श्लोक

यत्र देशेऽथवा स्थाने – श्लोक का अर्थ

पुरुष को किस स्थान अथवा गांव में (यत्र देशेऽथवा स्थाने) रहना नहीं चाहिए इस बात को इस श्लोक में बताया गया है। साथ ही ऐसे निषिद्ध स्थान पर रहनेवाले को पुरुषाधम (पुरुषों में अधम, नीच) कहा गया है।

संस्कृत श्लोक

यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥

श्लोक का रोमन (अंग्रेजी) लिप्यन्तरण

yatra deshe-thavaa sthaane bhogaa bhuktaaH swaveeryataH.
Tasmin vibhavaheeno yo vaset sa purusHaadhamaH.

श्लोक का पदच्छेद

यत्र देशे अथवा स्थाने भोगाः भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् सः पुरुषाधमः॥

श्लोक का शब्दार्थ

  • यत्र – जहाँ
  • देशे – देश में
  • अथवा – अथवा, या फिर
  • स्थाने – जगह पर
  • भोगाः – हर तरह के आनंद और सुखसुविधा
  • भुक्ताः – चखा, आस्वाद लिया, भोग किया
  • स्ववीर्यतः – अपने बलबूते पर
  • तस्मिन् – वहाँ (उस ही जगह या देश में)
  • विभवहीनः – गरीब
  • यः – जो
  • वसेत् – रहे
  • सः – वह
  • पुरुषाधमः – पुरुषों में नीच

श्लोक का अन्वय

यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् (देशे अथवा स्थाने) यः विभवहीनः (भूत्वा) वसेत् सः पुरुषाधमः (भवति)॥

श्लोक का हिन्दी अनुवाद

जिस देश में अथवा (गाँव, नगर इत्यादि) जगह पर अपने बलबूते पर सभी भोग भोगे हो उस ही देश अथवा स्थान में जो (मनुष्य) गरीब होने पर रहेगा वह तो पुरुषों में नीच होता है।

श्लोक का भावार्थ

प्रत्येक मनुष्य के लिए सबसे बडी चीज उसका मानसन्मान ही होता है।

यदि किसी देश में अथवा गाँव, नगर इत्यादि स्थानों पर किसी समय में आप बहुत प्रसिद्ध और सफल व्यक्ति थे और आप की प्रसिद्धि तथा सफलता के चलते आप को उस देश अथवा स्थान पर सारी चीजें मिली। वहा आप ऐश्वर्यवान् थे।

परन्तु वक्त हमेशा बदलता रहता है।

अब आप का समय खराब चलने लगा है। आप का व्यापार डूब गया हो, आप की मानहानि हो गई हो अथवा और किसी अन्य कारण के चलते अब आप विभवहीन हो गए हैं। यानी अब आप का ऐश्वर्य नष्ट हो गया है। तो हमारा शास्त्र कहता है –

तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत्स पुरुषाधमः।

यानी ऐसी जगह पर जो ऐश्वर्यहीन व्यक्ति रहता है वह पुरुषों में अधम है।

इस का तात्पर्य यह है कि अब आप को उस देश को अथवा उस जगह को छोड़ देना चाहिए। और अपना नसीब आजमाने के लिए किसी दूसरे देश अथवा किसी दूसरे शहर जाना चाहिए।

मानसशास्त्रीय विचार

क्योंकि अब यहाँ सब आप का अपमान करेंगे और इस वजह से आप का आत्मविश्वास कमजोर होगा। जो लोग आप के सामने झुक कर चलते थे उन के सामने से अब आप को झुक के जाना पड़ेगा तो आप का मन दुःखी होगा।

इसके चलते पुनः ऊपर उठना आप के लिए मुष्किल हो सकता है। इसीलिए शास्त्र कहता है कि अब आप को वहाँ नहीं रहना चाहिए। आप को किसी दूसरी जगह जाना चाहिए। हो सकता है कि वहाँ आप का नसीब चमके।

‘यत्र देशेऽथवा स्थाने’ इस श्लोक में व्याकरण

यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥

सन्धि

देशेऽथवा – देशे + अथवा (पूर्वरूप सन्धि)

भोगा भुक्ताः – भोगाः + भुक्ताः (विसर्ग लोप)

विभवहीनो यो वसेत् – विभवहीनः + यः + वसेत् (उत्व)

स पुरुषाधमः – सः + पुरुषाधमः (विसर्ग लोप)

पुरुषाधमः – पुरुष + अधमः (सवर्ण दीर्घ संधि)

समास

स्ववीर्यतः – स्वस्य वीर्यतः (षष्ठी तत्पुरुष)

विभवहीनः – विभवेन हीनः (तृतीया तत्पुरुष)

पुरुषाधमः – पुरुषेषु अधमः (सप्तमी तत्पुरुष)

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