श्लोक,  सुभाषित

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्

संस्कृत श्लोक

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यशःसुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्या विहीनः पशुः॥

श्लोक का रोमन लिप्यन्तरण

vidyā nāma narasya rūpamadhikaṃ pracchannaguptaṃ dhanam
vidyā bhogakarī yaśaḥ sukhakarī vidyā gurūṇāṃ guruḥ।
vidyā bandhujano videśagamane vidyā parā devatā
vidyā rājasu pūjyate na hi dhanaṃ vidyā vihīnaḥ paśuḥ॥

श्लोक का वीडिओ

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकम् का वीडिओ

श्लोक का शब्दार्थ

  • विद्या – ज्ञान
  • नाम – …. का मतलब है
  • नरस्य – मनुष्य का
  • रूपम् – रूप, व्यक्तित्व
  • अधिकम् – विस्तृत
  • प्रच्छन्नगुप्तं – छुपा हुआ और गुप्त (जो दिखाई ना दे)
  • धनम् – पैसा, संपत्ति
  • विद्या – ज्ञान
  • भोगकरी – उपभोग कराने वाली
  • यशःसुखकरी – कामयाबी और सुखप्रदायक
  • विद्या – ज्ञान
  • गुरूणाम् – गुरुओं की भी (बडी चीज से भी)
  • गुरुः – गुरु (बडी)
  • विद्या – ज्ञान
  • बन्धुजनः – मित्र, भाई
  • विदेशगमने – विदेश जाने पर
  • विद्या – ज्ञान
  • परा – बहुत बडी
  • देवता – देवता है
  • विद्या – ज्ञान
  • राजसु – राजाओं में
  • पूज्यते – पूजा जाता है
  • न हि – नहीं
  • धनम् – पैसा
  • विद्याविहीनः – जिसके पास विद्या नहीं है वह
  • पशुः – जानवर है

श्लोक का अन्वय

विद्या नाम नरस्य अधिकं रूपं, प्रच्छन्नगुप्तं धनं (च) अस्ति। विद्या (एव) भोगकरी, यशःसुखकरी (च अस्ति)। (अतः) विद्या गुरूणां गुरुः (वर्तते)। विदेशगमने (सति) विद्या बन्धुजनः (भवति)। (अतः) विद्या परा देवता (वर्तते)। विद्या राजसु पूज्यते। धनं न हि (पूज्यते)। (अतः) विद्याविहीनः (मनुष्यः) पशुः (इव भवति)।

हिन्दी अनुवाद

विद्या का मतलब होता है मनुष्य का ही विस्तृत रूप और (मनुष्य) छुपा हुआ और गुप्त धन। विद्या ही (विविध वस्तुओं का) उपभोग कराने वाली तथा कामयाबी और सुखप्रदायिनी होती है। इसीलिए विद्या गुरुओं की भी गुरु है (अथवा सब से बड़ी चीज है।) किसी दूसरी दूर की जगह जाने पर विद्या ही हमारे किसी मित्र अथवा भाई जैसी (सहारा देनेवाली) होती है। इसीलिए विद्या ही बडी देवता है। विद्या राजाओं में पूजी जाती है। धन नहीं पूजा जाता। इसीलिए विद्याहीन मनुष्य पशु जैसा होता है।

Leave a Reply