श्लोक

सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्

संस्कृत श्लोक

सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः।।

Roman (English) transliteration

sarvaṃ paravaśaṃ duḥkhaṃ sarvamātmavaśaṃ sukham|
etadvidyātsamāsena lakṣaṇaṃ sukhaduḥkhayoḥ||

पदच्छेद

सर्वं परवशं दुःखं सर्वम् आत्मवशं सुखम्।
एतत् विद्यात् समासेन लक्षणं सुख-दुःखयोः।।

शब्दार्श

  • सर्वम् – सर्व, all
  • परवशम् – पराए के नियन्त्रण में, दूसरों पर अवलंबित, in control of another person, dependent upon other.
  • दुःखम् – दुख, sadness
  • सर्वम् – सर्व, all
  • आत्मवशम् – खुद के नियन्त्रण में, in control of ourself, self-controlled, dependent upon self
  • सुखम् – खुशी, happiness
  • एतत् – यह, this
  • विद्यात् – जानना चाहिए, should know
  • समासेन – संक्षेप से, in brief
  • लक्षणम् – लक्षण, पहचानने का चिह्न, characteristic  
  • सुख-दुःखयोः – सुख और दुख का, …of happiness and sadness

अन्वय

सर्वं दुःखं परवशं (भवति)। (परन्तु) सर्वं सुखम् आत्मवशं (भवति)। एतत् सुखदुःखयोः लक्षणं समासेन विज्ञात्।

श्लोक का हिन्दी अनुवाद

सारा दुख पराये लोगों पर निर्भर होता है। परन्तु सारा सुख खुद पर निर्भर होता है। इस सुख-दुख के लक्षण को संक्षेप से जान लेना चाहिए।

English Translation of the Shloka

All the sadness depends on the other people. But all happiness depends on oneself. This characteristic of happiness and sadness should be known briefly.

स्पष्टीकरण

हम हमेशा दूसरों की ही वजह से दुखी होते हैं। किसी को शत्रु की वजह से दुख है, किसी को अपने वरिष्ठ (boss) की वजह से दुख है, किसी को अपने ही पुत्र की वजह से दुख है।

किसी को बीमारी की वजह से दुख है। अब बीमारी तो अपने ही शरीर में होती है। तो क्या यह दुख भी पराये ने ही दिया? – हाँ। क्योंकि शरीर भी हमारा नहीं है। हमें प्रकृति ने शरीर दिया है। तो शरीर से होने वाले कष्ट भी पराये कष्ट हैं।

और इसके विपरीत श्लोक कहता है – सर्वम् आत्मवशं सुखम्। यानी सुख अपने आप पर निर्भर होता है। हम तो सदा से सुखी ही है। केवल दूसरों की वजह से हम दुखी है।

इसीलिए यदि आप को सुखी बनना है, तो अन्तर्मुख बनो। दूसरों की चिन्ता छोड दो। उनका तो काम ही है हमे दुख पहुँचाना। हम अपने आप में सुखी बने रह सकते हैं।

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