श्लोक,  सुभाषित

न चौरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि

संस्कृत श्लोक

न चौरहार्यं न च राजहार्यं 
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥

श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण

IAST

na caurahāryaṃ na ca rājahāryaṃ
na bhrātṛbhājyaṃ na ca bhārakāri।
vyaye kṛte vardhata eva nityaṃ
vidyādhanaṃ sarvadhanapradhānam॥

श्लोक का हिन्दी शब्दार्थ

  • न – नहीं
  • चौरहार्यम् – चोरों के द्वारा छीनने योग्य
  • न – नहीं
  • च – और
  • राजहार्यम् – राजा के द्वारा छीनने योग्य
  • न – नहीं
  • भ्रातृभाज्यम् – भाई के द्वारा बँटवारे योग्य
  • न – नहीं
  • च – और
  • भारकारि – भारी, बोझिल
  • व्यये कृते – खर्च करने पर, इस्तेमाल करने पर
  • वर्धते – बढ़ता है
  • एव – ही
  • नित्यम् – हमेशा, सर्वदा
  • विद्याधनम् – विद्या रूपी धन
  • सर्वधनप्रधानम् – सभी प्रकार के धनों में मुख्य

श्लोक का अन्वय

अन्वय के बारे में अधिक जानकारी – यहाँ

(विद्याधनं) चौरहार्यं न (अस्ति), राजहार्यं च न (अस्ति), भ्रातृभाज्यं न (अस्ति), भारकारि च (अपि) न (अस्ति)। (विद्याधनं) व्यये कृते (अपि) नित्यं वर्धते एव। (अतः) विद्याधनं सर्व-धन-प्रधानम् (अस्ति)॥

श्लोक का हिन्दी अनुवाद

विद्या रूपी धन चोरों से छीनने योग्य नहीं है, और राजाओं के द्वारा भी छीनने योग्य नहीं है, भाईयों के द्वारा बँटवारा करने योग्य नहीं है, और बोझिल भी नहीं है। विद्या रूपी धन खर्च करने पर भी हमेशा बढ़ता ही है। इसीलिए विद्याधन सभी धनों में मुख्य है।

श्लोक का विश्लेषण

वैसे तो हम लोग पैसे को, जमीन जायदाद को, सोना-चांदी को ही अपना धन समझते हैं। परन्तु संस्कृत सुभाषितकार तो विद्या को ही धन समझते हैं।

न चौरहार्यं न च राजहार्यम्

विद्या एक ऐसा धन है जो चोर छीन नहीं सकते – न चौरहार्यम्।

राजा भी बहुत बार आपका धन छीन सकते हैं। सरकार आपकी जायदाद पर कर (टैक्स) लगाकर आप से आप का धन छीन सकती है। परन्तु किसी भी राजा की सरकार आप की विद्या, आपके ज्ञान पर कोई भी कर (टैक्स) नहीं लगा सकती। इसीलिए राजा भी आपका विद्यारूपी धन छीन नहीं सकते – न च राजहार्यम्।

न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि

यदि आप के पिता के पास १०० एकड़ जमीन है तो आप इस भ्रम में मत रहिए की आप भी १०० एकड़ के मालिक बनेंगे। यदि आप के भाईयों का हिस्सा भी उसमें होता है। परन्तु यदि आप के पिता ने आप को ज्ञान दिया है, विद्यावान् बनाया है, तो आप के भाई उसमें कोई भी बंटवारा नहीं कर सकते। इसीलिए विद्या के बारे में कहा है – न भ्रातृभाज्यम्।

यदि आप के पास बहुत सारा धन है तो आप को उसे उठाने का कष्ट करना पड़ता है। उसे संभालना पड़ता है। परन्तु आप को विद्या को उठाने का कष्ट नहीं करना पड़ता है। इसीलिए कहा है – न च भारकारि।

व्यये कृते वर्धत एव नित्यम्

आपने अपने पैसों का खर्च किया तो उसमें कमी होती है। परन्तु विद्या का खर्च करने (यानी इस्तेमाल करने) से विद्या बढ़ती है। मान लीजिए कि आप के पास संस्कृत भाषा जानते हैं। और संस्कृत भाषा के ज्ञान का इस्तेमाल कर के आप संस्कृत भाषा में लिखित आयुर्वेद का ग्रन्थ पढ़ रहे हैं। तो आप को उस ग्रन्थ में मौजूद ज्ञान मिल गया। यानी आप के ज्ञान में बढ़ौतरी हुई। इसका मतलब है कि संस्कृत के ज्ञान के इस्तेमाल करने से आप को आयुर्वेद का भी ज्ञान मिला। यानी एक ज्ञान के इस्तेमाल से दूसरा अधिक ज्ञान मिला।

ज्ञान का इस्तेमाल करते करते बहुत बार नई खोज भी हो सकती है।

इसीलिए विद्या के बारे में कहते हैं – व्यये कृते वर्धत एव नित्यम्।

विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्

इस श्लोक में विद्या के इतने सारे फायदे बताए हैं। इन फायदों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि – विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्। यानी सभी धनों में विद्याधन मुख्य है।

संस्कृत भावार्थ

चौराः मनुष्यात् विद्याधनस्य अपहरणं न कर्तुं शक्नुवन्ति। राजा च अपि कररूपेण वा अन्यप्रकारेण वा विद्याधनं न नयति। मनुष्यस्य सहोदराः अपि विद्याधने विभागं न कर्तुं शक्नुवन्ति। मनुष्यस्य शिरसि विद्यायाः भारः न भवति। यदि मनुष्य विद्यायाः व्ययं करोति तर्हि विद्या न्यूना न भवति। अपितु विद्या वर्धते एव। एवं विद्यायाः सर्वेष धनेषु श्रेष्ठा अस्ति। अतः विद्याधनं सर्वधनप्रधानं भवति।

व्याकरण

सन्धि

  • वर्धत एव – वर्धते + एव। लोपः शाकल्यस्य

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