्वरवाद, दो ईश्वरों की सत्ता को माननेवाले दर्शन को द्वैतवाद और अनेक ईश्वरों की सत्ता को माननेवाले दर्शन को अनेकेश्वरवाद कहा जाता है। कुछ दार्शनिक ईश्वर की सत्ता का प्रतिवाद करते हैं और आस्तिकों ने दिए हुए ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाणों की अपर्याप्तता या अमान्यता को दर्शाते हैं। कुछ अन्य विचारक नास्तिक तर्कों के साथ ईश्वर के अस्तित्व को भी सीधे तौर पर अस्वीकार भी करते हैं। आत्मा की सत्ता तत्त्वमीमांसा में एक अन्य महत्वपूर्ण अवधारणा आत्मा है, जो सभी मानव और अन्य जीवित प्रजातियों में स्थायी शक्ति है, जो चेतना के लिए जिम्मेदार है। ईश्वर की भाँति आत्मा का अस्तित्व भी तर्कों द्वारा स्थापित किया गया है। इस आत्मा की प्राप्ति अथवा इस आत्मा का ज्ञान ही सभी कष्टों से मुक्ति का मार्ग कहलाया गया है। प्राचीन यूनानी दर्शन में बहुत बार ‘खुद को जानो’ इस महावाक्य का उल्लेख मिलता है। भौतिकवादी दार्शनिक शरीर में स्थायी रूप से रहनेवाले जीवित पदार्थ के अस्तित्व से नहीं मानते हैं। हमेशा की तरह नास्तिक दार्शनिक ईश्वर और आत्मा दोनों के अस्तित्व से इनकार करते हैं। उनके अनुसार मृत्यु ही जीवन का अंत है। कोई भी तथाकथित आत्मा को अपने इन्द्रियों से ‘देख’ या ‘महसूस’ नहीं कर सकता है। अन्य महत्वपूर्ण तत्त्वमीमांसा के शब्द और ‘कार्यकारणभाव’, ‘समय’, ‘विशेषताएं’, ‘पदार्थ’, ‘स्थान’, ‘सार्वभौमिकता’, ‘रूप’, ‘मन’, ‘शरीर’, ‘आदर्शवाद’, ‘तर्कवाद’, ‘प्रकृतिवाद’ , ‘एकलवाद’, ‘स्वतंत्र इच्छा’, ‘नियतिवाद’ आदि कुछ तत्त्वमीमांसा की अवधारणाएँ हैं जिन पर बहुत तार्किक चर्चाएँ की गई है और उनके विरोधियों ने तार्किक रूप से खारिज भी कर दिया गया है। तत्वमीमांसा की अस्वीकृति कुछ दार्शनिकों ने सत्यापन के सिद्धांत के आधार पर दर्शन से तत्वमीमांसा की अवधारणा को खारिज करने का प्रयास किया है। सभी सत्यापन योग्य कथन इन्द्रियग्राह्य हैं और सत्यापन-अयोग्य कथन इन्द्रिय-अग्राह्य हैं और इसलिए तत्वमीमांसा असंभव है। तत्वमीमांसा के इस विरोध के बावजूद तत्वमीमांसा का अध्ययन अभी भी अपना महत्व बरकरार रखता है और दर्शनशास्त्र का प्रत्येक विद्यार्थी बड़े चाव से तत्त्वमीमांसा का अध्ययन करता है।
- 1.1 दर्शनशास्त्र का परिचय Introduction to Philosophyदर्शनशास्त्र के परिचय का वीडिओ दर्शनशास्त्र और विवेक Philosohy and wisdom दर्शनशास्त्र विवेक के प्रति आकर्षण विकसित करता है जो ज्ञान से भिन्न है। ज्ञान इंद्रियों और मन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है जबकि विवेक आत्मा प्राप्त किया जाता है। ज्ञान दोषार्ह, सशर्त, सीमित और परिवर्तनशील है जबकि विवेक अचूक, बिनशर्त, असीमित और अपरिवर्तनीय है। यद्यपि दर्शन प्रारंभ में ज्ञान से शुरू होता है, परंतु इसकी परिणति विवेक पर होती है। केवल विवेकी व्यक्तियों को ही वास्तविक अर्थों में ‘बुद्धिमान व्यक्ति’ या ‘दार्शनिक’ कहा जाता है। इन दोनों अभ्यासों का मूल तत्व ‘सोच’ है। एक सामान्य मनुष्य लापरवाही से सोचता है, लेकिन एक दार्शनिक विशेष रूप से मानव जीवन में उत्पन्न होने वाले सुख-दुखों के विषय में ईमानदारी, गंभीरता और व्यवस्थित रूप से सोचता है। इस प्रक्रिया में कोई दार्शनिक किसी निश्चित व्याख्या, मान्यता या सिद्धांत को स्वीकार करने में झिझकता है; बल्कि एक दार्शनिक प्रचलित धारणाओं, तरीकों, साथ ही उन मानदंडों की समर्पित लगातार और व्यवस्थित जांच-पड़ताल तथा समीक्षा में लगा रहता है। जीवन के प्रति जिज्ञासा Curiosity about the life यह सर्वविदित तथ्य है कि जीवन रहस्यों से भरा है, जिसमें बहुत सारे सुख-दुख हैं। जीवन को आम तौर पर पालने से कब्र तक अस्तित्व की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। एक बच्चा पैदा होता है, बड़ा होता है, शादी करता है, संतान पैदा करता है और मर जाता है। परन्तु एक संशय इस जीवन में यह बना हुआ रहता है कि मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? जन्म से पहले आत्मा शरीर में कैसे प्रवेश करती है? हम क्यों पैदा हुए हैं? हमें क्यों जीना चाहिए? जीवन में इतनी बाधाएँ क्यों हैं? हम दुखों पर कैसे विजय पा सकते हैं? भौतिक जीवन का महत्व क्या है? क्या आध्यात्मिक जीवन भौतिक जीवन से श्रेष्ठ है? स्थायित्व और परिवर्तन क्या हैं? वे क्यों उत्पन्न होते हैं? एक और अनेक की समस्या क्या है? संसार की रचना कैसे हुई? वह कौन है जिसने हमे बनाया? वह कौन है चीज़ है जिससे इसे बनाया गया है? क्या ब्रह्माण्ड सदैव अस्तित्व में रहेगा? क्या ईश्वर नाम की कोई महाशक्ति है? ईश्वर का आत्मा और जगत् से क्या सम्बन्ध है? आत्मा एक है या अनेक? दिखावा और हकीकत क्या है? दार्शनिक तथ्य Philosophical facts दर्शनशास्त्र इन विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के संभावित उत्तरों को काल्पनिक तर्क के माध्यम से समझाने का प्रयास करता है। चूँकि