नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्
नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोम्यहम्।
पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥
श्लोक का पदच्छेद
नत्वा सरस्वतीं देवीं शुद्धां गुण्यां करोमि अहम्।
पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम्॥
श्लोक का शब्दार्थ
- नत्वा – नमन करके – having bowed
- सरस्वतीं देवीं – सरस्वती देवी को – to the Goddes Sarasvatī
- शुद्धां – शुद्ध, दोषरहित, pure, errorless
- गुण्यां – बहुगुणी, अच्छे गुणों वाली – virtuous, which has good qualities
- करोमि – करता हूँ, कर रहा हूँ – do, am doing
- अहम् – मैं (वरदराज), I (Varadrāja)
- पाणिनीयप्रवेशाय – पाणिनीय (व्याकरण) में प्रवेश के लिए – to enter in Paninian (Grammar)
- लघुसिद्धान्तकौमुदीम् – लघुसिद्धान्तकौमुदी (नामक ग्रन्थ) – The book named LaghuSiddhantaKaumudī
श्लोक का अन्वय
अहं (वरदराजः) सरस्वतीं देवीं नत्वा शुद्धां गुण्यां लघुसिद्धान्तकौमुदीं पाणिनीयप्रवेशाय करोमि।
श्लोक का हिन्दी अनुवाद
मैं (वरदराज) सरस्वती देवी को नमन करके शुद्ध और बहुगुणवती लघुसिद्धांतकौमुदी को पाणिनीय (व्याकरण) में प्रवेश के लिए बना रहा हूँ।
English Translation of the Shloka
I (Varadrāja) having bowed to Goddess Saraswati compose the errorless and virtuous LaghuSiddhantKaumudi to enter the Pāninian Grammar.
श्लोकाचे मराठी भाषांतर
मी (वरदराज) सरस्वती देवीला नमस्कार करून शुद्ध व बहुगुणवती अशी लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीय व्याकरणामध्ये प्रवेशासाठी बनवत आहे.
श्लोकस्य संस्कृतेन भावार्थ
अहं (वरदराजः) सरस्वतीं देवीं नमनं कृत्वा शुद्धां दोषरहितां गुण्यां बहुगुणवतीं लघुसिद्धान्तकौमुदी पाणिनीये व्याकरणे प्रवेशार्थं लिखामि।