विशिष्ट

उद्यमेन हि सध्यन्ति कार्याणि

संस्कृत श्लोक

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥

श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण

Roman transliteration of the Shloka

udyamena hi sidhyanti kāryāṇi na manorathaiḥ।
na hi suptasya siṃhasya praviśanti mukhe mṛgāḥ॥

शब्दार्थ

  • उद्यमेन – उद्यम से, काम करने से, परिश्रम से
  • हि – ही
  • सिध्यन्ति – सिद्ध होते हैं, पूरे होते हैं, कामयाब होते हैं
  • कार्याणि – काम, (हमे जो करने हैं वे काम)
  • न – नहीं
  • मनोरथैः – केवल मन में सोचने से
  • न हि – बिल्कुल नहीं
  • सुप्तस्य – सोए हुए
  • सिंहस्य – सिंह के
  • प्रविशन्ति – प्रवेश करते हैं
  • मुखे – मुँह में
  • मृगाः – हिरणें

श्लोक का अन्वय

कार्याणि उद्यमेन हि सिध्यन्ति, (केवलं) मनौरथैः न। (यतोहि) मृगाः सुप्तस्य सिंहस्य मुखे न हि प्रविशन्ति।

श्लोक का हिन्दी अनुवाद

काम परिश्रम से ही सिद्ध होते हैं, (केवल) मन में सोचने से नहीं। (क्योंकि) हिरणें सोए हुए शेर के मुंह में प्रवेश नहीं करती।

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