प्रत्येक दार्शनिक अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार अपना उत्तर विकसित करता है, इसलिए दार्शनिक तथ्यों को भिन्न-भिन्न प्रकार से विकसित किया गया है। एक विचारक दूसरे का खंडन करता है और अपने दृष्टिकोण के साथ आगे आता है जिसे बाद में आनेवाले दार्शनिकों द्वारा खंडित किया जाता है। यह दृष्टिकोण दार्शनिक की ऐतिहासिक स्थिति पर आधारित है। रूपक रूप से कहें तो, एक दार्शनिक साँस छोड़ने से बहुत पहले साँस लेता है, अर्थात, वह उस वातावरण का अध्ययन करता है जिसमें वह रहता है, अपने पूर्ववर्तियों द्वारा व्यक्त की गई दार्शनिक दुविधाओं, अपने समय के दौरान उपलब्ध धर्मग्रंथों या साहित्य का अध्ययन करता है, और संवाद, चर्चा, तर्क आदि विकसित करता है, ताकि वह अपने दार्शनिक सिद्धांतों का प्रदर्शन करने से पहले अपनी बुद्धि को तेज कर सके। विरोधी दृष्टिकोण का खंडन करने की विधि और स्वयं के दृष्टिकोण की प्रस्तुति से दर्शन के ज्ञान में वृद्धि, संवर्धन भी होता है। ज्ञान के नए द्वार खुलते हैं जिससे अज्ञानता दूर होती है। प्राच्य और पश्चिमी दोनों के लगभग सभी दार्शनिकों ने सर्वसम्मति से घोषणा की है कि अज्ञान ही दुख का कारण बनता है और सभी बीमारियों का इलाज ज्ञान प्राप्त करना है। दार्शनिक ज्ञान कई तरीकों से प्रकट होता है – मुख्यतः सैद्धांतिक और व्यावहारिक। पहला व्याख्यात्मक है जबकि दूसरा सिद्धांत और व्यवहार दोनों का संयोजन है। तर्कसंगत चर्चाएँ मुख्यतः चार दृष्टिकोणों से उत्पन्न होती हैं; आध्यात्मिक, ज्ञानमीमांसीय, नैतिक और धार्मिक।
- स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध् वंसनंमधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। ने 1 दस्तावेज़ अटैच किया मधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। (madhukar.atole.sns) ने निम्न दस्तावेज़ अनुलग्न किया है: स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं शौचस्यायतनं मलापहरणं संवर्धनं तेजसः। रूपद्योतकरं रिपुप्रमथनं कामाग्निसंदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दशैते गुणाः।। चाणक्यराजनीति वैद्यकीय सुभाषित साहित्य। 8.12 पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसाद-जननं दुःस्वप्न-विध्वंसनं शौचस्य आयतनं मल-अपहरणं संवर्धनं तेजसः। रूप-द्योतकरं रिपु-प्रमथनं काम-अग्नि-संदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दश एते गुणाः।। अन्वय स्नानं नाम मनःप्रसादजननं, दुःस्वप्नविध्वंसनं, शौचस्य आयतनं, मलापहरणं, तेजसः संवर्धनं, रूपद्योतकरं, रिपुप्रमथनं, कामाग्निसंदीपनं, नारीणां च मनोहरं, श्रमहरं (च भवति)। एते दश गुणाः स्नाने (भवन्ति)। व्याकरण मनःप्रसादजननम् मनसः प्रसादः – मनःप्रसादः। षष्ठी तत्पुरुष समास। मनःप्रसादस्य जननम्। षष्ठी तत्पुरुष। दुःस्वप्नविध्वंसनम् दुःस्वप्नस्य विध्वंसनम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। मलापहरणम् मलस्य अपहरणम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। 2 स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं Google LLC, 1600 Amphitheatre Parkway, Mountain View, CA 94043, USA आपको यह ईमेल इसलिए मिला है, क्योंकि madhukar.atole.sns ने Google Docs से आपके साथ दस्तावेज़ शेयर किया है. स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं शौचस्यायतनं मलापहरणं संवर्धनं तेजसः। रूपद्योतकरं रिपुप्रमथनं कामाग्निसंदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दशैते गुणाः।। चाणक्यराजनीति वैद्यकीय सुभाषित साहित्य। 8.12 पदच्छेद स्नानं नाम मनःप्रसाद-जननं दुःस्वप्न-विध्वंसनं शौचस्य आयतनं मल-अपहरणं संवर्धनं तेजसः। रूप-द्योतकरं रिपु-प्रमथनं काम-अग्नि-संदीपनं नारीणां च मनोहरं श्रमहरं स्नाने दश एते गुणाः।। अन्वय स्नानं नाम मनःप्रसादजननं, दुःस्वप्नविध्वंसनं, शौचस्य आयतनं, मलापहरणं, तेजसः संवर्धनं, रूपद्योतकरं, रिपुप्रमथनं, कामाग्निसंदीपनं, नारीणां च मनोहरं, श्रमहरं (च भवति)। एते दश गुणाः स्नाने (भवन्ति)। व्याकरण मनःप्रसादजननम् मनसः प्रसादः – मनःप्रसादः। षष्ठी तत्पुरुष समास। मनःप्रसादस्य जननम्। षष्ठी तत्पुरुष। दुःस्वप्नविध्वंसनम् दुःस्वप्नस्य विध्वंसनम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। मलापहरणम् मलस्य अपहरणम्। षष्ठी तत्पुरुष समास। 2
- स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध् वंसनंमधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। ने 1 दस्तावेज़ अटैच किया मधुकर ।। वदतु संस्कृतम्।। (madhukar.atole.sns) ने निम्न दस्तावेज़ अनुलग्न किया है: स्नानं नाम मनःप्रसादजननं दुःस्वप्नविध्वंसनं Google LLC, 1600 Amphitheatre Parkway, Mountain View, CA 94043, USA आपको यह ईमेल इसलिए मिला है, क्योंकि madhukar.atole.sns ने Google Docs से आपके साथ दस्तावेज़ शेयर किया है.
- नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्।पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥ श्लोक का पदच्छेद नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोमि अहम्।पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥ श्लोक का शब्दार्थ श्लोक का अन्वय अहं (वरदराजः) सरस्वतीं देवीं नत्वा शुद्धां गुण्यां लघुसिद्धान्तकौमुदीं पाणिनीयप्रवेशाय करोमि। श्लोक का हिन्दी अनुवाद मैं (वरदराज) सरस्वती देवी को नमन करके शुद्ध और बहुगुणवती लघुसिद्धांतकौमुदी को पाणिनीय (व्याकरण) में प्रवेश के लिए बना रहा हूँ। English Translation of the Shloka I (Varadrāja) having bowed to Goddess Saraswati compose the errorless and virtuous LaghuSiddhantKaumudi to enter the Pāninian Grammar. श्लोकाचे मराठी भाषांतर मी (वरदराज) सरस्वती देवीला नमस्कार करून शुद्ध व बहुगुणवती अशी लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीय व्याकरणामध्ये प्रवेशासाठी बनवत आहे. श्लोकस्य संस्कृतेन भावार्थ अहं (वरदराजः) सरस्वतीं देवीं नमनं कृत्वा शुद्धां दोषरहितां गुण्यां बहुगुणवतीं लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीये व्याकरणे प्रवेशार्थं लिखामि।
- नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् – श्लोक का हिन्दी English अनुवादयह श्लोक महाभारत, श्रीमद्भागवत् महापुराण और वायुपुराण के आरंभ में पढ़ा गया है। इस लेख में हम इस श्लोक के अर्थ हिन्दी तथा English भाषा में पढ़ेगे। साथ ही साथ श्लोक का पदविभाग और अन्वयार्थ भी पढ़ेगे। श्लोक नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। English transliteration of श्लोक nārāyaṇaṃ namaskṛtya naraṃ caiva narottamam।devīṃ sarasvatīṃ vyāsaṃ tato jayamudīrayet।। श्लोक का पदविभाग और शब्दार्थ श्लोक का अन्वय नारायणं, नरोत्तमं नरम् (अर्जुनं) देवीं सरस्वतीं, व्यासं चैव नमस्कृत्य ततः जयम् उदीरयेत्। श्लोक का हिन्दी अनुवाद नारायण (श्रीहरि विष्णु) को, सभी मनुष्यों में उत्तम मनुष्य अर्जुन को, देवी सरस्वती को और व्यास जी को नमस्कार करने के बाद जय (नामक ग्रन्थ यानी महाभारत का) पाठ करना चाहिए। English translation of the श्लोक One should recite Jay (which is known as the Mahabharata) only after saluting Narayan (Shri Hari Vishnu), Arjuna who is the best man of all human beings, Goddess Saraswati and the sage Vyas.
- यत्र देशेऽथवा स्थाने – श्लोक का अर्थपुरुष को किस स्थान अथवा गांव में (यत्र देशेऽथवा स्थाने) रहना नहीं चाहिए इस बात को इस श्लोक में बताया गया है। साथ ही ऐसे निषिद्ध स्थान पर रहनेवाले को पुरुषाधम (पुरुषों में अधम, नीच) कहा गया है।
- सौहार्दं प्रकृतेः शोभा – प्रश्नोत्तर। NCERT Solutions Class 10 – Sauhardam PrakruteH Shobhaइस लेख में सौहार्दं प्रकृतेः शोभा (Sauhardam PrakruteH Shobha) इस पाठ के सभी प्रश्नों के उत्तर हैं। और साथ में प्रश्नों के उत्तरों को वीडिओ के माध्यम से भी समझाने का प्रयत्न किया है। Solution of question 1. एकपदेन उत्तरं लिखत। (क) वनराजः कैः दुरवस्थां प्राप्तः? – तुच्छजीवैः। (ख) कः वातावरणं कर्कशध्वनिना आकुलीकरोति? – काकः। (ग) काकचेष्टः विद्यार्थी कीदृशः छात्रः मन्यते? – आदर्शच्छात्रः। (घ) कः आत्मानं बलशालिनं, विशालकयं, पराक्रमिणं च कथयति? – गजः। (ङ) बकः कीदृशान् मीनान् क्रूरतया भक्षयति? – वराकान्। Solution of question 2. अधोलिखितप्रश्नानामुत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत। (क) नि:संशयं कः कृतान्तः मन्यते? यः राजा वित्रस्तान् परैः पीड्यमानान् सदा न रक्षति सः निःसंशयं पार्थिवरूपेण कृतान्तः मन्यते। (ख) बकः वन्यजन्तूनां रक्षोपायान् कथं चिन्तयितुं कथयति? बकः शीतले जले बहुकालपर्यन्तं अविचलः ध्यानमग्नः स्थितप्रज्ञः इव स्थित्वा सर्वेषां वन्यजन्तूनां रक्षायाः उपायान् चिन्तयिष्यति। (ग) अन्ते प्रकृतिमाता प्रविश्य सर्वप्रथमं किं वदति? अन्ते प्रकृतिमाता प्रविश्य सर्वप्रथमं इति सस्नेहं वदति – भोः भोः प्राणिनः। यूयं सर्वे एव मे सन्ततयः। कथं मिथः कलहं कुरुथ। वस्तुतः सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः। (घ) यदि राजा सम्यक् न भवति तदा प्रजा कथं विप्लवेत? यदि राजा सम्यक् न भवति तदा यथा अकर्णधारा नौः जलधौ तथा प्रजा विप्लवेत। (ङ) मयूरः कथं नृत्यमुद्रायां स्थितः भवति? मयूरः पिच्छानुद्धाट्य नृत्यमुद्रायां स्थितः भवति? (च) अन्ते सर्वे मिलित्वा कस्य राज्याभिषेकाय तत्पराः भवति? अन्ते सर्वे मिलित्वा उलूकस्य राज्याभिषेकाय तत्पराः भवति। (छ) अस्मिन्नाटके कति पात्राणि सन्ति? अस्मिन् नाटके द्वादश पात्राणि सन्ति। Solution of question 3. रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत। (क) सिंहः वानराभ्यां स्वरक्षायाम् असमर्थः एवासीत्। सिंहः वानराभ्यां कस्याम् असमर्थः एवासीत्? (ख) गजः वन्यपशून् तुदन्तं शुण्डेन पोथयित्वा मारयति। गजः वन्यपशून् तुदन्तं केन पोथयित्वा मारयति? (ग) वानरः आत्मानं वनराजपदाय योग्यं मन्यते। वानरः आत्मानं कस्मै योग्यं मन्यते? (घ) मयूरस्य नृत्यं प्रकृतेः आराधना। मयूरस्य नृत्यं कस्याः आराधना? (ङ) सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति। सर्वे कां प्रणमन्ति? Solution of question 4. शुद्धकथनानां समक्षम् |आम्| अशुद्धकथनानां च समक्षं |न| इति लिखत। (क) सिंहः आत्मानं तुदन्तं वानरं मारयति। न। (ख) का-का इति बकस्य ध्वनिः भवति। न। (ग) काकपिकयोः वर्णः कृष्णः भवति। आम्। (घ) गजः लघुकायः, निर्बलः च भवति। न। (ङ) मयूरः बकस्य कारणात् पक्षिकुलम् अवमानितं मन्यते। आम्। (च) अन्योन्यसहयोगेन प्राणिनाम् लाभः जायते। आम्। Solution of question 5. मञ्जूषातः समुचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत। स्थितप्रज्ञः, यथासमयम्, मेध्यामध्यभक्षकः, अहिभुक्, आत्मश्लाघाहीनः, पिकः। (क) काकः………………भवति। काकः मेध्यामध्यभक्षकः भवति। (ख) ……………परभृत् अपि कथ्यते। पिकः परभृत् अपि कथ्यते। (ग) बकः अविचलः…………………इव तिष्ठति। बकः अविचलः स्थितप्रज्ञः इव तिष्ठति। (घ) मयूरः……………इति नाम्नाऽपि ज्ञायते। मयूरः अहिभुक् इति नाम्नाऽपि ज्ञायते। (ङ) उलूकः……………….