वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्
संस्कृत श्लोक
वृत्तं यत्नेन संरक्षेत् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः॥
श्लोक का रोमन लिप्यंतरण
Roman transliteration of the Shloka
vṛttaṁ yatnena saṁrakṣet vittameti ca yāti ca
akṣīṇo vittataḥ kṣīṇo vṛttatastu hato hataḥ
श्लोक का वीडिओ
आप इस श्लोक को इस वीडिओ के माध्यम से बहुत आसानी से समझ सकते हैं –
यदि आप लिखित स्वरूप में श्लोक को पढ़ना चाहते हैं, तो इस लेख को पढ़ते रहिए।
श्लोक का शब्दार्थ
- वृत्तम् – वर्तनम्। बरताव
- यत्नेन – प्रयत्न से। प्रयत्नपूर्वक
- संरक्षेत् – रक्षण करना चाहिए
- वित्तम् – पैसा
- एति – आता है
- च – और
- याति – जाता है
- च – और
- अक्षीणः – जो कमजोर नहीं है।
- वित्ततः – पैसों से
- क्षीणः – कमजोर
- वृत्ततः – वर्तन से
- तु – तो
- हतः – मृत है
- हतः – मृत है
श्लोक का अन्वय
वृत्तं यत्नेन संरक्षेत् वित्तम् एति च याति च। वित्ततः क्षीणः अक्षीणः (भवति), (परन्तु) वृत्ततः (क्षीणः) तु हतः हतः॥
श्लोक का हिन्दी अनुवाद
मनुष्य ने अपने वर्तन की हमेशा रक्षा करनी चाहिए। क्योंकि पैसा आता है और जाता है।
पैसों से जो कमजोर है वह (वास्तव में) कमजोर नहीं है। अपितु अपने वर्तन से जो कमजोर है वह तो मृतवत् ही है।
व्याकरण
सन्धि
अक्षीणो वित्ततः – अक्षीणः + वित्ततः। (उत्व)
क्षीणो वृत्ततः – क्षीणः + वृत्ततः। (उत्व)
वृत्ततस्तु – वृत्ततः + तु। (सत्व)
हतो हतः – हतः + हतः। (उत्व)
समास
अक्षीणः – न क्षीणः। (नञ् तत्पुरुष समास)
प्रत्यय
वित्ततः – वित्त + तसिल्।
वृत्ततः – वृत्त + तसिल्
हतः – हन् + क्त
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