विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
विचित्रे – विचित्र स्वरूप वाले खलु – सचमुच संसारे – दुनिया में न – नहीं अस्ति – है किञ्चित् – कोई भी निरर्थकम् – व्यर्थम्। बेकार अश्वः – घोटकः। वाजी। हयः। चेत् – यदि धावने – दौड़ने में वीरः –…
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता। अर्थ, अन्वय, हिन्दी अनुवाद
क्या आप महान् बनना चाहते हैं? संस्कृत सुभाषितकारों ने महान लोगों का लक्षण इस श्लोक में लिख दिया है। यदि हमने महान लोगों के इस लक्षण को समझ लिया, तो हम भी महान बन सकते हैं। श्लोक सम्पत्तौ च विपत्तौ…
अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम्। अन्वय अर्थ हिन्दी अनुवाद
इस दुनिया में कोई भी अक्षर बेकार नहीं है, किसी भी पेड़ की जड़ ऐसी नहीं है कि जो दवा ना हो, कोई भी पुरुष बेकार नहीं है। वहाँ (सभी चीजों को) जोड़ने वाला दुर्लभ है।
सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः। शब्दार्थ अन्वय श्लोक का हिन्दी अनुवाद
(भरपूर) फलों और छाव से युक्त बहुत बड़े पेड़ की सेवा करनी चाहिए। अगर नसीब से / काल से फल ना हो, तो उस पेड़ की छाव को कौन हटाता है।
मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति। शब्दार्थ अन्वय श्लोक का हिन्दी अनुवाद
जैसे हिरणें हिरणों के, और गाएं गौओं के, घोड़े घोड़ों के साथ घूमते हैं। वैसे ही मूर्ख मूर्खों के और बुद्धिमान् बुद्धिमन्तों के साथ घूमते हैं। इसीलिए (हम कह सकते हैं कि) समान शील और व्यसनियों में दोस्ती होती है।
क्रोधो हि शत्रुः प्रथमं नराणाम्। श्लोक का शब्दार्थ अन्वय हिन्दी अनुवाद
मनुष्यों के शरीर का विनाश करने के लिए पहला दुश्मन तो (खुद के ही) शरीर में रहने वाला गुस्सा ही होता है। जैसे कि लकड़ी में ही रहने वाली आग लकड़ी को ही जलाती है, वैसे ही शरीर में रहने…
उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते। अनुवाद। अन्वय। पदच्छेद
उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः। अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः॥
निमित्तम् उद्दिष्य हि यः प्रकुप्यति – संस्कृत सुभाषित श्लोक – अनुवाद अन्वय पदच्छेद
संस्कृत सुभाषित श्लोक निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति, ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति । अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै, कथं जनस्तं परितोषयिष्यति ॥ श्लोक को वीडिओ से समझें शब्दार्थ निमित्तम् – कारणम्। उद्दिष्य – दृष्ट्वा। देखकर, मानकर हि – अव्ययपदम् यः – जो…
गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः
गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः ।पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः,करी च सिंहस्य बलं न मूषकः ॥ वीडिओ से श्लोक को समझिए – अन्वय गुणी गुणं वेत्ति, निर्गुणः (गुणं) न वेत्ति। बली बलं वेत्ति निर्बलः…
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः। सुभाषित का हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ, भावार्थ और व्याकरण
आलस ही मनुष्य का शत्रु है। हालांकि लोग दूसरों को शत्रु मानते हैं। परन्तु यह एक आलसरूपी शत्रु तो अपने अंदर ही है। सबसे पहले इस पर विजय आवश्यक है। देखते हैं संस्कृत सुभाषितकार आलस के बारे में क्या कहते…