पदनिर्लिप्तः चासीत्। उलूकः आत्मश्लाघाहीनः पदनिर्लिप्तः चासीत्। (च) सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते………………..। सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते यथासमयम्। Solution of question 6. वाच्यपरिवर्तनं कृत्वा लिखत। उदाहरणम् – क्रुद्धः सिंहः इतस्ततः धावति गर्जति च। – क्रुद्धेन सिंहेन इतस्ततः धाव्यते गर्ज्यते च। (क) त्वया सत्यं कथितम्। त्वं सत्यम् उक्तवान्। (ख) सिंहः सर्वजन्तून् पृच्छति। सिंहेन सर्वजन्तवः पृच्छ्यन्ते। (ग) काकः पिकस्य संततिं पालयति। काकेन पिकस्य सन्ततिः पाल्यते। (घ) मयूरः विधात्रा एव पक्षिराजः वनराजः वा कृतः। मयूरं विधाता एव पक्षिराजं वनराजं वा कृतवान् (ङ) सर्वैः खगैः कोऽपि खगः एव वनराजः कर्तुमिष्यते स्म। सर्वे खगाः कमपि खगम् एव वनराजं कर्तुम् इच्छन्ति स्म। (च) सर्वे मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय प्रयत्नं कुर्वन्तु। सर्वैः मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय प्रयत्नः क्रियताम्। Solution of question 7. समासविग्रहं समस्तपदं वा लिखत (क) तुच्छजीवैः तुच्छैः जीवैः तुच्छैः च तैः जीवैः (कर्मधारयः) (ख) वृक्षोपरि वृक्षस्य उपरि (षष्ठीतत्पुरुषः) (ग) पक्षिणां सम्राट् पक्षिसम्राट् (षष्ठीतत्पुरुषः) (घ) स्थिता प्रज्ञा यस्य सः स्थितप्रज्ञः (बहुव्रीहिः) (ङ) अपूर्वम् न पूर्वम् (नञ्तत्पुरुषः) (च) व्याघ्रचित्रका यहाँ एक मुद्रणदोष (टाईपोग्राफिक एरर) है। वस्तुतः यह व्याघ्रचित्रकौ ऐसा होना चाहिए। तब ही इस का समासविग्रह हो सकता है। हमारे पाठ सौहार्दं प्रकृतेः शोभा में भी व्याघ्रचित्रकौ ऐसा ही है। अतः हम यहाँ व्याघ्रचित्रका के स्थान पर व्याघ्रचित्रकौ ही मान कर चल रहे हैं। व्याघ्रः च चित्रकः च (समाहारद्वन्द्वः) इस प्रकार से हम ने सौहार्दं प्रकृतेः शोभा प्रश्नोत्तर (Sauhardam PrakruteH Shobha Solutions) इस लेख के माध्यम से आप के लिए सभी प्रश्नों के उत्तर बताने का प्रयत्न किया है। यदि आप को कोई शंका, समस्या अथवा प्रश्न हो तो नीचे टिप्पणी के द्वारा हमें अवश्य ही सूचित करें। धन्यवाद।
- शुचिपर्यावरणम् – प्रश्नोत्तर। NCERT Solutions Class 10 Shuchiparyavaranamयदि आप शुचिपर्यावरणम् इस पाठ के सभी प्रश्नोत्तरों को पढ़ना चाहते हैं तो यह लेख आप के लिए है। इस लेख में NCERT द्वारा प्रकाशित शेमुषी इस पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित पाठ – शुचिपर्यावरणम् इस पाठ के सभी प्रश्न और उत्तर यहाँ हैं। 1. एकपदेन उत्तरं लिखत। (क) अत्र जीवितं कीदृशं जातम्? दुर्वहम्। (ख) अनिशं महानगरमध्ये किं प्रचलति? कालायसचक्रम्। (ग) कुत्सितवस्तुमिश्रितं किमस्ति? भक्ष्यम्। (घ) अहं कस्मै जीवनं कामये? मानवाय। (ङ) केषां माला रमणीया? हरिततरूणां ललितलतानां च। 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत। (क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणम् इच्छति? महानगरेषु जीवनं दुर्वहं जातम् अतः कविः प्रकृतेः शरणम् इच्छति। (ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते? महानगरेषु यानानां पङ्क्तयः अनन्ताः सन्ति इत्यस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते। (ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितम् अस्ति? अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं, जलं भक्ष्यं च दूषितं सन्ति। (घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति? कविः एकान्ते कान्तारे सञ्चरणं कर्तुम् इच्छति। (ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्? स्वस्थजीवनाय खगकुलकलरवगुञ्जितवनदेशस्य प्राकृतिके वातावरणे भ्रमणीयम् (च) अन्तिमे पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति? अन्तिमे पद्यांशे कविः एवं कामनां करोति यत् मानवानां प्रस्तराणां तले प्राकृतिकाः लता-तरु-गुल्माः पिष्टाः नष्टाः न भवन्तु, मानवानां पाषाणैः निसर्गस्य नाशः न भवतु, तथैव च कविः मानवाय जीवनं कामयते इच्छति न तु जीवने एव मरणम्। 3. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत। (क) प्रकृतिः + ………………….. = प्रकृतिरेव प्रकृतिः + एव = प्रकृतिरेव (ख) स्यात् + …….. + …… = स्यान्नैव स्यात् + न + एव = स्यान्नैव (ग) ……… + अनन्ताः = ह्यनन्ताः हि + अनन्ताः = ह्यनन्ताः (घ) बहिः + अन्तः + जगति = ……. बहिः + अन्तः + जगति = बहिरन्तर्जगति (ङ) ……. + नगरात् = अस्मान्नगरात् अस्मात् + नगरात् = अस्मान्नगरात् (च) सम् + चरणम् = ……….. सम् + चरणम् = सञ्चरणम् / संचरणम् (छ) धूमम् + मुञ्चति = ………… धूमम् + मुञ्चति = धूमम्मुञ्चति / धूमं मुञ्चति 4. अधोलिखितानाम् अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत। भृशम्, यत्र, तत्र, अत्र, अपि, एव, सदा, बहिः (क) इदानीं वायुमण्डलं ……….. प्रदूषितमस्ति। (ख) … जीवनं दुर्वहम् अस्ति। (ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् …. .. लाभदायकं भवति। (घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् . .. प्रकृतेः आराधना। (ङ) ……….. समयस्य सदुपयोगः करणीयः। (च) भूकम्पित-समये ………… गमनमेव उचितं भवति। (छ) …………… हरितिमा …. …… शुचि पर्यावरणम्। उत्तराणि (क) इदानीं वायुमण्डलं भृशं प्रदूषितमस्ति। (ख) अत्र जीवनं दुर्वहम् अस्ति। (ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति। (घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना। (ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः। (च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति। (छ) यत्र हरितिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्। 5. (अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत। (क) सलिलम् जलम्। (ख) आम्रम् रसालम्। (ग) वनम् कान्तारम्। (घ) शरीरम् तनुः। (ङ) कुटिलम् वक्रम्। (च) पाषाणः प्रस्तरः। (आ) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत। (क) सुकरम् दुर्वहम्। (ख) दूषितम् निर्मलम्। (ग) गृह्णन्ती वितरन्ती। (घ) निर्मलम् समलम्। (ङ) दानवाय मानवाय। (च) सान्ताः अनन्ताः। 6. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समासनाम च लिखत। यथा- विग्रहवाक्यानि – समस्तपदानि – समासनाम (क) मलेन सहितम् समलम् – अव्ययीभाव । (ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां) हरिततरूणाम् – कर्मधारयः। (ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्) ललितलतानाम् – कर्मधारयः। (घ) नवा मालिका नवमालिका – कर्मधारयः। (ङ) धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) धृतसुखसन्देशः – बहुव्रीहिः। (च) कज्जलम् इव मलिनम् कज्जलमलिनम् – कर्मधारयः। (छ) दुर्दान्तैः दशनैः दुर्दान्तदशनैः – कर्मधारयः। 7. रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति। शकटीयानम् कीदृशं धूमं मुञ्चति? (ख) उद्याने पक्षिणां कलरवं चेतः प्रसादयति। उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति? (ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति। पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति? (घ) महानगरेषु वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति। केषु / कुत्र वाहनानाम् अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति। (ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते। कस्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।
- निशान्ते पिबेद्वारि दिनान्ते च पयः पिबेत् – आयुर्वेद श्लोक पदच्छेद, शब्दार्थ, अन्वय, अनुवादश्लोक निशान्ते पिबेद्वारि दिनान्ते च पयः पिबेत्।भोजनान्ते पिबेत्तक्रं किं वैद्यस्य प्रयोजनम्॥ पदच्छेद निशान्ते पिबेत् वारि दिनान्ते च पयः पिबेत्।भोजनान्ते पिबेत् तक्रं किं वैद्यस्य प्रयोजनम्॥ शब्दार्थ संस्कृतम् मराठी हिन्दी English निशान्ते रात्रीच्या शेवटी (म्हणजे सकाळी) रात्रि के अन्त में (अर्थात सुबह) At the end of night; i. e. at the morning पिबेत् प्यावे पीना चाहिए Should drink वारि पाणी जल, पानी Water दिनान्ते दिवसाच्या शेवटी (म्हणजे रात्री झोपण्यापूर्वी) दिन के अन्त में (अर्थात् रात्रि में सोने से पहले) At the end of the day; i. e. before going to bed. च आणि और And पयः दूध दूध Milk पिबेत् प्यावे पीना चाहिए Should drink भोजनान्ते भोजनाच्या शेवटी (म्हणजे दुपारी भोजनानंतर) भोजन के अन्त में (अर्थात् दोपर के भोजन के बाद) After the lunch पिबेत् प्यावे पीना चाहिए Should drink तक्रम् ताक छाछ Buttermilk किम् काय क्या What वैद्यस्य वैद्याचे (डॉक्टरचे) वैद्य का (डाक्टर का) Doctor’s / ….of doctor प्रयोजन काम उपयोग, काम Use अन्वय (मनुष्यः) निशान्ते वारि पिबेत्, दिनान्ते च पयः पिबेत्, भोजनान्ते (च) तक्रं पिबेत्। (तथा कृते) वैद्यस्य किं प्रयोजनं (भविष्यति)? अनुवाद मराठी अनुवाद मनुष्याने सकाळी (उठल्यावर लगेच) पाणी प्यावे, रात्री (झोपण्यापूर्वी) दूध प्यावे, (दुपारी) भोजन झाल्यावर ताक प्यावे। तसे केल्यावर वैद्याचे (डॉक्टरांचे) काय काम पडेल? हिन्दी अनुवाद मनुष्य ने सुबह (उठने के बाद सबसे पहले) पानी चाहिए, रात्रि में (नींद से पहले) दूध पीना चाहिए, (दोपहर) भोजन के पश्चात् छाछ पीना चाहिए। ऐसा करने पर वैद्यजी (डाक्टर) का क्या काम? English translation A man should drink water early in the morning, should drink milk before going to bed and should drink buttermilk after having lunch. If done so, there will be no need for a doctor.
- शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे – श्लोक अर्थ, अनुवाद, अन्वयश्लोक शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ पदच्छेद शरणागत-दीन-आर्त-परित्राण-परायणे।सर्वस्य आर्तिहरे देवि नारायणि नमः अस्तु ते॥ शब्दार्थ संस्कृतम् मराठी हिन्दी English शरणागत शरण आलेला जो शरण आया है Surrendered दीन गरीब गरीब Poor आर्त दुःखी दुखी Sad परित्राण रक्षण रक्षण Protection परायणे तत्पर असलेली तत्पर Ready सर्वस्य सगळ्यांचे सभी के … of all आर्तिहरे दुःख हरण करणारी दुख हरण करनेवाली Who takes sorrow away देवि हे देवी हे देवी Goddess नारायणि हे नारायणी नारायणी Narayani नमः नमस्कार नमस्कार Salutation अस्तु आहे है Is ते तुला आप को To you अन्वय (हे) शरणागत-दीन-आर्त-परित्राण-परायणे, सर्वस्य आर्तिहरे, नारायणिदेवि! ते नमः अस्तु। मराठी अनुवाद हे शरण आलेल्या, गरीब, दुःखी लोकांचे रक्षण करण्यात तत्पर असलेली, सगळ्यांचे दुःख दूर करणारी, नारायणी देवी! तुला नमस्कार आहे। हिन्दी अनुवाद हे शरणागत, गरीब, दुखियों के रक्षण में तत्पर, सभी के दुख दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुझे को नमस्कार है। English Translation Oh Goddess Narayani, Salutation to you! You are ready to protect surrendered, poor, and sad people. You take away the sorrow of all.
- प्रहेलिका – वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिःसंस्कृत प्रहेलिका वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजःत्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगीजलं च बिभ्रन्न घटो न मेघः॥ पदच्छेद वृक्ष-अग्रवासी न च पक्षिराजःत्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।त्वक्-वस्त्रधारी न च सिद्धयोगीजलं च बिभ्रन् न घटः न मेघः॥ शब्दार्थ संस्कृतम् मराठी हिन्दी English वृक्षाग्रवासी झाडाच्या शेंड्यावर राहणारा पेड की नोंक रहने वाला One who lives on the top of the tree न नाही नहीं No, not च आणि और And पक्षिराजः पक्षांचा राजा (इथे केवळ पक्षी) पंछिओं का राजा (यहाँ केवल पक्षी) The king of birds (here a bird only) त्रिनेत्रधारी तीन डोळ्यांचा तीन आँखों वाला One who has three eyes न नाही नहीं No, not च आणि और And शूलपाणिः ज्याच्या हाता (त्रि)शूल आहे (शिव) जिस के हाथ में (त्रि)शूल है (शिव) One who has (Tri)shool in hand (Lord Shiva) त्वग्वस्त्रधारी त्वचा हेच वस्त्र म्हणून जो धारण करणारा त्वचा को ही वस्त्र के स्वरूप में धारण करनेवाला One who wares only his skin as cloths. न नाही नहीं No, not च आणि और And सिद्धयोगी सिद्धयोगी सिद्धयोगी Siddhayogi जलम् पाणी पानी Water च आणि और And बिभ्रन् भरलेला भरा हुआ Filled न नाही नहीं No, not घटः माठ, घडा घड़ा Pot न नाही नहीं No, not मेघः ढग बादल Cloud अन्वय (अहं) वृक्षाग्रवासी (अस्मि। परन्तु) पक्षिराजः च न (अस्मि)। (अहं) त्रिनेत्रधारी (अस्मि। परन्तु) शूलपाणिः च न (अस्मि)। (अहं) त्वग्वस्त्रधारी (अस्मि। परन्तु) सिद्धयोगी च न (अस्मि)। (अहं) जलं बिभ्रन् (अस्मि। परन्तु अहं) घटः न मेघः न (अस्मि। अहं कः?) मराठी अनुवाद मी झाडाच्या शेंड्यावर राहतो। पण मी पक्षी नाही। मी तीन डोळ्यांचा आहे। पण मी भगवान् शंकर नाही। मी त्वचा हेच वस्त्र धारण करतो। पण मी सिद्धयोगी नाही। मी पाण्याने भरलेला आहे। पणी मी घडा नाही आणि ढग सुद्धा नाही। मी कोण? हिन्दी अनुवाद मैं पेड की नोक पर रहता हूँ। लेकिन मैं पंछी नहीं हूँ। मैं तीन आँखोंवाला हूँ। लेकिन मैं भवगान् शंकर नहीं हूँ। त्वचा ही मेरे वस्त्र हैं। परन्तु मैं कोई सिद्धयोगी नहीं हूँ। मैं पानी से भरा हूँ। लेकिन मैं ना तो घड़ा हू और ना ही बादल हूँ। बताओ मैं कौन हूँ? English translation I live on the top of the tree but I am not a bird. I have three eyes but I am not Lord Shiva. The skin itself is my cloths but I am not a Siddhayogi. I am filled with water but I am neither a pot nor cloud. Who am I? उत्तरम् नारिकेलफलम्। नारळ। नारियल। Coconut
- दाम्पत्यम् अनुकूलं चेत् किं स्वर्गस्य प्रयोजनम् – संस्कृत श्लोक, अन्वय, अनुवादसंस्कृत श्लोक दाम्पत्यमनुकूलं चेत्किं स्वर्गस्य प्रयोजनम्।दाम्पत्यं प्रतिकूलं चेन्नरकं किं गृहमेव तत्॥ पदच्छेद दाम्पत्यम् अनुकूलं चेत् किं स्वर्गस्य प्रयोजनम्।दाम्पत्यं प्रतिकूलं चेत् नरकं किं गृहम् एव तत्॥ शब्दार्थ संस्कृत मराठी हिन्दी English दाम्पत्यम् पतिपत्नी मधील संबंध पति और पत्नी के बीच का रिश्ता Relation between husband and wife अनुकूलम् अनुकूल अनुकूल Suitable, favorable चेत् जर…तर… अगर…तो… If…then… किम् काय क्या What स्वर्गस्य स्वर्गाचे स्वर्ग का, जन्नत का Heaven’s प्रयोजनम् प्रयोजन, उपयोग, हेतू, कारण प्रयोजन, उपयोग, हेतू, कारण Purpose, reason, use दाम्पत्यम् पतिपत्नी मधील संबंध पति और पत्नी के बीच का रिश्ता Relation between husband and wife प्रतिकूलम् प्रतिकूल, विरुद्ध, विपरीत प्रतिकूल, विरुद्ध, विपरीत Not suitable, adverse चेत् जर…तर… अगर…तो… If…then… नरकम् नरक नरग, दोजख़, जहन्नुम Hell किम् काय क्या What गृहम् घर घर, आशियाना, दौलतखाना (दूसरों का घर), गरीबखाना (खुद का घर) House, home एव च ही Indeed तत् ते वह It, that अन्वय (मनुष्यस्य) दाम्पत्यं अनुकूलम् (स्यात्) चेत् स्वर्गस्य किं प्रयोजनम्? (अपि च मनुष्यस्य) दाम्पत्यं प्रतिकूलं चेत् नरकं किम्? तत् गृहम् एव (नरकं भवति)। मराठी अनुवाद मनुष्याचे दाम्पत्य (जीवन) अनुकूल असेल तर स्वर्गाचे काय प्रयोजन? आणि तसेच जर मनुष्याचे दाम्पत्यजीवन प्रतिकूल असेल तर नरक कोणता आहे? ते घरच नरक होऊन जाते। हिन्दी अनुवाद मनुष्य का दांपत्यजीवन यदि अनुकूल हो तो स्वर्ग का क्या प्रयोजन है? और साथ ही यदि मनुष्य का दाम्पत्यजीवन प्रतिकूल हो जाए तो नरक क्या है? वह घर ही नरक बन जाता है। English translation If the marriage life of a man is friendly, then what is the purpose of heaven? And also if the marriage life of a man is adverse, then what is the hell? Indeed! the home itself becomes hell.
- पुस्तके पठितः पाठः जीवने नैव साधितःसंस्कृत श्लोक पुस्तके पठितः पाठो जीवने नैव साधितः।किं भवेत्तेन पाठेन जीवने यो न सार्थकः॥ पदच्छेद पुस्तके पठितः पाठः जीवने न एव साधितः।किं भवेत् तेन पाठेन जीवने यः न सार्थकः॥ शब्दार्थ संस्कृत मराठी हिन्दी English पुस्तके पुस्तकात पुस्तक में In the book पठितः वाचलेला पढ़ा हुआ Read पाठः पाठ, धडा पाठ, सबक Lesson जीवने जीवनात जीवन में In the life न नाही नहीं No, not एव अजिबात बिल्कुल Indeed साधितः साध्य केलेला साध्य किया Achieved किम् काय क्या What भवेत् होणार होगा Will be तेन त्याने उस से By it पाठेन धड्याने पाठ से By the lesson जीवने जीवनात जीवन में In the life यः जो जो Which न नाही नहीं No, not सार्थकः सार्थक सार्थक Meaningful अन्वय (यदि छात्रेण) पुस्तके पठितः पाठः जीवने न एव साधितः (तर्हि) यः (पाठः) जीवने सार्थकः (नास्ति) तेन पाठेन किं (लाभप्रदं) भवेत्? मराठी अनुवाद जर विद्यार्थ्याने पुस्तकात वाचलेला धडा जीवनात साध्य केला नाही तर जो धडा जीवनात सार्थक (उपयुक्त) नाहीं त्या पाठाने काय फायदा होईल? हिन्दी अनुवाद यदि छात्र ने पुस्तक में पढ़े पाठ को जीवन में सिद्ध नहीं किया तो जो पाठ जीवन में सार्थक (उपयोगी) नहीं है उस पाठ से क्या लाभ होगा? English translation If a student doesn’t implement the lesson learnt in the book in his life then what is the benefit of that lesson which is not useful in his life.
- अलक्ष्मीराविशत्येनं शयानमलसं नरम्। अनुवाद, शब्दार्थ , अन्वयसंस्कृत श्लोक अलक्ष्मीराविशत्येनं शयानमलसं नरम्।निःसंशयं फलं लब्ध्वा दक्षो भूतिमुपाश्नुते॥ English Transliteration (IAST) of the Shloka alakṣmīrāviśatyenaṃ śayānamalasaṃ naram|niḥsaṃśayaṃ phalaṃ labdhvā dakṣo bhūtimupāśnute|| श्लोक का पदच्छेद अलक्ष्मीः आविशति एनं शयानम् अलसं नरम्। निःसंशयं फलं लब्ध्वा दक्षः भूतिम् उपाश्नुते॥ श्लोक का शब्दार्थ संस्कृत हिन्दी English अलक्ष्मीः दरिद्रता Poverty आविशति आती है, प्रवेश करती है, प्राप्त होती है Comes, reaches एनम् इस To this शयानम् सोनेवाले, जो सो रहा है उस को To whom who is asleep. अलसम् आलसी Lazy नरम् मनुष्य को To the man निःसंशयम् निःसन्देह No doubt फलम् फल Fruit, outcome लब्ध्वा पा कर having received दक्षः काम में ध्यान देनेवाला मनुष्य Attentive person भूतिम् ऐश्वर्य को Wealth उपाश्नुते भोगता है Enjoys श्लोक का अन्वय अलक्ष्मीः एनं शयानम् अलसं नरम् आविशति। (परन्तु) दक्षः निःसंशयं (सर्वेषां कार्याणां) फलं लब्ध्वा भूतिम् उपाश्नुते। श्लोक का हिन्दी अर्थ इस श्लोक के अर्थ को एक वीडिओ में शास्त्रीजी ने बहुत अच्छे से समझाया है। आप से अनुरोध है कि इस श्लोक के अर्थ को आप उन से ही सुनिए।
- सूक्तयः कक्षा 10 प्रश्नोत्तर। Suktayah Class 10 Solutionsइस लेख में सूक्तयः इस पाठ के सभी प्रश्नों के उत्तर हैं। यदि आप सर्वप्रथम सूक्तयः इस पाठ में से सभी सूक्तियों का अध्ययन करना चाहते हैं तो इस सूत्र पर क्लिक करें – अभ्यासः 1. एकपदेन उत्तरं लिखत (क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति? महत् विद्याधनम्। (ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति? धर्मप्रदाम्। (ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः? विद्वांसः। (घ) प्राणेभ्योऽपि कः रक्षणीयः? सदाचारम्। (छ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात्? अहितं कर्म (च) वाचि का भवेत्? अवक्रता 2. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (क) संसारे विद्वांसः ज्ञानचक्षुर्भिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते। संसारे के ज्ञानचक्षुर्भिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते? (ख) जनकेन सुताय शैशवे विद्याधनं दीयते। जनकेन कस्मै शैशवे विद्याधनं दीयते? (ग) तत्त्वार्थस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः। कस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः? (घ) धैर्यवान् लोके परिभवं न प्राप्नोति। (घ) धैर्यवान् कुत्र परिभवं न प्राप्नोति? (७) आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः परेषाम् अनिष्टं न कुर्यात्। आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः केषाम् अनिष्टं न कुर्यात्? 3. पाठात् चित्वा अधोलिखितानां श्लोकानाम् अन्वयम् उचितपदक्रमेण पूरयत (क) पिता ———- बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति, अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः ———– । पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति, अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः तत्कृतज्ञता । ख) येन ———- यत् प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णय: येन कर्तुं ———- भवेत्, सः ———- इति ———-। येन केनापि यत् प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णय: येन कर्तुं शक्यः भवेत्, सः विवेकः इति ईरितः। (ग) यः आत्मनः श्रेयः ———- सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं —- कदापि च न ———-। यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात्। 4. अधोलिखितम् उदाहरणद्वयं पठित्वा अन्येषां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत। क. श्लोक संख्या – 3 यथा- सत्या मधुरा च वाणी का? धर्मप्रदा। (क) धर्मप्रदा वाचं कः त्यजति? विमूढधीः। (ख) मूढः पुरुषः कां वाणी वदति? परुषाम्। (ग) मन्दमतिः कीदृशं फलं खादति? अपक्वम्। ख. श्लोक संख्या -7 यथा- बुद्धिमान् नरः किम् इच्छति? आत्मनः श्रेयः । (क) कियन्ति सुखानि इच्छति? प्रभूतानि। (ख) सः कदापि किं न कुर्यात्? अहितं कर्म। (ग) सः केभ्यः अहितं न कुर्यात्? परेभ्यः। 5. मञ्जूषायाः तद्भावात्मकसूक्तीः विचित्य अधोलिखितकथनानां समक्षं लिखत। (क) विद्याधनं महत् विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्। विद्याधनं धनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्। (ख) आचारः प्रथमो धर्मः आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाग्भवेत्। आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणा:। (ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम् मनसि एकं वचसि एकं कर्मणि एकं महात्मनाम्। सं वो मनासि जानताम्। मञ्जूषा – आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाग्भवेत्।मनसि एकं वचसि एकं कर्मणि एकं महात्मनाम्।विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।सं वो मनासि जानताम्।विद्याधनं धनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्।आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणा:। 6. (अ) अधोलिखितानां शब्दाना पुरतः उचितं विलोमशब्द कोष्ठकात् चित्वा लिखत। शब्दाः विलोमशब्दाः कोष्ठकम् (क) पक्वः अपक्वः (परिपक्वः , अपक्वः, क्वथितः) (ख) विमूढधीः सुधीः (सुधीः, निधिः, मन्दधीः) (ग) कातरः अकातरः (अकरुणः, अधीरः, अकातरः) (घ) कृतज्ञता कृतघ्नता (कृपणता, कृतघ्नता, कातरता) (ङ) आलस्यम् उद्योगः (उद्विग्नता, विलासिता, उद्योगः) (च) परुषा कोमला (पौरुषी, कोमला, कठोरा) (आ) अधोलिखितानां शब्दानां त्रयः समानार्थकाः शब्दाः मञ्जूषायाः चित्वालिख्यन्ताम्। (क) प्रभूतम्(ख) श्रेयः(ग) चित्तम् (घ) सभा(ङ) चक्षुष् (च) मुखम् प्रभूतम्शुभम्मनःसंसद्लोचनम्आननम् बहुशिवचेतःपरिषद्नयनम्वक्त्रम् विपुलम्कल्याणम्मानसम्सभानेत्रम्वदनम् शब्द-मञ्जूषा (लोचनम् नेत्रम् भूरि शुभम् मनः परिषद् सभा चेतः आननम् संसद् वदनम् मानसम् नयनम् विपुलम् वक्त्रम् कल्याणम् शिवम्) 7. अधस्तात् समासविग्रहाः दीयन्ते तेषां समस्तपदानि पाठाधारण दीयन्ताम् – (क) तत्त्वार्थस्य निर्णयः – षष्ठी तत्पुरुषः तत्त्वार्थनिर्णयः। (ख) वाचि पटुः – सप्तमी तत्पुरुषः वाक्पटुः। (ग) धर्म प्रददाति इति (ताम्) – उपपदतत्पुरुषः धर्मप्रदाम्। (घ) न कातरः – नञ् तत्पुरुषः अकातरः। (७) न हितम् – नञ् तत्पुरुषः अहितम्। (च) महान् आत्मा येषाम् – बहुब्रीहिः महात्मानः। (छ) विमूढा धीः यस्य सः – बहुब्रीहिः विमूढधीः। उपसंहारः इस प्रकार से हम ने अपनी बुद्धि तथा क्षमता से उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर बताने का प्रयत्न किया है। तथापि हम भी मनुष्य हैं। कोई त्रुटि रह भी सकती है। यदि आप को इस में कही कोई त्रुटि दिखाई पड़ती है तो कृपया नीचे टिप्पणी (कमेंट) के द्वारा हमे सूचित करें। हम जरूर उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।
- सूक्तयः – कक्षा 10 अनुवाद। Suktayah – Class 10 Translationसूक्तयः (Suktayah) यह संस्कृत पाठ CBSE बोर्ड में निर्धारित पाठ्यपुस्तक शेमुषी (NCERT) में है। इस लेख में सूक्तय इस पाठ से सभी सूक्तियों का सरल भाषा में अनुवाद और स्पष्टीकरण है। आप को जिस सूक्ति का अर्थ जानना है, उस सूक्ति के शीर्षक कर क्लिक करें। यदि आप इस पाठ के प्रश्नोत्तर (Solution) चाहते हैं तो इस सूत्र पर क्लिक करें – धन्यवाद
- शिवमहिम्नः स्तोत्रम् ShivamahimanaH Stotramशुद्ध संस्कृत में पाठ के लिए शिवमहिम्न स्तोत्र
- यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः। श्लोक का अर्थ, अनुवाद और स्पष्टीकरण॥क्या आप किंकर्तव्यमूढ हो गए हैं? यानी आप को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करे और क्या नहीं करें? मनुष्य को कौन सा काम जरूर करना ही चाहिए? और कौन सा काम वर्जित (टालना, avoid) चाहिए? इन प्रश्नों के उत्तर अपनी ही आत्मा से पूछ कर मिल सकते हैं। इस संस्कृत सुभाषित को पढ़िए – संस्कृत श्लोक यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः। तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत्॥ English (Roman) Transliteration (IAST) yatkarma kurvato’sya syātparitoṣo’ntarātmanaḥ|tatprayatnena kurvīta viparītaṃ tu varjayet|| श्लोक का पदच्छेद यत् र्म कुर्वतः अस्य स्यात् परितोषः अन्तरात्मनः।तत् प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत्॥ श्लोक का हिन्दी और अंग्रेजी में शब्दार्थ संस्कृत हिन्दी English यत् जो Which कर्म कार्यम्, काम Work कुर्वतः करने वाले, करते हुए अथवा करने से While doing, by doing अस्य इस It’s, …of it स्यात् हो जाए, Should be परितोषः समाधान, सन्तुष्टिः Satisfaction अन्तरात्मनः अन्तरात्मा की Inner sole तत् वह That प्रयत्नेन प्रयत्नपूर्वक, कोशिक के साथ Diligently कुर्वीत करना चाहिए Should do विपरीतम् उलटा Opposite तु तो – वर्जयेत् वर्जित करना चाहिए, टालना चाहिए Should avoid श्लोक का अन्वय अस्य अन्तरात्मनः परितोषः यत् कर्म कुर्वतः स्यात्, तत् (कर्म) प्रयत्नेन कुर्वीत। (परन्तु तस्मात्) विपरीतं तु वर्जयेत्। श्लोक का हिन्दी अनुवाद इस अन्तरात्मा की संतुष्टि जो काम करने से हो जाए, वह कार्य प्रयत्नपूर्वक करना चाहिए। लेकिन उस से उलटा काम टालना चाहिए। English Translation of the Shloka The work which gives the satisfaction to this inner soul that work should be done diligently. But opposite should be avoided. श्लोक का स्पष्टीकरण हमारी आत्मा ईश्वर का अंश है। हमारी आत्मा हमें प्रत्येक समय मार्गदर्शन करती है। प्रत्येक बुरे कार्य करने से पहले हमारी आत्मा बताती है, “रुको! यह काम मत करो। यह बुरा है।“ और यदि हम किसी की मदद करें, कोई पुण्य का काम करें तो हमे अंदरूनी आनंद भी होता है। इसीलिए हमेशा अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुनना चाहिए। किसी का भला करना, कोई अच्छा काम करना, मन्दिर में जाकर ईश्वर को प्रणाम करना, बडे बुजुर्गों की सेवा करना इ॰ ये ऐसे काम हैं जो करने से अपनी अंतरात्मा को अच्छा लगता है। और ऐसे ही काम (जो करने से यदि आत्मा प्रसन्न होती है) मनुष्य को परिश्रम से भी करने चाहिए। और इस के विपरीत (उलटा) जो काम है वह टालना चाहिए। अर्थात् किसी का बुरा करने से आत्मा को अच्छा नहीं लगता है। पाप करने से अपनी आत्मा को संतोष नहीं होता है। इसीलिए ऐसे काम नहीं करना चाहिए।
- यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम् – अर्थ और अनुवादयं मातापितरौ कष्टं सहेते सम्भवे नृणाम्। यह श्लोक मनुस्मृति का है। इस श्लोक के माध्यम से मनु मातापिता के महत्त्व को दिखाते हैं। यदि कोई पुत्र सौ साल तक भी अपने मातापिता की सेवा करता रहे, लेकिन जो तकलीफ उन्होंने पुत्र को जन्म देते समय सही थी उससे तो पुत्र उबार नहीं सकता।